पिछले कई दिनों से मै ब्लॉग से दूर रहा!बस यूँ समझे कि मजबूर रहा!आज भी बस अधिक समय नहीं दे पा रहा हूँ!सो एक पोस्ट जो पहले भी पोस्ट कर चुका था आज फिर आपके समक्ष रख रहा हूँ!
मित्र!
एक ऐसा शब्द है जो पूर्णता देता है हमे!या यूं कहिये कि सम्पूर्णता देता है हमे,यदि 'मित्र' शब्दों से बहार है तो!मै आज थोडा सा गंभीर सा हो गया हूँ,अपने एक मित्र को धोखा देते हूए देख कर!
अभी एक फिल्म देखी थी '३ idiots'!उसमे अभिनेता दिल को धोखा देने कि बात कहता है जो हमे अच्छी लगती है!
मुसीबत में है जी और मन को समझा दो के कुछ है ही नहीं!लेकिन ये फिल्मो में ही ज्यादा अच्छा लगता है,असल जिंदगी में थोडा मुश्किल है!
असल जिंदगी में धोखे देने भी मुश्किल होते है और धोखे खाने भी!मै सोचता हूँ के धोखा खाने वाला इतना मजबूत नहीं होता होगा जितना के धोखा देने वाला होता होगा!पहले कितनी योजना बनानी पड़ती होगी,लाभ-हानि का भी पहले ही हिसाब लगाना पड़ता होगा,अपनी साख बचाने के इंतजामात भी पहले ही सुनिश्चित करने पड़ते होंगे! 'ये ही' हुआ तो क्या करना है?'ये नहीं' हुआ तो क्या करना है?कोई ओर बात हो गयी तो.......!बहुत सारी योजनाए बनानी ओर उन पर पूरी एकाग्रता से काम भी करना,कोई चूक नहो जाए!हो भी गयी तो उस-से भी निपटाना!बहुत मेहनत है इसमें!मानसिक ओर शारीरिक रूप से मजबूत वयक्ति ही(औरत भी) इस पूरे घटनाक्रम को क्रियान्वित कर सकता है!
देखा कितनी मेहनत,लगन ओर निष्ठा का काम है धोखा देना,धोखा खाने में क्या है?
जैसे क्रिकेट में एक तेज गेंदबाज बहुत दूर से दौड़ कर आता है,अपना पूरा जोर लगा देता है वो गेंद को फेंकने में,ओर बल्लेबाज अपना बल्ला उठा कर उस गेंद को जाने दे! तो क्या बीतती होगी उस गेंदबाज पर,ये एक सवेंदनशील कविता का विषय बनने के योग्य मुझे तो लगता है!
ठीक ऐसे ही एक परिश्रमी साथी अपने अथक प्रयासों से आपको धोखा दे और आप एक ही झटके में उसकी मेहनत पर पानी फेर दो ये कह कर के "मेरी तो किस्मत मे ही ये लिखा होगा,चलो एक शुरुआत ओर सही!"
मतलब कोई मुकाबले की बात नहीं,प्रतिशोध की बात नहीं,एक दम से हार मान कर दिखा दी अपनी अक्षमता!
देखा, धोखा देना हुआ न मुश्किल,धोखा खाने के मुकाबले!कुछ भी तो नहीं करना पड़ता धोखा खाने के लिए!न पहले धोखा खाने की तय्यारी, न बाद में धोखे से बचने के प्रयास!
मै भी अपने एक मित्र का जिक्र कर रहा था जो आजकल धोखा देने में महारत हासिल करता जा रहा है!उसे देख कर ही आज पूरा दिन मै गंभीर सा रहा,जो की मै अमूमन हुआ नहीं करता!मतलब उसका "धोखा" दिल को लग गया बस समझो!
जो बहुत सारे समय मेरे साथ रहे,मेरे साथ हँसे,सभी के साथ ऐसे वयवहार करे जैसे वो सीधा सा-सच्चा सा है ओर वो इतना बड़ा धोखा देता हुआ दिखे तो बात दिल तक तो पहूँचती ही है!
उसके वयक्तिगत जीवन में एक बहुत बड़ा घटनाक्रम अचानक गुजर गया,जो किसी भी लोह पुरुष को बड़े आराम से तोड़ दे, ऐसा घटनाक्रम!और उन जनाब पर कोई असर उसका दिखाई ही नहीं दिया!ओर जो बताया वो ये था..."जब रोना आता है तो कागज़ पर दो आँखे बनायी ओर टपका दिए दो आंसू उन से,दिल हल्का हो जाता है!"
वाह! क्या खूब धोखा दिया जा रहा है दुःख को भी!
दुख़ बेचारा इतनी मेहनत कर के आया होगा के इतने से तो रुला ही दूंगा,और कागज़ पर ही आंसू छाप कर दिखा दिया ठेंगा दुःख को भी!
बस अब और मै कुछ भी लिख नहीं पाऊंगा!क्योंकि मै अभी धोखा देने में अक्षम ही हूँ!ये कला नहीं आई अभी मुझे......
जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुंवर जी,
बेहतरीन लेख. बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंविलकुल ठीक कहा आपने
जवाब देंहटाएंagrred
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लेख...
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया!
जवाब देंहटाएंहम सोच सकते हैं आपके मन पर क्या बीत रही होगी..जब आपने इतनी मेहनत से ये पोस्ट लिखी और हमारे जैसे लोग उस पर सिर्फ "बहुत बढिया" लिखकर चलते बने :)
कुंवरजी धोखा देने में तो करीब करीब हम सभी महारत हासिल कर चुके है. हर इंसान अपनी आत्मा को धोखा देकर हर गैरवाजिब काम करने की कोशिश में लगा है.
जवाब देंहटाएंwaah dukh mitaane ka ye tareeka to bha gaya...ise amal me bhi launga...sundar aalekh
जवाब देंहटाएंभोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को तत्कालीन सत्तासीन नेताओं, अधिकारियों और पीड़ितों की लड़ाई लड़ने वाले संगठनों तथा न्याय के मंदिरों ने भी ऐसा धोखा दिया है कि धोखा भी धोखा खा जाए.
जवाब देंहटाएंयह बात तो सही कहा ...कि असल ज़िन्दगी में धोखे देने मुश्किल होते हैं....
जवाब देंहटाएं@शाहनवाज जी,@माधव जी,@सुनील जी,फिरदौस जी -आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद है जी मेरी भावनाओं को समझने के लिए...
जवाब देंहटाएं@पंडित जी-आपने बिलकुल सही समझा जी,लेकिन आप सब कि ये "बहुत बढ़िया" लिखने वाली बात मेरे जैसो के लिए तो एक बहुत बड़ा सहारा बन जाती है जी.....
कुंवर जी,
@अमित भाई साहब-जी बिलकुल ये भी आज कि मनोदशा का एक बड़ा कारण है!आप सही नब्ज पकड़ते है....
जवाब देंहटाएं@दिलीप भाई-हमारी तो परमात्मा से यही प्रार्थना है जी कि आपको इसे कभी अमल लाने कि जरुरत ही ना महसूस हो....
@हेम जी-हम आपकी भावनाओं को समझ सकते है!वो तो एक ऐसी दुखद और हमारे न्याय के मंदिरों पर कालिक पोतने कि घटना है कि उस पर कुछ भी कितना भी कहा/लिखा जाए कम है....
@महफूज़ भाई-आप सही कह रहे हो जी...
कुंवर जी,
आप सही कह रहे हैं कि किसी को धोखा देना या परेशान करना बहुत ही परिश्रम साध्य काम है। मेरे साथ ऐसा बहुत हुआ है, मैंने बेचारों का उत्साह जरा सा भी भंग नहीं किया। लोग मुझसे कहते कि आप कोई प्रतिक्रिया करो, मैं कहती कि बेचारा कई दिनों से मेहनत कर रहा है उसे सांस तो लेने दो। मुझे कुछ नहीं करना पड़ता था और उस बेचारे की रातों की नींद खराब होती रहती थी। बढिया विषय उठाया है आपने।
जवाब देंहटाएंअच्छा आलेख!
जवाब देंहटाएं@ajit gupta ji,@sameer ji-aapke samarthan ke liye aabhaar...
जवाब देंहटाएंkunwar ji,