ये मन भी...बस कुछ भी कहीं भी महसूस करने लग जाता है,
नहीं सोचता चलो घर की ही तो बात है,पर नहीं...
इन शब्दों के आगे भला हमारी क्या बिसात है...?
घर की हो या बहार वालो की अब घात तो घात है....
आज कुछ आपबीती जो जैसे अनुभव की थी ज्यों की त्यों प्रस्तुत करने को मान कर रहा है.....भाषा हरियाणवी थी, थोडा-बहुत है भी फिर भी सभी के लिए सरल रूप में लिखने की चेष्टा की है....जहाँ थोड़े कठिन शब्द है साथ में सरल अर्थ भी दिया गया है.....
जिकर करण के लायक नहीं और चुप रहया ना जावै,
जितना मै चुप रहणा चाहूँ यो रंज जिगर नै खावै!
धोखा और लालच आजकल बेहवै सै नस-नस मै,
करते बखत(1) ना ख्याल करै के कर रहये हम आपस मै, (1)-समय
जिब(2) बस मै बात ना आती दिक्खै तो जान तक लेणा चाहवै, (2)-जब
लुच्चे माणस(3) उच्चे हो रहये साच्चो नै दबावै! (3)-आदमी
सिधा माणस मरया चौगर्दै(1) तै रो रहया अपणे करम, (1)-हर तरफ से
तन कर राख्या बज्र का पर भित्तर(2) तो वो सै नरम, (2)-अन्दर
भाई शर्म-शर्म मै सारया लुटग्या और कैह्ता सरमावै,
थोथा चणा बज रहया घणा असल ना टोहया(3) पावै! (3)-ढूँढने से
जग मै साफ़ घर मै दागी काम आजकल ऐसा होया,
ईमान और धरम-करम तो बस बात्या(1) का होया, (1)-बातो
रोया बुगले वाले आंसू और साथ वो सबका चाहवै,
नाड़(2) काट ले टूक खोस ले पर सुद्धा कहलावै ! (2)-गर्दन
दो घडी ईमान गेर कै जब जिया जावै सुख मै,
इमानदारी की राह पै फेर क्यों जीवै जिंदगी दुख़ मै,
इसी रूख(1) मै सबकी सोच ना इस गड्ढे तै बहार आवै, (1)-इसी ओर
सोच सबकी वैसी ही होई अन्न वे जैसा खावै!
धोखा आज करया हमनै कल होग्या यो म्हारे साथ,
दो आन्ने की पतीली और दिख जात्ती कुत्ते की जात,
बात सुन कै ही समझ ल्यो ना तो भुगते पाच्छै आवै,
आवाज ना सुर-साज और हरदीप फेर भी गाणा चाहवै!
जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुंवर जी,
भाई कुंवर जी
जवाब देंहटाएंरागणी तो घणीए सोणी सै
पण सुनण का भी जुगाड़ हो जाता तो सुवाद आ जाता ।
राम राम
इस रचना में 'हरि' के प्रदेश हरियाणा की लोक संस्कृति की भीनी-भीनी महक आ रही है...
जवाब देंहटाएंधोखा आज करया हमनै कल होग्या यो म्हारे साथ,
जवाब देंहटाएंदो आन्ने की पतीली और दिख जात्ती कुत्ते की जात,
बात सुन कै ही समझ ल्यो ना तो भुगते पाच्छै आवै,
आवाज ना सुर-साज और हरदीप फेर भी गाणा चाहवै!
Samajh liye aur boojh bhee liye !
बहुत बढ़िया ......."
जवाब देंहटाएंउतम रचना
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंबढ़िया है!
पसंद का चटका भी!
जिकर करण के लायक नहीं और चुप रहया ना जावै,
जवाब देंहटाएंजितना मै चुप रहणा चाहूँ यो रंज जिगर नै खावै!
sahi kaha ji do aane ki pateeli aur dikh jaaye kutte ki jaat....bahut achche se gaanth baandh li man me....
जवाब देंहटाएंbadhiya !
जवाब देंहटाएंachha laga pad kar
जवाब देंहटाएं""सिद्दा माणस मर रहया चोगार्दे .........""
जवाब देंहटाएंसच में ऐसा ही हैं ओर रोये भी तो किसके आगे . चाणक्य नीति में आया हैं कि जंगल में जब पेड़ काटे जाते हैं तो सीधे पेड़ो का पहले नम्बर आता हैं . किताबी नैतिकता सिवाय दुःख के कुछ नहीं देती . ओर कोई तसल्ली देने भी नहीं आता कि हाँ भाई तू बन अच्छा मैं तेरी मदद लिए आता हूँ .
ऐसा लगता हैं जैसे दुनिया बनकर भगवान् भी छुटी करके भाग गया हो कि यार गलत डिज़ाइन बन गया , फूट ले यहाँ से .
!! श्री हरि : !!
बापूजी की कृपा आप पर सदा बनी रहे
Email:virender.zte@gmail.com
Blog:saralkumar.blogspot.com
अनूप ले रहे हैं मौज : फुरसत में रहते हैं हर रोज : तितलियां उड़ाते हैं http://pulkitpalak.blogspot.com/2010/06/blog-post.html सर आप भी एक पकड़ लीजिए नीशू तिवारी की विशेष फरमाइश पर।
जवाब देंहटाएंधोखा और लालच आजकल बेहवै सै नस-नस मै,
जवाब देंहटाएंकरते बखत ना ख्याल करै के कर रहये हम आपस मै,
जिब बस मै बात ना आती दिक्खै तो जान तक लेणा चाहवै,
लुच्चे माणस उच्चे हो रहये साच्चो नै दबावै!
भाई के करया जाव्वै..सुसरा जमाणा ई लुच्चयाँ का आ गया.
घणी चोखी रागणी सै भाई....भाई ललित नै बात खरी कही. जै किते सुणण का जुगाड हो जाता तो समझिए के जम्मीं सुवाद आ जान्दा.
बहुत सुन्दर रचना ,,प्रादेशिक भाषा में लिखने और पढ़ने का आनंद कुछ अलग ही है ,,,बहुत अच्छी और चिंतन योग्य रचना !!!
जवाब देंहटाएंmujhe bhi achchhi lagi.
जवाब देंहटाएंआप सभी ने मेरी गरीब भाषा को भी इतना सम्मान दिया,मै आप सब का आभारी हूँ जो इस टूटी-फूटी अभिव्यक्ति में भी भाव को समझा...!
जवाब देंहटाएंरही बात इसे सुनवाने की तो साहब...."आवाज ना सुर साज....." वाली बात बिलकुल सच्ची है.....
हमें गाणा आता नहीं ओर कोई हमारा लिखा गाता नहीं....बस...
कुंवर जी,
बहुत बढ़िया कुंवर जी .
जवाब देंहटाएंआज मेरी ये अंतिम टिप्पणियाँ हैं ब्लोग्वानी पर.
कुछ निजी कारणों से मुझे ब्रेक लेना पड़ रहा हैं .
लेकिन पता नही ये ब्रेक कितना लंबा होगा .
और आशा करता हूँ की आप मेरा आज अंतिम लेख जरूर पढोगे .
अलविदा .
संजीव राणा
हिन्दुस्ता
आईये जाने .... प्रतिभाएं ही ईश्वर हैं !
जवाब देंहटाएंआचार्य जी
वाह कुंवर जी .. इस हरियानवी गीत ने तो समा बाँध दिया .. हरियानवी अंदाज में ही धो दिया है आज के चलन को ....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा आपकी भाषा में पढ़ कर और सच ही कहा है जीवन दर्शन को बहुत ही भली भांति उजागर कर रही है ये रचना
जवाब देंहटाएंजग मै साफ़ घर मै दागी काम आजकल ऐसा होया,
जवाब देंहटाएंईमान और धरम-करम तो बस बात्या का होया,
बहुत बढ़िया......
जीवन की सच्चाइयों से रूबरू कराती देसी कविता .. प्रभावशाली
जवाब देंहटाएंकुंवरजी से सादर निवेदन है कि आप अपने ब्लॉग पर साझा करने के लिए कुछ widgets डालें| आपकी लेखनी में वो दम है कि मैं उन्हें और लोगों से साझाँ करना चाहता हूँ
जवाब देंहटाएंमयंक जी राम राम!
हटाएंआपका बहुत बहुत आभार!आपने मेरे लेखन को साँझा करने के योग्य समझा ये मेरा सौभाग्य है!आपके सुझाव पर अमल शीघ्र ही होगा!
कुँवर जी,