गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

तेरे इकरार से जीवन में बस एक मोड़ आएगा मगर.....,(कविता),

तेरे इकरार से जीवन में बस एक मोड़ आएगा,
पर तेरा इन्कार मुझे चौराहे पर ले जाएगा!
फिर खामोशी रास्ता,तन्हाई मंजिल होगी,
फिर सिसकती बिरहन सी रात आई होगी,
सपने आंसूं बन बिखर चुके होंगे,
दिल होगा हवन-कुण्ड,अरमान आहुति!
फिर बुझा दीपक सा कल आएगा,
पर ये कल उस बीते हुए कल को भुला ना पायेगा!
फिर ना जाने कितने ही कल जीवन में आयेंगे,
फिर एक सुबह ऐसी होगी,
जैसे दीपावली की रात से अगली सुबह,
फिर समय विवश करेगा,
वें बुझे दीपक मुझे ही इक्कठे करने होंगे
जो कल रात मै ही प्रदीप्त कर रहा था!
यूँ तो आज भी हरदीप जल रहा होगा,
मगर ख्यालों में,
ख्यालों में ही सही,
मै आज भी उन बुझे दीपकों से रौशनी लेना चाहूँगा,
और शायद रौशनी मिल भी सकती है,
अगर तुम चाहो तो.....!
अगर तुम चाहो तो ये दीप बुझेंगे ही नहीं!

अभी तो तेरा जवाब मिला भी नहीं,
अभी तो हमने सवाल किया ही नहीं,
मगर तेरे जवाब की सोच में हमने,
ना जाने क्या-क्या सोच लिया,
मै तो अब सोच चुका,
अब सोचने की बारी तुम्हारी है,
सोचो....

अगर तुम इकरार करते हो तो जीवन में बस एक मोड़ आएगा,
पर तेरा इन्कार किसी से ना जाने क्या करवा जाएगा!











कुंवर जी,

10 टिप्‍पणियां:

  1. अच्‍छे भाव .. सुंदर अभिव्‍यक्ति !!

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  2. "पर तेरा इनकार मुझे चौराहे पर ले आएगा।"

    सच में यही कडवी सच्चाई हैं एकतरफा प्यार में डूबे इंसान की । एक कविता लिखने को कोशिश करता हूँ उसमे ये पंक्ति भी डालूँगा। तुझे पहले बता रहा हूँ जिससे कोपीराइट की दिक्कत ना हो .

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  3. वाह !!........मन की विचारों को बहुत गहनता से प्रस्तुत किया है आपने इस रचना के द्वारा .

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  4. फिर ख़ामोशी रास्ता, तन्हाई मंजिल होगी का आशय सपष्ट करे महाशय.(फिर खामोश रास्ता, और तन्हा मंजिल होगी ये भी तो हो सकता हैं या यहाँ पर कुछ अलग भाव हैं )
    बहुत अच्छे मन के भाव सामने आये हैं.
    लगे रहो मुन्ना भाई . ठीक जा रहे हो

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  5. भाई जी आपकी कितनी गहराई है और अभी बाकी
    बैठा तो था पर तुम्हारे दिल की गहराई ना गई नापी
    तिनका-तिनका यों जल-जल के धुआं ना बनो मेरे यार
    जरा हमें भी तो बता दो किस तड़प से है जिया बेक़रार
    इतनी मदहोशी जो जो तुम बाटोगे ऐ मतवाले साकी
    तो कैसे नापेंगे हम की कितनी गहराई है और अभी बाकी

    क्या लिखते हो भाई जी पता नहीं कहाँ से कहाँ पहुंचा देते हो
    इतनी रूहानियत. धन्य हो आप

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  6. शुक्रिया ,
    आपका और ब्लॉग का नाम बहुत पसंद आया ,
    इंकार और इक़रार के बाद के हालात का अच्छा मंज़र पेश किया है .दुआओं के साथ .
    ' हया '

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  7. शुक्रिया। आपकी कविता भावप्रद है। विचारों की कड़ी आगे मंजिल पाए, इस शुभकामना के साथ....।
    चेतना

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  8. राम राम जी,
    आप सभी का स्वागत है जी,धन्यवाद भी स्वीकार करे!चेतना जी व् रैना जी, विचारों की कड़ी को मंजिल तो पता नहीं मिलेगी या नहीं लेकिन आपकी शुभकामनाओं ने उनमे नयी जान अवश्य फूंक दी है!लता जी को ब्लॉग और मेरा नाम पसंद आया ये मेरा सौभाग्य है जी!अमित भाई आपको नहीं लगता कि आप थोडा सा ज्यादा कह गए हो!देवेश भाई और संगीता जी का एक बार फिर से हार्दिक धन्यवाद!और राणा जी ये तो महसूस करने वाली बात है,शायद मैंने जो महसूस किया वो मै बिलकुल वैसा ना बता पाया हूँ,आप तो है ही,समझाने के लिए आपका सदा स्वागत है!
    वीरेंद्र सर जी आप तो बस ऐसे ही हौसला बढाते रहो,बाकी कुछ भी करो,सब मेरी भलाई के लिए ही होगा!

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  9. phoda be aaj to, phod diya

    teri "M" ko pata bhi hai tu uske liya kya kya likh raha hai::::::::::)

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