सोमवार, 3 मई 2010

ना तो लेखनी में समर्पण है,ना सही है कभी आह कोई,क्या लिख पाऊंगा मै,खुद के लिए,औरो के लिए!(एक विचार...., )

ना तो लेखनी में समर्पण है,ना सही है कभी आह कोई,
क्या लिख पाऊंगा मै,खुद के लिए,औरो के लिए!


बहा चला गया हर बार बहाव के साथ मै,
बह गया गया कभी भाव के साथ मै,
खींच-तान रही जारी सदा लगाव के साथ मै,
रहा लुटता हर बार चुनाव के साथ मै!

क्या उलझन ही जीवन है,या पकड़ ली है गलत राह कोई,
क्या कोई सही राह चुन पाउँगा मै,खुद के लिए,औरो के लिए!


ये हताशा,निराशा सब तन की है,मन की तो नहीं,
देखना मेरे स्वभाव और शब्दों में कहीं अनबन तो नहीं,
मेरे विचारों में कहीं,आत्मा का उत्पीडन तो नहीं,
मेरी मुस्कान किसी के लिए कोई चुभन तो नहीं,

ना समझ  है, ना लगन,ना योग्यता ही कोई,
क्या उदहारण बन पाउँगा मै,खुद के लिए,औरो के लिए!















जय हिंद,जय श्रीराम,
कुंवर जी,

13 टिप्‍पणियां:

  1. मत हो तू उदास ना हो हताश राणा
    कर याद की तेरा पुरखा है महाराणा
    गर यूँ करेगा जो बैठ ज़माने का सोग
    क्या होगा उदाहरण कांधा झाडेंगे लोग
    अब भी खीचतान में जो उलझा रहा तू
    रहेगा बैठा पूरी क्या खाक होगी जुस्तजू

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  2. गिलास आधा भरा हुआ है न कि आधा खाली है !

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  3. अरे हरदीप , आप तो बहुत उम्दा रचनाकार हो और प्रेरक हो , फिर भी दिक्कत हो तो
    इन पुरानी पंक्तियो को फिर से याद करो

    " माना कि हैं गम कि धूप कड़ी मायूस मगर तू ना होना
    जितनी आग में तपता हो उतना ही निखरता हैं सोना "

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  4. gir ke kya jeena
    sar utha kar jee
    agar h jeene ka jajba
    to gairo ke bhi gam utha ke jee

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  5. kunwar ji meri ek madad karoge
    jab bhi m nya msg likhne ki kaushish karti hu to mere msg ke upar hindi select karne ka option nhi aata

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  6. महान पोस्ट
    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें और मुझे कृतार्थ करें

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  7. ये उदासी अच्छी नही ... पर कविता बहुत अच्छी है ....

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  8. kya baat hai, aise likha kar.
    aajkal tera taste badalta ja raha hai........

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