मै बस यही कहना चाहूँगा कि ये एक शरीफ,आम,और नीरीह ब्लॉगर के साथ अन्याय हुआ ओर हम इसके खिलाफ कुछ कर भी नहीं सकते.....
एक षड्यंत्र जो हमारे विरुद्ध रचा गया था और जिसमे सब(कंपनी से लेकर कैफे वाले तक) शामिल थे,वो सफल रहा......और हम इसे प्रारब्ध मान कर खुद को संतोष देने की चेष्टा कर रहे है....
आज फिर एक पुरानी रचना जिसे दिलीप भाई साहब की एक ओजपूर्ण कविता पर टिप्पणी स्वरूप शुरू किया गया था आपके समक्ष है.....नया कुछ लिखने का तो समय ही नहीं मिल पा रहा है....
शब्दों में जो धार हो तो कलम कम नहीं तलवार से,
आँखों में आंसूं हो गर स्वाभिमान के कम नहीं अंगार से,
मरना बेहतर लगता है.
भीरूओ की भान्ति जीने से
मरना हल नहीं,
दुनिया चली गयी
नहीं किसी के पसीने से,
सहानुभूति के लिए ही जीना बस,कम नहीं धिक्कार से,
कम से कम आत्मा को तो दूर रखो किसी विकार से!
अरे गर आंसू आ गया तो
कोई गुनाह नहीं हुआ था,
वो पल तो कब का चला गया,
जिसको तुमने छुआ था,
जो तुम्हे अब रुला रहा क्या वो निकालेगा तुम्हे इस अन्धकार से?
भाग्य में जो तुम्हारा है क्यों नहीं लेते उसे अपने अधिकार से!
जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुंवर जी,