कैसे आज तीज के झूले झूलूँ मै....
दो सर आज भी झूल रहे है उनकी संगीनों पर...
कैसे भूलूँ मै!
झूलों की रस्सी में सांप दिखाई देते है,
हर आँखों में सीमा के संताप दिखाई देते है,
भड़क उठेंगे शोले जो जरा सी राख टटोलूं मै,
झूल रहे है दो शीश.....!
आस्तीन में सांप पालना कोई सीखे हमसे आकर,
दावत देते है हत्यारों को हम ससम्मान बुलाकर,
अबके घर में उनके घुसकर उनके शीश काट सारे दाग धोलूँ मै,
झूल रहे है दो शीश...!
कैसे आज तीज के झूले झूलूँ मै....
दो सर आज भी झूल रहे है उनकी संगीनों पर...
कैसे भूलूँ मै!
जय हिन्द ,जय श्रीराम,
कुँवर जी,