शुक्रवार, 18 जून 2010
तो धिक्कार है कह दूं....क्या काफी है?
हम शेर से सियार बनते जा रहे है,
तो धिक्कार है कह दूं....क्या काफी है?
खुद को ही भूल रहे तो क्या याद करेंगे पूर्वजो को,
पता नहीं कौन सी थाती हम देंगे अपने वंशजो को,
उनको भी पिसने को तय्यार करते जा रहे है!
तो ये अस्वीकार है कह दूं...क्या काफी है?
रग-रग में खून वही पुराना है क्या नहीं जानते हो,
महज एक प्रयास करने भर फिर क्यों नहीं ठानते हो,
खुद पर गुजरने का इन्तजार ही क्यों करते जा रहे हो,
तो जीना बेकार है कह दूं....क्या काफी है?
कभी विश्व परिवार था आज परिवार ही विश्व हुआ जाता है,
असहनीय था जो कभी आज हमें नजर भी नहीं आता है,
उन मरने वालो में क्या हम नहीं मरते जा रहे है,
तो घोर अन्धकार है कह दूं.....क्या काफी है?
अब नहीं तो कब जागेंगे ये कौन बतायेगा,
क्या खुद भुगते बिना नहीं हमें समझ आएगा,
समर्थ हो कर भी क्यों हम पिछड़ते जा रहे है,
तो धिक्कार है कह दूं....क्या काफी है?
जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुंवर जी,
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@ कभी विश्व परिवार था आज परिवार ही विश्व हुआ जाता है,
जवाब देंहटाएंएकल परिवार ने हमारे समाज का जितना नुकसान किया उतना शायद किसी दूसरे कारण से नहीं हुआ है.
देखने वाली बात है की संस्कारों के क्षरण से परिवार टूटे है या परिवारों के टूटने से संस्कारों का क्षरण हुआ है .
आपके एक से बढ़कर एक आलेखों में एक और स्पर्शी रचना......
अब नहीं तो कब जागेंगे ये कौन बतायेगा,
जवाब देंहटाएंक्या खुद भुगते बिना नहीं हमें समझ आएगा ।
गहरे भावों के साथ बेहतरीन शब्द रचना ।
बेहतरीन रचना...
जवाब देंहटाएं@amit bhai sahab-"देखने वाली बात है की संस्कारों के क्षरण से परिवार टूटे है या परिवारों के टूटने से संस्कारों का क्षरण हुआ है"
जवाब देंहटाएंbilkul sahi kaha aapne.
@sada ji,@firdaus ji-aapka swaagat hai ji,bhaavo ko samajhne ke liye aabhaar...
kunwar ji,
इनको जगाना पड़ेगा सिर्फ धिक्कारने से काम नहीं चलेगा
जवाब देंहटाएंchhote se break ke baad, bhayankar wapsi.......
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक रचना |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
WAH JI ''KUNWAR JI .KYA JOSH BHARA ANDAZ HAI ..YHI ANDAJ CHAHIYE ..YHI SAMAY KI PUKAR HAI ...JOSH BANAYE RAKHEN...JAI HIND
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना .......बहुत खूब भाई .
जवाब देंहटाएंनमस्ते जी
जवाब देंहटाएंखूब सूरत रचना .
धन्यवाद
achchi rachna.
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