कोई अपने माँ-बाप को सम्मान दे या न दे,उनको पूज्यनीय माने या न माने, उस से किसी को क्या लेना-देना हो सकता है भला!पर जब मुद्दा देश या देश से सम्बंधित हो तो सार्वजनिक हो ही जाता है!
पहले ये ऐसी ओछी दुर्घटनाये आतंकवादी बहुल क्षेत्रो में ही देखने को मिलती थी पर इस बार तो सभी सीमाओं को लांघते हुए लोकसभा के अन्दर ही ऐसा हुआ है!लोकसभा अध्यक्ष ने तुरंत इस पर आपत्ति जताई और दुबारा ऐसा न होने की आज्ञा भी दी....
पर उन बुजुर्ग जनाब को तो अपनी कौम का हीरो बनना था!उन्होंने खुले आम ऐलान किया वो आगे भी ऐसा ही करेंगे!अब इस से बढ़कर देश के लोकतंत्र का अपमान और क्या हो सकता है!ये बुजुर्गवार अपनी कौम के हीरो बन ही चुके है!
यदि सही में ये हीरो बन गए है तो क्या ये बात चिंता जनक नहीं है कि वो अब तक लोकसभा के सदस्य है,देश के नागरिक है और देश में अभी तक स्वतंत्र है!और मै देख रहा हूँ कि इन बुजुर्गवार के पक्ष में बहुत से पढ़े-लिखे समझदार कहलाने वाले मुस्लिम भाई भी बिलकुल वही तर्क दे रहे है जो स्वयं इन्होने दिए है!यहाँ मई और अधिक चिंताग्रस्त हो जाता हूँ! क्या मेरी चिंता वाजिब है!मुझे तो लगता है कि वाजिब है पर कई बार जब देखता हूँ कि देश का एक पढ़ा-लिखा वर्ग(जिसमे हिन्दू-मुस्लिम दोनों है) वन्दे मातरम् के महत्त्व पर ही प्रशनचिन्ह लगा रहे है!
कोई कहता है कि ये तो मात्र एक गीत है जिसे आनंद मठ नामक पुस्तक में लिखा गया था,उस से पहले ये राष्ट्र के सम्मान का विषय नहीं था,तो अब कैसे हो गया..?
उनकी ही बात को सही माने तो.... १९४७ से पहले तो देश का कोई लिखित संविधान भी नहीं था!कही नहीं लिखा था कि हिन्दुस्तान एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है!तब तक वो एक हिन्दू राष्ट्र ही था!बिना किसी विवाद के!
वो कहते है कि जो इस गीत को राष्ट्र के सम्मान का विषय बता रहे है उन्हें आनंद मठ का पता भी नहीं होगा,किसी ने इस पुस्तक को पढ़ा भी नहीं होगा!
अरे नहीं पता है हमें आनंद मठ का, नहीं पढनी है हमें ये पुस्तक!इस गीत को राष्ट्रिय गीत आनंद मठ ने नहीं बनाया है,ये गीत अमर किया है शहीद भगत सिंह, अशफाखुल्लाह खान जैसे अमर क्रांतिकारियों ने गाकर!मेरे देश के संविधान ने!
वो कहते है कि हर किसी को तो ये भी नहीं पता कि ये राष्ट्रिय गीत है या राष्ट्रीय गान!अरे क्या फर्क पड़ता है इस से.... राष्ट्रिय गीत और राष्ट्रीय गान के प्रति सम्मान होना चाहिए मन में बस! और यदि सम्मान मन में है तो क्यों न वो बहार भी दिखे,क्यों ना हो व्यवहार में, जो उस से किसी का कैसा भी नुक्सान नहीं हो रहा हो तो!
क्यों सभी हिन्दू देश के संविधान को मानने के लिए विवश है की अब हिन्दुस्तान हिन्दुस्तान नहीं रहा...भारत अथवा तो इंडिया हो गया है!मुझे लगता है कि ये देश के प्रति सम्मान और मातृभूमि को पूज्यनीय मानने का ही परिणाम है!माना हमारे देश में मुस्लिम बहार से आये हुए है पर जो मुस्लिम आज हमारे देश में है उनकी मातृभूमि तो ये मेरा प्यारा और वन्दनीय भारत महान ही है!मुझे इसमें कोई रूचि नहीं कि इस्लाम क्या कहता है और क्या नहीं कहता है!लेकिन मेरे देश और मातृभूमि से सम्बंधित सभी विषयो पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने में मुझे पूरी रूचि है और ये मेरा अधिकार भी है जो मेरे देश का संविधान मेरे सहित देश के हर नागरिक को देता है!
मेरे देश का संविधान सभी को सम्मान देने या न देने की स्वतंत्रता तो देता है पर किसी को भी किसी भी प्रकार से किसी का भी अपमान करने कि स्वतंत्रता तो कतई नहीं देता!और एक अच्छे खानदान के संस्कार भी ऐसी ही प्रेरणा देंगे!और जो संविधान एक बहार से आये हुए अतिथि को देश का ही सामान नागरिक बनाने का अधिकार दे रहा है उस लोकतांत्रिक संविधान का ही लोकतंत्र के मंदिर में ही(लोकतंत्र की मस्जिद इस लिए नहीं क्योकि इस्लाम में लोकतंत्र मान्य नहीं बताया गया है) सार्वजानिक रूप से अपमान किया जा रहा है! और ये अपमान किसी गुंडे-मवाली, आतंकवादी ने नहीं किया है बल्कि लोकतांत्रिक विधि से चुने गए लोकसभा सदस्य के द्वारा हुआ है!इस पर भारत सरकार को शीघ्र ही कोई कठोर कदम उठाना चाहिए!और यदि सरकार कुछ नहीं करे तो देश कि जनता को ही सोचना पड़ेगा और सोचना चाहिए कि किसे लोकसभा अथवा लोकतंत्र के मंदिर में भेजना है और किसे नहीं भेजना है!
कृप्या सच्चे मुसलमान भाई इसे ना पढ़े! मै नहीं चाहता मेरी वजह से किसी मुस्लिम भाई के इस्लाम का उल्लंघन हो!लेकिन जवाब कौन देगा भाई?
जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,