संवेदनहीन होते लोग,
दुसरो को जगाने के लिए
अपने होश खोते लोग!
हाँ मै अभी जिन्दा हूँ,
बस यही बताने के लिए
जिंदगी को ढोते लोग!
बस यही बताने के लिए
जिंदगी को ढोते लोग!
ओरो की नींद उड़ा,
खुद चैन से सोने के
सपने संजोते लोग!
भगवान् ने इंसान बनाए
वो ही अब
हिन्दू-मुस्लिम होते लोग!
हथियार उठा जो खड़े थे
मैदान में,
छुप कर सबसे
अकेले में वो रोते लोग!
जय हिंद,जय श्रीराम,
कुंवर जी,
बहुत शानदार
जवाब देंहटाएंछा गये कुंवर जी
और क्या कहू
बहुत ही शानदार रचना
ठीक कहा कुंवर जी
जवाब देंहटाएंआज माहोल बिलकुल ऐसा ही हो रहा हैं
लोग सोचते कम हैं और किसी के कहे पे चलकर धरम ईमान पे जान देते और लेते हैं
धरम इंसान ने बनाये हैं भगवान् ने नही .
भगवन ने तो इंसान बनाये हैं
बहुत अच्छी बात कही हैं ये आपने
शुरुआती चार पंक्तियाँ काफी touchy है !
जवाब देंहटाएंकिसी शायर ने ठीक ही कहा है
जवाब देंहटाएंमेरे दिल के कोने में एक छोटा सा बच्चा रहता है
जो देखकर दुनिया बड़ों की बड़ा होने से डरता है
बहुत ही सुन्दर और शानदार रचना लिखा है आपने! बहुत बढ़िया लगा!
जवाब देंहटाएंवाह!! ........बहुत बढिय लिखा आपने ....
जवाब देंहटाएंshandar aap kvitaen likhen to jyada auchha hoga
जवाब देंहटाएंbahut khub
सच कहा, जब तक जाति-धर्म के जाल मे फसे रहेगे तब तक समाज का विकास सम्भव नही..
जवाब देंहटाएंapna karm pura karti aapki ye rachna utsaah ka sanchaar karti hui acchhi rachna. badhayi.
जवाब देंहटाएंजन चेतना जागृत करती रचना....बहुत बढ़िया लिखा है
जवाब देंहटाएंआप सभी के यहाँ पधार कर मुझे प्रोत्साहित करने के लिए अपने अमूल्य विचार प्रस्तुत करने के लिए आप सब का मै आभारी हूँ जी!ये स्नेहाशीष सदा ही बनाए रखे!
जवाब देंहटाएंकुंवर जी,
बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील विषय, हृदयस्पर्शी चर्चा
जवाब देंहटाएंसच है लोग संवेदनहीन होते जा रहे हैं .... समय की मार है ...
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