गुरुवार, 26 जनवरी 2012

हौसला तो कर फिर देख,जिंदगी कैसे रुख बदलती है....(कुँवर जी)

राम राम जी... आज एक और गणतंत्र दिवस आया....  कल से ही देशभग्ति वाले सन्देश मोबाइल पर आने आरम्भ हो गए थे.....आज पूरा दिन जारी रहे..... चाहे वो सन्देश कैसी भी भावना अथवा अभावना से प्रेषित कए जाते हो पर ये भी सत्य है कि कुछ एक सन्देश तो सच में   जज्बे को हिलाने वाले होते है.... और फिर आजकल तो बाबा रामदेव जी और अन्य क्रांतिकारियों ने माहौल कुछ ऐसा बनाया दिया है कि हर एक भारतीय स्वयं को गणतंत्र दिवस का हिस्सा सा मानने लगा है.....किन्तु कुछ एक ऐसे भी जिन्होंने ऐसा माहौल बनाने कि ठान राखी है जिस से कि हर एक भारतीय को लज्जा...... अब क्या जिक्र करे उन सबका ऐसे अच्छे उत्सव-पर्व पर....!


पर कुछ न कुछ है जो इस पर्व को उस शान-ओ-शौकत से मनाने से अभी  रोक तो नहीं रहा है पर...... कुछ सोचने पर विवश अवश्य कर रहा है.....!
मै स्वयं को रोक नहीं पा रहा हूँ....

वन्दे मातरम्....
आँख का पानी नसों में पहुँच गया है....
सो न आंसू आते है न नसे ही फड़कती है....


मै ये नहीं कहता की खून पानी हो गया है,
कुछ बूंदे है अभी भी,जो दिल में धड़कती है!


 पौरुष चूका तो नहीं पर कहा है....?
पुरुष हूँ,यही बात आँखों में रड़कती  है!


हालात हावी है हसरतों पर क्यों भला,
हौसला तो कर फिर देख,जिंदगी कैसे रुख बदलती है!




जय हिन्द,जय श्री राम!
कुँवर जी,

रविवार, 22 जनवरी 2012

गुडगाँव में पूज्यनीय श्री मोरारी बापू जी रुपी मेघ श्री रामचंद्र जी की कृपा बरसा रहे है..... बोलो सियापति रामचंद्र की जय...

राम राम जी,

श्री गुरुचरण सरोज रज,निज मन मुकुर सुधारी!
बरनऊँ रघुवर बिमल जसु जो दायक फल चारी!!
बुद्धि हीन तनु जान के सिमरौ पवनकुमार!
बल बुद्धि विद्या देहू मोही हरहु क्लेश-विकार!!


आज दूसरा दिन है यहाँ परम पूज्य मुरारी बापू जी के सानिध्य में रामचरितमानस कथा के सुनने का!और देखिये वो कहते है की केवल सुनना मत......द्रष्टा बनना!है न कमाल.....सुनने के लिए जो है उसका द्रष्टा बनने को कहते है और भावो में भिगो देते है श्रोता को....मैंने ऐसा अनुभव किया दो दिनों में वहां!


गुडगाँव  में पूज्यनीय  श्री मोरारी बापू जी रुपी मेघ श्री रामचंद्र जी की कृपा  बरसा रहे है..... हम जैसे तुच्छ और नालायको को बिना कोई श्रम-साधना के ही ऐसा अतुल्य अवसर मिल गया है......ये विचार कर ही आश्चर्य होता है और जब उनके दर्शन साक्षात हुए तो...... क्या कहे.....
  मै सागर तो नहीं था पर लहरें तो थी तन में..
मै मोम भी तो नहीं था पर पिघल रहा था जैसे....


वैसे तो इनका नौ दिन का कार्यक्रम है यहाँ....कहते है श्रीरामचरितमानस का पाठ नौ दिन ही चलता है......पर मुझ जैसे अयोग्य को नौ में से दो दिन भी वहाँ उपस्थित होने का सौभाग्य मिला....ये क्या कम है.....! ये एकदम से ऐसे हो गया जैसे के कुआं प्यासे के पास चला आया हो.....सच में कलयुग है!

कल से पुनः नौकरी...... मन से नहीं तो क्या हुआ.... तन से तो नौकरी करनी ही है..... तो कल से कथा नहीं नौकरी...२६ को अवकाश है.....मौका मिला तो तब.....

पवनतनय संकट हरण मंगल मूर्ती रूप!
राम लखन सीता सहित हृदय बसों सुरभूप!!
बोलो
सियापति रामचंद्र की जय...
उमापति महादेव की जय...
पवनपुत्र हनुमान की जय...

जय हिंद,जय श्रीराम,
कुंवर जी,

शनिवार, 21 जनवरी 2012

मयंक जी असल में मुझे भाषा ज्ञान बहुत अधिक नहीं है.....

राम राम जी....
आदरणीय मयंक जी 
  
मैंने आपकी टिपण्णी पढ़ी...कुछ देर के लिए सोचा जरूर,सोचना पड़ा...अब तक जैसे मुझे चाहिए थे वैसे ही कमेन्ट आ रहे थे...ये पहला ऐसा कमेन्ट रहा अब तक जो मुझे झकझोरने वाला रहा...... !

सर्वप्रथम मै आपका हार्दिक धन्यवाद करता हूँ कि आप मुझ जैसे तुच्छ और निम्न स्तरीय को पढने के लिए अपना अमूल्य समय खर्च करते हो!सच में आँखों में पानी छलक आया था एक बार तो!

अभी; मै आपसे समय पर संपर्क नहीं कर पाया था उसके लिए हृदय से खेद व्यक्त करता हूँ!सच मानिए,बहुत कम ही इन्टरनेट को समय दे पा रहा हूँ!आपको पढ़ जरुर लिया था पर संपर्क ही नहीं कर पाया....इसके लिए एक बार फिर खेद है!

और जो आपने कहा कि कई भाषाओ का मिलन धार कम करता है तो....इसके लिए मै यही कहना चाहूँगा कि असल में मुझे भाषा ज्ञान बहुत अधिक नहीं है!बस आम बोलचाल की भाषा की ही जानकारी अधिक है,जानकारी भी क्या बस जो कुछ पढ़ा-सुना है वही बस....जिसमे उर्दू,फ़ारसी के शब्द कुछ ऐसे मिले हुए है जैसे कि सब एक ही है...कुछ अलग है इसका पता ही नहीं चलता..और फिर मन में जो भाव जैसे भी आते है वो वैसे के वैसे ही कागज़ पर उतर आते है..मै उनमे अधिक कुछ परिवर्तन नहीं कर पाता....और धार.... उसका तो मुझे पता भी नहीं चलता कि है भी या नहीं..... बस मन के प्रवाह को ज्यो का त्यों शब्दों के प्रवाह में परिवर्तित करने का प्रयास सदा बना रहता है.....


वैसे ये सब मै केवल आप तक पहुंचाने के लिए ही लिख रहा था किन्तु अज्ञानता और लापरवाही वश मुझसे आपका वो अमूल्य कमेन्ट डिलीट  हो गया...इसके लिए मै क्षमा मांगने के योग्य भी नहीं हु फिर भी मुझे विश्वाश है कि आप मुझे क्षमा कर देंगे... सो इसे मै सार्वजनिक रूप से आपसे क्षमा मांगने और खेद व्यक्त करने के लिए ब्लॉग पर पोस्ट कर रहा हूँ!

साथ ही मै संजय भास्कर जी   से भी क्षमा चाहूँगा क्योकि उनका कीमती मणिक-तुल्य कमेन्ट भी मुझसे डिलीट हो गया है!




जय हिंद,जय श्रीराम,
कुँवर जी,

बुधवार, 18 जनवरी 2012

अर्धविराम की सीमा लांघ पूर्णविराम तक का सफ़र ....

शब्द फूट पड़े है चंहूँ ओर से,
हर पल हर जगह से,
हर हल चल हर परिवर्तन से,
हर स्थूल हर सूक्ष्म से,
बढ़ चले कि कविता बनेंगे....


इसी उमंग में,
फूट रहे थे शब्द हर कहीं से,
पर क्या पता...


एक अधुरा वाक्य
भी वो पूरा कर पायेंगे या नहीं.....?


अर्धविराम की सीमा लांघ
पूर्णविराम तक का सफ़र ....
तय कर पायेंगे या नहीं.... 




जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,

शनिवार, 14 जनवरी 2012

उनको भी शुभकामनाये....इस ठण्ड-नाशक(मकर-संक्रांति ) त्यौहार की..!

राम राम जी.... आप सभी को मकर-संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाये....

कहते है आज से ही दिन बड़े होने आरम्भ हो जायेंगे....सर्दी भी अपनी वृद्धावस्था में चली जायेगी...चली जायेगी...धीमी चाल से...पर चली ही जायेगी अब तो!सूर्य देवता जो  अब तक धुंध और मेघो से संघर्ष में स्वयं को यदा-कदा लाचार अनुभव कर रहे थे....अब पुनः अपना तेज प्राप्त करते चले जायेगे.... न मेघो की चलेगी न धुन्ध अब इतना इतर पाएगी....जो चाहेंगे तो बरस जायेंगे मेघ पर....सूर्य देवता से आंखमिचोली...अब अधिक न चल पाएगी...!अर्थात ठण्ड घटती चली जायेगी.....और...

जो बदनसीब(कोई और शब्द मुझे नहीं सुझा) फूटपथो  पर अपने रात-दिन गुजारने
को विवश है.....उन्हें भी संभवतः कुछ राहत अनुभव हो...वैसे तो वो इस दुरूह ठण्ड को ही
ओढने के आदि हो चुके होंगे पर फिर भी.... कुछ तो राहत उन्हें भी मिलेगी..पक्का..!
हाँ...तिल-गुड के लड्डू,रेवाड़ी-गज्जक,मूंगफली  उन्हें न मिल पाए अन्य संपन्न परिवारों की
तरह.... पर... ठण्ड से राहत जरुर मिलनी आरम्भ हो जायेगी.....!

उनको भी शुभकामनाये....इस ठण्ड-नाशक त्यौहार की..!

अरे आज के दिन तो मरने का भी अत्यधिक महत्त्व बताया गया है...तभी....भीष्म पितामह ने तीरों के बिछौने पर भी आज ही के दिन की बाट जोही थी.....सूर्य देवता के उत्तरायण होने के पश्चात् ही उन्होंने प्राण त्यागे थे...!

और हाँ.. बताते है आज ही के दिन देवताओ का दिन आरम्भ होता है...अर्थात अब तक जो लम्बी रात्री देवताओ की चल रही थी वो समाप्त....सुना है वो सब जाग जायेंगे.....सूर्य देव भी उत्तरायणी हो जायेंगे... तो पुण्य कर्मो के फल अब कुछ अधिक मिलेंगे... तो कर दीजिये आज से आरम्भ....कुछ दान कीजिये...बड़ो से आशीष पाइए...लोगो से दुआए प्राप्त करे....!

मुझे लगता है यदि किसी की प्रार्थना में आपके लिए भी प्रार्थना हो रही तो संभवतः वही सब से बड़ा कर्मफल है आपके लिए....तो आज से ही ओरो की प्रार्थना में सेंध लगानी आरम्भ कर दीजिये.....जितने अधिक लोगो की प्रार्थनाये आपके लिए होंगी उतना ही परमात्मा की नज़रों में
highlight होते चले जायेंगे....कर के तो देखिये ऐसा एक बार...! 


जय हिंद,जय श्रीराम,
कुँवर जी,

गुरुवार, 12 जनवरी 2012

उनकी आह नहीं मिटती...

शब्द खड़े है चारो और...
मुझे घेरे...
घूर रहे है...
मैंने पूछा उन से..
"सर्दी नहीं लगती है क्या तुम्हे......?"
वो बोले....
जवाब नहीं तो बात बदलोगे...?
हम ने कहा
 तुमने पूछा ही क्या है..?
वो बोले...
नहीं पूछा तो क्यों हो सहमे-सहमे ...?
मन में क्या कम्पन है..?


हम ने कहा... 
तुम भी खूब हो.
सर्द सुबह  में
सर्दी से ही कांप रहे है!
और जिनकी तुम सोच रहे हो...
उन फुटपाथ पर पड़े
लोगो की 
दिक्कत को भी भांप रहे है!
शब्द जैसे इतराए...
हमारी चोरी पकड़ कर..


हम पुनः बोले..
उनका प्रारब्ध,विधान.....
शब्द तो जैसे गरजे.....
बोले..
हमारे ही सहारे
हम ही से खेलते हो....!


मन की सारी करुणा 
बस कागज़ पर ही उड़ेलते हो!
कविता में तो भिगो देते हो 
हमें भी 
अपने आंसुओ से....
पर असल में 




पर असल में
बच के निकल आये हो तुम 
फुटपाथ पर पड़े अधनंगो से!
उनको कितने ही शब्द 
ओढाओ,पहराओ,
ऐसे किसी ही सर्दी नहीं हटती,
उनके जीवन  से
कोरी  "वाह" बीनने से ही
उनकी आह नहीं मिटती...
उनकी आह नहीं मिटती...
उनकी आह नहीं मिटती...



जय हिंद,जय श्रीराम
कुँवर जी,

मंगलवार, 10 जनवरी 2012

कंगालों की हम से बड़ी मिसाल क्या है.....?(कुँवर जी)

क्या बताऊ तुम्हे की हाल क्या है..
कंगालों की हम से बड़ी मिसाल क्या है..?


बुझने में जिसे खो रहे जीवन अब तक
पता ही नहीं की असल में सवाल क्या है..?

भीड़ में शामिल हो खूब मचा आये शोर,
समाचारों में सुनते की आखिर ये बवाल क्या है..?

असहमति की अभिव्यक्ति हम कर सकते है,
करते नहीं पता नहीं मन में ये जंजाल क्या है..?

 जो राजी ही नहीं कभी हम से हुए,
उनकी हम से नाराज होने की ये चाल क्या है..?

बिना धन के गरीब देखे थे बहुत जग में,
अपनी आत्मा भी न मिली अपने पास,
न ज़मीर ही कही ढूंढ सके,
ना पाए विचार ही ओढने की खातिर,
ना पलके साहस कर सकी उठने का...
तो जाने कि असल में ये "कंगाल" क्या है..? 

क्या बताऊ तुम्हे की हाल क्या है..
कंगालों की हम से बड़ी मिसाल क्या है..?



जय हिंद,जय श्रीराम,
कुँवर जी,

गुरुवार, 5 जनवरी 2012

इक उम्मीद थी......(कुँवर जी)

इक उम्मीद थी कि 
धुन्ध छटेगी  तो 
सूरज निकल ही जाएगा...
क्या पता था कि 
मेघ भी 
पहरा लगाए बैठे होंगे!



जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,

लिखिए अपनी भाषा में