शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

कैसे आज तीज के झूले झूलूँ मै....

कैसे आज तीज के झूले झूलूँ मै....
दो सर आज भी झूल रहे है उनकी संगीनों पर...
कैसे भूलूँ मै!


झूलों की रस्सी में सांप दिखाई देते है,
हर आँखों में सीमा के संताप दिखाई देते है,
भड़क उठेंगे शोले जो जरा सी राख टटोलूं मै,
झूल रहे है दो शीश.....!


आस्तीन में सांप पालना कोई सीखे हमसे आकर,
दावत देते है हत्यारों को हम ससम्मान बुलाकर,
अबके घर में उनके घुसकर उनके शीश काट सारे दाग धोलूँ मै,
झूल रहे है दो शीश...!


कैसे आज तीज के झूले झूलूँ मै....
दो सर आज भी झूल रहे है उनकी संगीनों पर...
कैसे भूलूँ मै!


जय हिन्द ,जय श्रीराम,
कुँवर जी,

सोमवार, 5 अगस्त 2013

वो तो भूखे ही रह जायेंगे ना....!!!(कुँवर जी)

बस अपनी चाल से बस दौड़ी जा रही थी!हर कोई अपनी-अपनी बातो में मशगूल था! एक वृद्ध जन बैठा-बैठा अचानक मायूस सा होता दिखाई दिया!साथ वाले ने बड़े आदर से उन से उनके यूँ दुखी होने का कारण जानना चाहा!
उन बुजुर्गवार ने बताया कि वो पिछले कई दिनों से घर से बाहर है!बस इसीलिए थोड़े चिंतित है!
तो साथ वाले ने भी बड़े दार्शनिक से अंदाज में कहा," हाँ, घर से दूर होकर घरवालो की कमी महसूस होती ही है!"
इस बुजुर्गवार ने कहा,"मै हर रोज छत पर कुछ दाने और पानी रख देता था,अगली सुबह तक दाने कोई न कोई पक्षी आकर खा जाते थे और मै फिर रख देता था!काफी दिनों से यही सिलसिला चला आ रहा था,पर पिछले कुछ दिनों से मै घर से बहार हूँ तो वह कोई दाने भी नहीं रख रहा होगा....... बस यही सोच कर चिंतित और दुखी हूँ!"
"आप भी बस... अरे पक्षियों को लेकर इतने दुखी हो रहे हो...?वो कहीं भी जाकर खा लेंगे,कही भी उनको दान-पानी मिल जायेगा!" वो साथ वाले जनाब माहौल को हल्का करते हुए बोले!
तो बुजुर्गवार अपनी दोनों भौहों को सिकोड़ते हुए बोले,"पर जो पक्षी मेरे रखे हुए दानो के लिए कहीं और के दाने छोड़ कर आयेंगे वो तो भूखे ही रह जायेंगे ना....!!!



जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,

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