शनिवार, 3 जुलाई 2010

मै सोचता हूँ कि.......(कुंवर जी)

पिछले कई दिनों से मै वो समय नहीं निकाल पा रहा हूँ जिसे कुछ दिनो पहले तक मै अपना सबसे अनिवार्य समय मानने लगा था....विवशताएँ कहे या कुछ ओर इस पर अभी शोध कार्य चल रहे है.....मै सोच रहा हूँ कि जब तक प्रयोग सफल हो तब तक आपको एक ऐसे लड़के का किस्सा सुनाँ दूं जो मेरी ही तरह सोचता बहुत था.......पर कभी-कभी मुझ से अलग कुछ कर भी देता था.....

कभी मैंने सुना था....आज आप झेले..... 

..........एक कक्षा में किसी अध्यापक को कक्षा में ही लड्डू खाने कि तलब हो आई!लड्डू थे नहीं सो बहार दुकान से मंगवाने कि सोच ली!उसने कक्षा में दृष्टि दौड़ाई तो जो लड़का सबसे शांत दिखाई दिया उसको ही 5 रुपये दे दिए लड्डू लाने के लिए!अब जो बहुत सोचता है वो स्वाभाविक ही शांत तो होता ही है!

उस लड़के ने वो 5 रुपये दुकानदार को दिए और बोला लड्डू दे दो!दुकानदार ने लड्डू तोले,पहले तराजू में 5 रखे जब देखा के ज्यादा है तो एक निकाला!ठीक थे दे दिए!वो लड़का भी ले कर चल दिया,और शुरू हो गया उसके सोचने का सिलसिला!


उसने सोचा जब दुकानदार 5 रख कर एक वापस उठा सकता है तो वो तो मै भी 4 में से एक तो उठा ही सकता हूँ,मास्टर जी देख थोड़े ही रहे है!एक उठाया और खा गया!


बीच राह में एक बड़ा नाला था,उसे कूदने लगा तो एक लड्डू गिरते-गिरते बच गया!उसने फिर सोचा,"गिर भी तो सकता था"! एक और खा गया!


जैसे ही विद्यालय में प्रवेश किया,फिर सोचा!उसने सोचा के मै इतनी मेहनत कर के लड्डू ला रहा हूँ,कम से कम एक तो मिलेगा मुझे भी!क्यों मास्टर जी का समय नष्ट किया,सोचा बता दूंगा और खा गया!


अब जो एक बचा था उसे ही अखबार में बहुत अच्छी तरह से लपेट-सपेट कर रख दिया मास्टर जी के सामने!मास्टर जी 5 रुपये का एक लड्डू पाकर हैरान,परेशान!


उस शांत बच्चे से बड़ी शान्ति से पूछा- "5 का एक ही?"


वो बोला- "नहीं; थे तो ज्यादा यहाँ तक एक ही पहुँच पाया!"


मास्टर जी-थोडा सा सख्त हो कर-"कैसे????"


लड़का-"जी दूकानदार ने 4 रखे फिर एक उठा लिया,रह गए तीन!"


मास्टर जी- "वो तीन कहा गए ?"


लड़का-"जी एक लड्डू नाला कूदते हूए नाले में गिर गया!रह गए दो!"


मास्टर जी थोडा सा और गंभीर होते हूए- ये तो दो भी नहीं, ये कैसे???


लड़का बड़ी ही स्वाभाविक सी मासूमियत के साथ- "मैंने सोचा मै इतनी मेहनत कर के लड्डू ला रहा हूँ,कम से कम एक तो मिलेगा मुझे भी!क्यों मास्टर जी का समय नष्ट किया,सोचा बता दूंगा और खा गया!


मास्टर जी फुल्ली आग-बबूला होते हूए- "हरामजादे! मेरा लड्डू तू कैसे खा गया??"


उस लड़के ने वो लड्डू उठाया और मुह में रक्खा और खा गया,बोला-"जी ऐसे खा गया!"


मास्टर जी देखते रहे और वो जो एक लड्डू जैसे-कैसे भी आया था, वो भी उन्हें नसीब न हूआ!






मै सोचता हूँ कि........


मै केवल सोचता ही हूँ,करता नहीं हूँ ये भी ठीक ही है!


यदि वो लड़का मेरी तरह केवल सोचता ही,करता नहीं तो मास्टर जी को उनके सारे लड्डू मिल ही जाते!
{पुनः प्रकाशित}
जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुंवर जी,

9 टिप्‍पणियां:

  1. हा-हा-हा
    बहुत मजा आया यह पोस्ट पढकर, धन्यवाद

    प्रणाम

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  2. सोचने के भी फायदे हैं
    सोच कर ही किया जाता है और करना भी सोचने से निकलता है

    प्रणाम

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  3. @अंतर सोहिल जी- प्रणाम है जी...

    @संजय जी- आपका हार्दिक अभिनन्दन है जी,

    कुंवर जी,

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  4. सोचने से करना हमेशा फायदेमंद होता है...चाहे कुछ न भी मिले तो भी अनुभव तो मिलेगा ही:)
    बढिया पोस्ट्!

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  5. हा हा हा हा ........मजा आ गया पढ़ कर ....बहुत खूब .

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  6. हा हा हा………………बहुत बढिया।

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