मलाल के गुलाल से ही
होली खेलते आये थे अब तक हम,
उम्मीदों के रंग में
रंगने की बारी आज है!
धैर्य के राग पर
मन अपना साज़ है,
आँखों के सुर पे
मौन ही आवाज़ है,
क्योकि बोलने वालों को तो
यहाँ तौलने का रिवाज़ है,
और कोई तौले हमें
इस से दिल नासाज़ है!
जय हिंद,जय श्रीराम,
कुंवर जी,