शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

संवेदना दिखाने को संवेदनहीन होते लोग,(कविता), (वयंग्य)

संवेदना दिखाने को
संवेदनहीन होते लोग,

दुसरो को जगाने के लिए
अपने होश खोते लोग!

हाँ मै अभी जिन्दा हूँ,
बस यही बताने के लिए
जिंदगी को ढोते लोग!

ओरो की नींद उड़ा,
खुद चैन से सोने के
सपने संजोते लोग!

भगवान् ने इंसान बनाए
वो ही अब
हिन्दू-मुस्लिम होते लोग!

हथियार उठा जो खड़े थे
मैदान में,
छुप कर सबसे
अकेले में वो रोते लोग!





जय हिंद,जय श्रीराम,
कुंवर जी,

गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

चलो माहौल कुछ शायराना हो जाए,दिल के जख्म दिखाने का कुछ तो बहाना हो जाए!

चलो माहौल कुछ शायराना हो जाए,
दिल के जख्म दिखाने का कुछ तो बहाना हो जाए!

तुम अपनी बात कहना हम अपनी कहेंगे,
बीती बातो का फिर से दोहराना हो जाए!

झेला तो बहुत है जिंदगी को सभी ने,
आओ एक-दुसरे को समझाना हो जाए!

संजोया है जो मर-जी कर हमने,
देखने-दिखाने को वो ग़मो का खजाना हो जाए!

मै आह भरूँगा तुम वाह करना,
इस नादाँ को ऐसे ही समझाना हो जाए!


कोई बड़ा तीर मार नहीं पाए तो क्या,
उन छोटी-मोटी भूलो पर ही इतराना हो जाये!

हरदीप चल कुछ ऐसा लिख दे आज,
कल जिसे पढ़ जग ये सयाना हो जाए!


कुछ मुस्कुराने का बहाना हो जाए,
जो माहौल कुछ शायराना हो जाए!

जय हिंद,जय श्रीराम,
कुंवर जी,

मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

आज आदमी की सोच इतनी बीमार क्यों है?(कविता), (वयंग्य)

कल जब आदरणीय गोदियाल जी की ये कविता वयंग्य  पढ़ी!तो शब्दों को तो जैसे कोई पगडण्डी मिल गयी हो!बढ़ चले उस ओर ही!राह में जितने भी "क्यों" मिले सब को एकत्रित कर ले आये मेरे पास!अब मुझ अज्ञानी के पास इनके उत्तर है नहीं!शायद आप के पास हो,यही सोच कर इन्हें आपके सुपूर्द कर रहा हूं जी!



आज आदमी की सोच इतनी बीमार क्यों है?
समर्थ होकर भी वो लाचार क्यों है?

बदलना है तो आज क्यों नहीं,
ये खामख्वाह ही कल का इंतज़ार क्यों है?
चुकती कर दी सबकी देनदारी फिर भी,
अपने प्रति बाकी ये उधार क्यों है?

जो खुद की नजरो में तो गिरा पड़ा है,
वो समाज में इतना इज्ज़तदार क्यों है?
झूठ बोल-बोल कितने ही आदर्श बन गए.
सच बोलने वाला आज गुनाहगार क्यों है?

छला जाता हूँ हर बार फिर भी,
हर किसी पर मेरा ऐतबार क्यों है?
बेशर्म तो जी रहा मस्त ऐश में,
जिसने शर्म की वो ही शर्मशार क्यों है?

जिनके मन काले है भीतर से,
उनके ही मुख पे इतना निखार क्यों है?
पलके जो गीली है,
उन ही आँखों में ये अंगार क्यों है?




जय हिंद.जय श्रीराम,
कुंवर जी,

सोमवार, 26 अप्रैल 2010

पता नहीं क्या चाहते है ये दुनियावाले मुझ से?(वयंग्यिका)

मेरा पिछली पोस्ट का अनुभव बड़ा ही ख़ास रहा!मुझे एहसास हुआ कि कितने  सज्जन मेरे हित में सोच रहे है!मै अकेला नहीं हूँ यहाँ!मुझे गिरता देख कितने ही सज्जन मुझे सम्हालने के लिए तत्पर दिखे!
आज के समय मे अपनी इस अनन्त  व्यस्तता में से भी आप सब ने मुझ तुच्छ के लिए समय निकाला,उस के लिए मै आप सबका धन्यवाद करना चाह रहा हूँ!आभार वयक्त करना चाह रहा हूँ,पर कैसे?
मै कोशिश करूँगा कि अपना सर्वश्रेष्ठ सदैव आपके समक्ष प्रस्तुत करूँ!
विचारो कि उधेड़बुन जो सदा ही मन में चलती रहती है वो कभी-कभी शब्दों का सहारा पाकर ना जाने क्या बन जाती है!ऐसी ही एक उधेड़-बुन सी आज आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ,इसे सुलझाने में आप मेरी मदद जरुर करेंगे,पता नहीं क्यूँ,मुझे ऐसा लग रहा है!





ना सोचे तो लापरवाह 
सोचने लगे तो चिंतित,
ना करे तो कामचोर
करने लगे तो पागल,
पता नहीं क्या चाहते है ये दुनियावाले
मुझ से,
डुबोना,
तैराना
या फिर
कि बैठा ही रहूँ मै
उस ओर ही नदी के.....?
विचारो की इस लहर को
 साहिल तक पहुंचाऊं
या
समा जाने दूं सागर में ही......?

जय हिंद,जय श्रीराम,
कुंवर जी,

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

मै ब्लॉग-जगत से माफ़ी मांगता हूँ,यदि मेरी वजह से ब्लॉग्गिंग का स्तर गिरा है तो!लेकिन कोई आगे तो आये सही क्या है बताने के लिए....

अभी कुछ देर पहले ही ये क्यों  और  किसके  लिए  कर  रहे  है  ब्लॉग्गिंग  ब्लॉग पढ़ा!वहा जो पोस्ट दिखाई गयी है उन पोस्टो में से एक मेरी पोस्ट है!बाकी के बारे मै कुछ नहीं कह सकता!परन्तु यदि मेरी वजह से ब्लॉग्गिंग का स्तर किसी भी तरह से गिरा है तो मै सम्पूर्ण ब्लॉगजगत से माफ़ी मांगता हूँ!एक अपील भी है!आप मेरे ब्लॉग पर आये,मेरी और पोस्ट भी पढ़े,यदि फिर भी आप लोगो को लगता है कि मै गलत राह पर चल रहा हूँ,तो कोई औचित्य नहीं मेरे इस तरह से आने वाली पीढ़ी को गलत-सलत परोसने का!मै स्वयं ब्लॉग पर लिखना छोड़ दूंगा!


यदि मेरी गलती है तो इसका सबसे अच्छा इलाज यही है कि मै अपनी गलती सुधार लूं!इसके लिए अच्छे और सच्चे मार्गदर्शक का हमारे समीप या संपर्क में होना निहायत ही जरुरी है!मुझे सौभाग्य से ऐसा  आदर्श  मार्गदर्शक  मिल भी गया!जो मेरे समीप भी है और संपर्क में भी है!उन्होंने समय रहते चेताया भी था मुझे कि मै थोडा सा भटकता सा प्रतीत हो रहा हूँ!लेकिन अपना अनुभव भी कुछ होता है,शायद यही सोच कर उन्होंने मुझे रोकने की बजाये बस इशारा भर किया था!


अभी समस्या यह हो रही है कि जिन्होंने मुझे या मेरे तरीके को गलत बताया है और जिन्होंने उनका पुरजोर समर्थन किया है उनमे अधिकतर वो ही है जो भूतकाल में उन पोस्टो के कारण-पोस्टो की या उन में से किसी पोस्ट की प्रंशसा कर चुके थे!अब इसे क्या समझा जाए?


यहाँ भी समर्थन और वहां भी समर्थन!भई वाह! क्या अब वो ही निर्धारित करेंगे ब्लॉग्गिंग स्तर?


अभी दिल कुछ ज्यादा ही उबाल खा रहा सो अधिक नहीं!


बस एक बार फिर मै ब्लॉग-जगत से माफ़ी मांगता हूँ,यदि मेरी वजह से ब्लॉग्गिंग का स्तर गिरा है तो!मै तो अभी नया ही हूँ इस ब्लॉग जगत में!मै भी शायद ना समझ पाऊं की क्या गलत है,लेकिन कोई आगे भी तो आये सही क्या है बताने के लिए....!




जय हिंद,जय श्रीराम,



कुंवर जी

अब इतनी जिम्मेवारी तो हमारी बनती ही है कि हम सजग रहे!एक विचार....

क्या आप एक सामजिक आदमी और धार्मिक आदमी में फर्क महसूस करते है!मतलब धर्म और समाज कितने जुड़ा है एक-दुसरे से!क्या एक सामजिक आदमी धार्मिक हो सकता है या एक धार्मिक आदमी सामाजिक नहीं हो सकता!कई बार जो बाते समाज के हिसाब से हितकर होती है धर्म उसे मान्यता नहीं देता!कई बार समाज ही धर्म की बातो के खिलाफ दिखाई देता है!हालांकि मै अभी "धर्म" को ही नहीं समझ पाया हूँ अभी,शायद तभी ऐसा कहने की गलती कर रह हूँ!और अज्ञानी कहाँ नहीं हो सकते!किन्ही विषयों में कोई अज्ञानी है,किन्ही में कोई!


मै यदि कुछ बोल रहा हूँ तो वो मेरी जिम्मेवारी है कि मै सिर्फ वो ही बोलू जो मेरी जानकारी,अनुभव और बुद्धि से मेल खा रहा हो!इसमें यदि मेरी बुद्धि किसी और के हितो के बारे में भी उतनी ही सजग है जितनी कि मेरे खुद के हितो के बारे में तो शायद मै जो बोलूँगा वो सभी को अच्छा भी लगेगा और सभी के लिए हितकर भी होगा,अब चाहे मेरी जानाकरी और अनुभव मुझे कुछ भी कह रहे हो!


हर कोई ये तालमेल सदैव बना के रखे,क्या ये सभी के लिए सम्भव है!कभी-कभी बुद्धि भी विचलित हो जाती है,कभी जानकारी और कभी अनुभव के चक्करों में पड़ जाती है!कई बार हम वो नहीं बोल पाते जो हम वास्तव में कहना चाहते है,बल्की वो ही बोल जाते है जो दूसरा हम से कहलवाना चाह रहा है!


अब इतनी जिम्मेवारी तो हमारी बनती ही है कि हम सजग रहे!


ये बाते अमित  भाई  की पोस्ट पर दी गयी टिपण्णी है!कुछ अच्छा पढेंगे तो अच्छा लिखने की भी प्रेरणा मिलती ही है!क्यों जी......


जय हिंद जय श्रीराम,
कुंवर जी,

गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

मुस्लिम समाज को कलंकित करने वालो के लिए "एजाज़ भाई" ने पेश की सरहानीय मिसाल!और हाँ!इसे वो भी पढ़े जो ये कहते है की मुस्लिम समाज सिर्फ कट्टर लोगो का समाज है,इसमें सुधार की गुंजाईश नहीं है!(एक विचार....!)

कल मेरी पोस्ट पर जो सबसे पहले टिप्पणी आई,वो चौंकाने वाली थी!टिप्पणीकार थे श्रीमान एजाज इद्रेसी!
ये वो ही एजाज भाई जान थे जो कुछ दिन पहले कह रहे थे कि "क्या आप के घर में सभी वेद,पुराण और धार्मिक ग्रन्थ है,या आप अभी खरीदने वाले हो!:"
इसी पोस्ट कि एक टिप्पणी में उन्होंने कहा था कि,"ये तो शुरुआत है,आगे-आगे देखिये होता है क्या?"
और ये सब आगे चल कर वो सिद्ध भी करते दिखाई दिए!ब्लोग्वानी ने इसी कट्टरता को देखते हुए इनकी पोस्ट भी ब्लोग्वानी से हटा दी थी!
लेकिन ये कलम के सच्चे सिपाही थे!हार नहीं मानी और लगातार लिखते रहे!लेकिन कब तक ये सच्चाई से भागते!अल्लाह का लाख-लाख शुक्र है कि जल्द ही इनको गलत राह से सही राह पर पहुंचा दिया!

आदमी गलती करता है,और भूल जाता है!लेकिन एक समझदार आदमी गलतियों से भी सीख लेता हुआ चलता है!गलतिया हो जाती है पर उनको सुधारा भी जा सकता है इसी की मिसाल एजाज़ भाई ने पेश की है! वो मिसाल देखने के लिए यहाँ  क्लिक   करे.... !





यहाँ उन्होंने स्वीकार है कि वो सब उन्होंने किसी के बहकावे में आकर किया था!मै ज्यादा नहीं लिखूंगा आप स्वयं ही दिए गए लिन्क पर जाकर देखे तो बेहतर रहेगा!
गलती मानने का सहास कोई छोटी बात नहीं!यहाँ तो ऐसे-ऐसे भी है जो एक बात को पकड़ कर ही ब्लॉग्गिंग कर रहे है!कुछ का ये हाल है कि चोरी तो छूट गयी है,पर हेरा-फेरी......?

आज जब एजाज़ भाई ने ये सहासिक कदम उठाया है तो क्यों ना सारा ब्लॉग-जगत उनके साथ खड़ा हो जाए!दिखा देना चाहिए उन अभिमानियो को कि अच्छे कदमो का हर जगह स्वागत होता है!शायद उन पर कुछ फर्क पड़े!हर किसी को इस से प्रेरणा लेनी चाहिए!

जय हिंद,जय श्री राम!
कुंवर जी, 

बुधवार, 21 अप्रैल 2010

देखना एक बार क्या ये सच्ची बात है?(वयंग्य),

देखना एक बार ये आँखों की चमक
ये हाथो की पकड़
ये होंठो पर मुस्कान
क्या सच्ची बात है!
या फिर
महज़ औपचारिकताओं की
करामात है!

ये फोटो अभी कुछ दिन पहले दैनिक  जागरण  में  छपा  था!देख कर कुछ अटपटा सा तो लगा,पर सोचा काश ये सब सच्चा होता!आप क्या सोचते है इस बारे में.....?

मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

एक रेल 150 की.मी./घंटा की रफ़्तार से आ रही है, और दूसरी 123 की.मी../घंटा की रफ़्तार से जा रही है,तो बताओ मेरी उम्र कितनी?"(हास्य-वयंग्य)

बहुत  पुरानी  तो  बात  नहीं  है  खैर!फिर भी पुरानी तो है ही,काफी समय से सुनते आ रहे है!
हमारे विद्यालय की दीवारे भी तब ज्यादा ऊँची नहीं होती थी!ये तो अब करनी पड़ी जब विद्यालयों की लड़कियों को देखने वालो को आंखो से ही डराना पर्याप्त ना रहा!
हाँ तो तब जब दीवारें ऊँची नहीं थी!बहार  से  अन्दर  साफ़  दिखाई  दे  जाता  था!एक ताऊ बहार खेतो में गाय-भैंस चरा रहा था!वो क्या देखता है के एक अध्यापक महोदय कक्षा के सभी बच्चो की एक-एक कर के पिटाई करता जा रहा था!जब बहुत देर हो गयी और सीन ना बदला तो ताऊ जी रहा ना गया!वो दीवार फांद कर अन्दर!सीधे कक्षा में!पूछने पर पता चला के मास्टर जी ने जो सवाल पूछा उसका जवाब नहीं था किसी के पास!ताऊ जी ने कहा-"मास्टर जी वो सवाल सा एक बार मुझ से भी पूछ लो!क्या पता मै जवाब दे दूं!

मास्टर जी बोले  "जब हाई क्लास के बच्चे इस सवाल को हल नहीं कर पाए तो आप क्या हल करेंगे!"

ताऊ जी ने थोड़ी सी अपनी टोन पकड़ते हुए कहा-"टेम क्यूँ खराब करो हो?"

मास्टर जी समझ गये!बोले-"सवाल ये है,एक रेल 150 की.मी./घंटा की रफ़्तार से आ रही है, और दूसरी 123 की.मी../घंटा  की रफ़्तार से जा रही है,तो बताओ मेरी उम्र कितनी?"


ताऊ जी ने बहुत गहन विचार के बाद जवाब दिया, "मास्टर जी आपकी उम्र है 42 साल!
मास्टर जी हैरान,परेशान!बोले."ताऊ जी आपका गणित लाजवाब है!आपने किस फार्मूले से सही जवाब निकाला है?"
ताऊ जी-"फार्मुल-वार्मुला तो कुछ नहीं!बस एक बात का विचार किया के हमारे छोटे लड़के की उम्र 21  साल है और वो आधा पागल है!और मुझे आप पूरे पागल लगे!बस ये बात थी!अब आप मास्टर हो,और तो कुछ नहीं कहा जा सकता जी!

अब मै सोच रहा हूँ कि आज-कल ब्लॉग जगत में जो लोग उलटे सीधे सवाल पूछने में ही अपनी उर्जा खपा रहे है वो 21 साल के है या 42 के!मेरे जैसे मुर्ख,कम उम्र,कम अक्ल ये काम करे तो शोभा भी दे,पर  यहाँ तो कई डॉक्टर भी है!ऐसा लगता है जैसे अभी सारी समस्याओं को निपटा देंगे,सवाल खड़ा कर के ही बस!कुछ तो विचार करना चाहिए!



जय हिंद,जय श्रीराम,
कुंवर जी, 

सोमवार, 19 अप्रैल 2010

कभी-कभी मै मजबूर हो जाता हूँ सोचने को कि,ऐसा भी हो सकता है क्या?(कविता),

मानवीय संवेदनाये कब-कहाँ क्या रूप धर ले इसे समझना अभी तक काफी मुश्किल रहा है,मेरे लिए तो कम से कम!नहीं मालूम खुद का भी तो औरो को तो क्या ख़ाक जान पाऊंगा मै!फिर भी शब्दों के सहारे कभी खुद को कभी किसी और को समझाने निकल पड़ता हूँ जी!या यूँ कहे कि शब्द खुद ही निकल पड़ते है,तो ज्यादा ठीक रहेगा!आज आपके समक्ष प्रस्तुत है शब्दों का ऐसा ही अनजान सा सफ़र.......

कभी-कभी मै मजबूर हो जाता हूँ सोचने को कि,
ऐसा भी हो सकता है क्या?




.सूरज को दर्पण दिखाऊं ऐसी मेरी औकात नहीं,
घडी भर को नभ पे जो छा जाए बादल,हो जाती रात नहीं,
सुख-दुख जो मिलते है कैसे कहूं ये सब उस ही की सौगात नहीं,
निशा बीते और हो प्रभात नहीं,
ऐसा भी हो सकता है क्या?

मन ही तो है,मनमानी कर गया तो भला क्यों विलाप हुआ,
किसी के लिए मुक्ति तो किसी के लिए अभिशाप हुआ,
संवेदना इतनी भी क्यों जगाई प्रभु,जो सुख में भी संताप हुआ,
बिना तेरी मर्जी के मुझ से ये पाप हुआ,
ऐसा भी हो सकता है क्या?


अतीत को वर्तमान पे लाद पता नहीं क्या पाऊंगा?
अतीत का बोझ यूँ ही क्या मै ताउम्र उठाऊंगा?
ना चाहते हुए भी थक जो गया तो कहाँ जाऊँगा?
मै कुछ भी नहीं कर पाऊंगा,
ऐसा भी हो सकता है क्या?


खूब जिया है ऐसे पलो को हमने भी क्या बताना पड़ेगा,
जिन पलो में मृत थे हम वो वक़्त क्या फिर दोहराना पड़ेगा,
विशवास दिलाने की खातिर क्या घाव भी दिखाना पड़ेगा,
मुझे उसे फिर से बुलाना पड़ेगा?
ऐसा भी हो सकता है क्या?


जय हिंद, जय श्री राम


कुंवर जी,

शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

कृप्या सच्चे मुसलमान भाई इसे ना पढ़े! मै नहीं चाहता मेरी वजह से किसी मुस्लिम भाई के इस्लाम का उल्लंघन हो!लेकिन जवाब कौन देगा भाई?

मेरा इरादा कभी भी किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कतई नहीं रहा है!बस विषय कई बार ऐसे होते है कि कई बार बहस चल ही पड़ती है!हो  सकता  है  कि मै गलत हूँ,तो सही बताने वालो का भी स्वागत है जी!


 "मुफ्ती अब्दुल कुदूस रूमी ने फतवा जारी करते हुए कहा कि राष्ट्रगान का गायन उन्हें मुस्लिमों को नरक पहुँचाएगा। बहिष्त लोगों में लोहा मण्डी और शहीद नगर मस्जिदों के मुतवल्ली भी थे। इनमें से 13 ने माफी मांग ली। आश्चर्य की बात है कि अपराधिक गतिविधियों में शामिल होना, आतंकवादी कार्रवाईयों में भाग लेना, झूठ, धोखा, हिंसा, हत्या, असहिष्णुता, शराब, जुआ, राष्ट्र द्रोह और तस्करी जैसे कृत्य से कोई नरक में नहीं जाता मगर देश भक्ति का ज़ज़बा पैदा करने वाले राष्ट्र गान को गाने मात्र से एक इंसान नरक का अधिकारी हो जाता है।"
इसीलिए मै सच्चे मुसलमान भाइयो से पहले ही अपील कर चुका हूँ!
                           
वन्दे मातरम्‌ गीत आनन्दमठ में 1882 में आया लेकिन उसको एक एकीकृत करने वाले गीत के रूप में देखने से सबसे पहले इंकार 1923 में काकीनाड कांग्रेस अधिवेशन में तत्कालीन कांग्रेसाध्यक्ष मौलाना अहमद अली ने किया जब उन्होंने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के हिमालय पं. विष्णु दिगम्बर पलुस्कर को वन्दे मातरम्‌ गाने के बीच में टोका। लेकिन पं. पलुस्कर ने बीच में रुकर कर इस महान गीत का अपमान नहीं होने दिया, पं- पलुस्कर पूरा गाना गाकर ही रुके।


उस हिसाब से  तो ब्रिटेन के राष्ट्र गान में रानी को हर तरह से बचाने की प्रार्थना भगवान से की गई है अब ब्रिटेन के नागरिकों को यह सवाल उठाना चाहिए कि कि भगवान रानी को ही क्यो बचाए, किसी कैंसर के मरीज को क्यों नहीं?
बांग्लादेश से पूछा जा सकता है कि उसके राष्ट्रगीत में यह आम जैसे फल का विशेषोल्लेख क्यों है?
सउदी अरब का राष्ट्रगीत ‘‘सारे मुस्लिमों के उत्कर्ष की ही क्यों बात करता है और राष्ट्रगीत में राजा की चाटुकारिता की क्या जरूरत है?सीरिया के राष्ट्रगीत में सिर्फ ‘अरबवाद की चर्चा क्या इसे रेसिस्ट नह बनाती? ईरान के राष्ट्रगीत में यह इमाम का संदेश क्या कर रहा है? लीबिया का राष्ट्रगीत अल्लाहो अकबर की पुकारें लगाता है तो क्या वो धार्मिक हुआ या राष्ट्रीय?


शम्सु इस्लाम हमें यह भी जताने की कोशिश करते हैं कि वन्दे मातरम्‌ गीत कोई बड़ा सिद्ध नहीं था और यह भी कोई राष्ट्रगीत न होकर मात्र बंगाल गीत था। वह यह नहीं बताते कि कनाडा का राष्ट्रगीत 1880 में पहली बार बजने के सौ साल बाद राष्ट्रगीत बना। 1906 तक उसका कहीं उल्लेख भी नहीं हुआ था। आस्ट्रेलिया का राष्ट्रगीत 1878 में सिडनी में पहली बार बजा और 19 अप्रैल 1984 को राष्ट्रगीत का दर्जा प्राप्त हुआ।


सवाल यह है कि इतने वषो तक क्यों वन्दे मातरम्‌ गैर इस्लामी नहीं था?


क्यों खिलाफत आंदोलन के अधिवेशनों की शुरुआत वन्दे मातरम्‌ से होती थी और ये अहमद अली, शौकत अली, जफर अली जैसे वरिष्ठ मुस्लिम नेता इसके सम्मान में उठकर खड़े होते थे। बेरिस्टर जिन्ना पहले तो इसके सम्मान में खडे न होने वालों को फटकार लगाते थे। रफीक जकारिया ने अपने निबन्ध में इस बात की ओर इशारा किया है। उनके अनुसार मुस्लिमों द्वारा वन्दे मातरम्‌ के गायन पर विवाद निरर्थक है। यह गीत स्वतंत्रता संग्राम के दौरान काँग्रेस के सभी मुस्लिम नेताओं द्वारा गाया जाता था। जो मुस्लिम इसे गाना नहीं चाहते, न गाए लेकिन गीत के सम्मान में उठकर तो खड़े हो जाए क्योंकि इसका एक संघर्ष का इतिहास रहा है और यह संविधान में राष्ट्रगान घोषित किया गया है।


1906 से 1911 तक यह वंदे मातरम्‌ गीत पूरा गाया जाता था तो इस मंत्र में यह ताकत थी कि बंगाल का विभाजन ब्रितानी हुकूमत को वापस लेना पडा, लेकिन, 1947 तक जबकि इस मंत्र गीत को खण्डित करने पर तथाकथित ‘राजनीतिक सहमति बन गई तब तक भारत भी इतना कमजोर हो गया कि अपना खण्डन नहीं रोक सका यदि इस गीत मंत्र के टुकड़े पहले हुए तो उसकी परिणति देश के टुकडे होने में हुई।मदनलाल ढींगरा, फुल्ल चाकी, खुदीराम बोस, सूर्यसेन, रामप्रसाद बिस्मिल और अन्य बहुत से क्रांतिकारियों ने वंदे मातरम कही कर फासी के फंदे को चूमा। भगत सिंह अपने पिता को पत्र वंदे मातरम्‌ से अभिवादन कर लिखते थे। सुभाषचं बोस की आजाद हिन्द फौज ने इस गीत को अंगीकार किया और सिंगापुर रेडियो स्टेशन से इसका प्रसारण होता था।


ये है जी वो हमारा सर्व-सम्माननीय राष्ट्रगीत!


सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्

सस्य श्यामलां मातरंम् .
शुभ्र ज्योत्सनाम् पुलकित यामिनीम्
फुल्ल कुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम् .
सुखदां वरदां मातरम् ॥

कोटि कोटि कन्ठ कलकल निनाद कराले
द्विसप्त कोटि भुजैर्ध्रत खरकरवाले
के बोले मा तुमी अबले
बहुबल धारिणीम् नमामि तारिणीम्
रिपुदलवारिणीम् मातरम् ॥



तुमि विद्या तुमि धर्म, तुमि ह्रदि तुमि मर्म
त्वं हि प्राणाः शरीरे
बाहुते तुमि मा शक्ति,
हृदये तुमि मा भक्ति,
तोमारै प्रतिमा गडि मन्दिरे-मन्दिरे ॥


त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी
कमला कमलदल विहारिणी
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्
नमामि कमलां अमलां अतुलाम्
सुजलां सुफलां मातरम् ॥


श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्
धरणीं भरणीं मातरम् ॥


आज कि सारी सामग्री मैंने "वन्देमातरम इतिहास विकिपीडिआ" से ली है!मै इसके लिए 
"वन्देमातरम इतिहास विकिपीडिआ" का आभारी हूँ!u -tube पर सुनने-देखने के लिए नीचे दिए गए लिन्क पर क्लिक कर के कुछ महसूस करे! चित्र भी गूगल से ही लिया है!


http://www.youtube.com/watch?v=xj1Iy4nRMkc




"इस देश में असंख्य अल्पसंख्यक वन्दे मातरम्‌ के प्रति श्रद्धा रखते हैं। यह उनकी श्रद्धा का अपमान ही था जब आगरा में 10 मार्च 2004 को 54 मुसलमानों को जाति बाहर कर दिया गया और उनकी शादिया शून्य घोषित कर दी गई क्योंकि उन्होंने  कहीं ये कह दिया था कि वन्दे मातरम्‌ गाना गैर इस्लामी नहीं है।"


सवाल यह है कि इतने वषो तक क्यों वन्दे मातरम्‌ गैर इस्लामी नहीं था?



क्यों खिलाफत आंदोलन के अधिवेशनों की शुरुआत वन्दे मातरम्‌ से होती थी और ये अहमद अली, शौकत अली, जफर अली जैसे वरिष्ठ मुस्लिम नेता इसके सम्मान में उठकर खड़े होते थे। बेरिस्टर जिन्ना पहले तो इसके सम्मान में खडे न होने वालों को फटकार लगाते थे।




कृप्या सच्चे मुसलमान भाई इसे ना पढ़े! मै नहीं चाहता मेरी वजह से किसी मुस्लिम भाई के इस्लाम का उल्लंघन हो!लेकिन जवाब कौन देगा भाई?











जय हिंद जय श्रीराम,
कुंवर जी,

गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

पंडित जसराज जी को एक अनोखा उपहार!

पंडित जसराज जी का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है!ऐसे कलाकार को कल हरियाणा सरकार ने एक अलग तरह का तोहफा दिया!विस्तृत खबर के लिए नीचे दिए गए लिन्क पर क्लिक करे!
yaha...

आज सुबह-सुबह ये पढ़ कर बहुत अच्छा लगा!किसी प्रतिभा का सम्मान करना हमारी पुरानी परम्परा रही है!लेकिन उनके पुश्तैनी घर,गाँव,नगर को हम अमूमन नजरअंदाज ही करते रहे है!एक अनजान सी,अनावश्यक सी परम्परा ये भी चली ही आ रही है!

ऐसा तो पहले भी बहुत हुआ है कि मुख्यमंत्रियों,सांसदों ने अपने गाँव के लिए बहुत से विकास कार्य करवाए या किये!लेकिन एक प्रतिभा का सम्मान उसके गाँव को देकर एक अच्छा उदाहरण दिया श्री हुड्डा जी ने!ऐसे कितने ही कलाकार और खिलाड़ी है जिनका गाँव आज भी गुमंनामी के अंधेरो में ही पड़ा हुआ है!

ऐसे सरकारी कदमो से कलाकारों में हौसला तो बढ़ता ही है साथ ही उनके घर-गाँव वालो में उन्हें सहयोग देने की भावना भी तो बढती है!ये एक जरुरी और प्रशंशनीय शुरुआत मै कहूं तो गलत ना होगा!


जय हिंद,जय श्री राम, 
कुंवर जी, 

बुधवार, 14 अप्रैल 2010

ये गर्व भरा, मस्तक मेरा....!

कितने ही भजन हमारे दिल को छू जाते है!कुछ तो शत-प्रतिशत हमारे दिल कि बात कहते से प्रतीत होते है!ऐसे ही कुछ एक भजनों में से एक आज आप के लिए लाया हूँ!मुझे नहीं पता था कि  किसकी रचना है,किसने संगीत दिया है और किसने गाया है!लेकिन सभी कुछ चरम पर है अपने,लेखन,गायन और संगीत!सभी कुछ!शब्दों की गहराई को महसूस करें.... 



ये  गर्व  भरा, मस्तक  मेरा
प्रभु  चरण धुल तक झुकने  दे,
अहंकार  विकार भरे  मन  को
निज  नाम  की माला, जपने  दे
ये  गर्व  भरा....


मै  मन  के  मैल  को धो  न  सका
ये  जीवन तेरा हो  न सका!-2
हाँ !हो  न  सका,
मै  प्रेमी  हूँ,इतना  ना  झुका!
गिर भी  जो  पडूँ  तो, उठने  दे!
ये  गर्व  भरा....


मैं ज्ञान की बातों ने खोया,
और कर्म-हीन पड़कर सोया!-2
जब आंख खुली तो मन रोया;
जग सोये मुझको जगने  दे!
ये  गर्व  भरा....




जैसा हूँ मै खोटा  या  खरा,
निर्दोष  शरण  में आ  तो  गया!-2
हाँ, आ  तो  गया!
इक   बार  ये कहदे  खाली  जा,
या प्रीत की रीत छलकने  दे!
ये  गर्व  भरा....

गूगल पर ढूँढा तो नीचे दिया गया लिन्क मिला इस भजन को सुनाने के लिए...!चित्र भी गूगल से ही उठाया है!
सुने आराम से!

http://www.youtube.com/watch?v=JNgJiFWy3xA

जय हिंद,जय श्री राम!

कुंवर जी,

मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

अरे हिन्दू होगा!(वयंग्य),

राम राम जी,,,
मेरी पिछली कविता ने मेरे मन में कई प्रशन खड़े कर दिए!एक तो यही कि आखिर ये हिन्दू कौन है भई? 

ये हिन्दू कौन है भई?
पहले  जो वयांख्या थी,पहले थी!
अब तो जो बेचारा सा लगे,
भाइयो में भी न्यारा से लगे,
एक समर्थ मजबूर जो है,
वही हिन्दू है!


आज जो स्थिति बनती जा रही है हिन्दू की,उस पर बहुत दुखी होकर ये पंक्तियाँ  लिखी जा रही है!
हर कोई हिन्दू "शब्द" को भी और "हिन्दू"
को भी अपने मतलब के हिसाब से प्रयोग कर रहा है!इसके लिए जिम्मेवारी कौन ले!

हद की बात तो ये है कि हर कोई चाहता है कि भगत सिंह पैदा हो,पर हमारे घर में नहीं,पड़ोसी के घर में!नीचे जो लिखा गया है वो थोडा और स्पष्ट करेगा कि हिन्दू कौन है!


जो मर्जी उसे कुछ भी कह जाता था
वैसे घर उसी का था मगर,
हर कोई उसे धमका जाता था!
'तुझे बोलने का हक़ नहीं'
कह कर हर कोई उसे दबाता था!
डरपोक तो वो  था
पर निर्लज्ज नहीं बेचारा,
जब ही तो
आंसुओ को अपने छुपाता था!
जो  भी  सुनता कहता...
अरे हिन्दू होगा!


वो गरीब है,लाचार है,
थोडा मानसिक बीमार है,
मज़बूरी दिखता फिरता है
अब ये ही उसका व्यवहार है,
अपनी कायरता पर रो-रो कर
साहनुभूति लेना 
उसका जन्मसिद्ध अधिकार है!
कोई सुनता है तो कहता है...
अरे हिन्दू होगा!


जय हिंद,जय श्री राम,
कुंवर जी,









शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

ओ हिन्दू जाग!क्योंकि सभी को जगाना है!...(कविता),

ओ हिन्दू जाग!क्योंकि सभी को जगाना है!
पहले खुद को जान जो सबको बतलाना है!


शिराओ में बहता  खून जैसे पानी हो गया है,
रबड़ और नालियों में बहने का नाम ही जवानी हो गया है,
हुंकार भरने का विचार अब आसमानी हो गया है,
मन की मानना ही बस अब मनमानी हो गया है!
पुराना इतिहास तो कहानी हो गया है,अब नया बनाना है!




जमीर मर गया है या सो रहा है ये सोचना पड़ेगा,
क्या करना है और क्या हो रहा है सोचना पड़ेगा,
सही भी है या नहीं जो हो रहा है सोचना पड़ेगा,
क्या पाने के लिए क्या खो रहा है सोचना पड़ेगा!
कैसे जीना है सोचना पड़ेगा,नहीं तो मर जाना है!


कल नहीं सोचा था तो आज मजबूर है हम,
जो चल पड़े तो भला मंजिल से कब दूर है हम,
पुष्प कि ज्यूँ  कोमल तो यम की तरह क्रूर है हम,
मृत्य के सम्मुख भी सीना तान ले जो वो ही शूर है हम!
खाली दंभ में नहीं चूर है हम,ये भी तो दिखाना है!
















जय हिन्द,जय  श्री राम!



कुंवर जी,

मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

हिन्दुओ की ये भावना के "कुत्ता भौंक कर अपने आप चुप हो जाएगा" काफी हद तक जिम्मेवार है कुत्ते की भों-भों सुनने के लिए!

आजकल जो ब्लोग्युद्ध सा छिड़ा हुआ है ब्लॉगजगत में हिन्दू-मुस्लिम संस्कृतियों को लेकर अपने-आप में दुर्भाग्यपूर्ण है!और जो वास्तव है में वो तो अति-घृणित भी! लेकिन जब कोई हमारे बारे में कुछ गलत कह रहा है तो उसे उसका जवाब भी तो मिलना चाहिए!जो सक्षम है जवाब देने में वो तो जवाब जरुर देंगे,देना भी चाहिए!हिन्दुओ की ये भावना के "कुत्ता भौंक कर अपने आप चुप हो जाएगा" काफी हद तक जिम्मेवार है कुत्ते की भों-भों सुनने के लिए!



असल में ये पोस्ट लिखी गयी है एक नीचे दिए गिये लिंक पर लिखे गए एक लेख पर टिप्पणी करते हुए!विस्तार से जानने के लिए नीचे क्लिक करें!  

 http://samrastamunch.blogspot.com/2010/04/blog-post_3276.html  इस तरह के कुत्ते सिर्फ मुस्लिम ही नहीं बल्कि इसाई जगत में भी पाए जाते है!और तो और हिन्दू धर्म से जो उप-धर्म निकले है उनमे भी और जो अभी तक भी खुद को हिन्दू मान रहे है वो भी इन कुत्तानुमा वयवहार ही कर रहे है!




कुत्ते से एक बात याद आ गयी,कवी सुरेंदर शर्मा जी की!अपने शब्दों का प्रयोग कर रहा हूँ,जो गलती होगी वो मेरी ही होगी!

एक फौजी की शादी हो गयी जी,बन्दे के पास अपनी दोनाली बन्दुक!नयी-नयी दुल्हन घर में!फौजी साहब खाना खा रहे है जी,बन्दूक पास में रखी है!
एक कुत्ता वही बैठा था,जब उसे काफी देर तक टुकड़ा नहीं मिला तो बेचारा आदतन भौंकने लगा!जब काफी देर हो गयी तो फौजी बोला "कुत्ते चुप"!अब बिना टुकड़े वो कहाँ चुप होने वाला था!वो भौंकता रह जी!फौजी बोला "कुत्ते चुप,मेरी बन्दूक नहीं देखी क्या?"अब कुत्ता कोई पढ़ा-लिखा डॉक्टर तो था नहीं!वो बेचारा बन्दूक क्या देखता,वो तो रोटी देख रहा था!रोटी मिली नहीं तो वो भौंकता रहा!
अब हो गयी जी हद!फौजी साहब अपने वास्तविक रूप में आते हुए बोले कुत्ते मै तीन तक गिनूंगा,चुप हो गया तो ठीक नहीं तो फिर देख लेना!
कुत्ता अब भी नहीं समझ पाया बेचारा!कुत्ता जो था!उधर गिनती शुरू!कुत्ते चुप हो जा एक...कुत्ते चुप हो जा दो...कुत्ते चुप होजा तीन....!


कुता बेचारा सच में अनपढ़ था!गिनती का महत्त्व नहीं जानता था,भौंकता रहा गिनती के दौरान भी और बाद भी!
गिनती पूरी और बस एक फायर ही काफी था उस कुत्ते के लिए तो!सदा के लिए चुप!फौजी अपनी जीत पर अति प्रसन्न!अब आराम से खाना खाया उसने!लेकिन उसकी पत्नी थोड़ी जागरूक नारी थी!वो ये अत्याचार सहन ना कर पायी!उसने आवाज उठायी!


फौजी पतिधर्म के तहत सब सुनने लगा!वो कहे जा रही थी....."ये कोई मानवता है क्या?कुत्ता था भौंक ही तो रहा था,गोली मार दी!ऐसे ही इसी को गोली मार देते है क्या......"
अब फौजी अपने धैर्य को टूटा सा देख कर बोला के बहुत हो चुका अब चुप हो जा!


पर नारी थी,जागरूक थी,"मुझे तो पता ही नहीं था कि आप ऐसे भी हो,पता होता तो कभी शादी नहीं करती......"


अब फौजी से ना रहा गया!वो बोला "देख चुप होजा एक.....चुप होजा दो......
और फिर तीन गिनने कि जरुरत नहीं पड़ी!आज सब ठीक चल रहा है!उसके बाद उस घर में फिर कभी लड़ाई नहीं हुई!


मतलब यही कि,कभी-कभी शान्ति के लिए हमे भी कठोर रूप अख्तियार कर लेना चाहिए!कोई हमे गलत कह रहा है तो कोई कब तक सहे!वो गलत है ये कहने वाला कोई ना कोई तो होना ही चाहिए!और वो कोई मै क्यों नहीं,ये बात सभी हिन्दुओ को सोचनी चाहिए!जब सभी अपने-अपने स्तर पर विरोध दर्ज कर सकते है तो करना चाहिए!क्यों हम गलत को गलत नहीं कह पा रहे है?


सोचो!
जय हिंद,जय श्री राम.....
 कुंवर जी,


सोमवार, 5 अप्रैल 2010

कैसे बताऊँ मै........(कविता),

खेलता हूँ मै भी दुखो से,ये कैसे बताऊँ मै,

जिसको अब तक रहा छिपाता,कैसे जताऊँ मै!

भगवान् जो लिख चुका सो लिख चुका,

अब क्या उसको दोहराऊं मै,

मुझे खुद से जुदा करने वाला वो ही तो था,

अब बिन बुलाएं भला क्यों उसके पास जाऊं मै,

हूँ ही क्या मै उस से अलग हो कर,

फिर क्यूँ खुद को "कुछ" दिखाऊं मै,


कुंवर जी,

गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

तेरे इकरार से जीवन में बस एक मोड़ आएगा मगर.....,(कविता),

तेरे इकरार से जीवन में बस एक मोड़ आएगा,
पर तेरा इन्कार मुझे चौराहे पर ले जाएगा!
फिर खामोशी रास्ता,तन्हाई मंजिल होगी,
फिर सिसकती बिरहन सी रात आई होगी,
सपने आंसूं बन बिखर चुके होंगे,
दिल होगा हवन-कुण्ड,अरमान आहुति!
फिर बुझा दीपक सा कल आएगा,
पर ये कल उस बीते हुए कल को भुला ना पायेगा!
फिर ना जाने कितने ही कल जीवन में आयेंगे,
फिर एक सुबह ऐसी होगी,
जैसे दीपावली की रात से अगली सुबह,
फिर समय विवश करेगा,
वें बुझे दीपक मुझे ही इक्कठे करने होंगे
जो कल रात मै ही प्रदीप्त कर रहा था!
यूँ तो आज भी हरदीप जल रहा होगा,
मगर ख्यालों में,
ख्यालों में ही सही,
मै आज भी उन बुझे दीपकों से रौशनी लेना चाहूँगा,
और शायद रौशनी मिल भी सकती है,
अगर तुम चाहो तो.....!
अगर तुम चाहो तो ये दीप बुझेंगे ही नहीं!

अभी तो तेरा जवाब मिला भी नहीं,
अभी तो हमने सवाल किया ही नहीं,
मगर तेरे जवाब की सोच में हमने,
ना जाने क्या-क्या सोच लिया,
मै तो अब सोच चुका,
अब सोचने की बारी तुम्हारी है,
सोचो....

अगर तुम इकरार करते हो तो जीवन में बस एक मोड़ आएगा,
पर तेरा इन्कार किसी से ना जाने क्या करवा जाएगा!











कुंवर जी,

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