ये कविता
यहाँ
जब मैंने पढ़ी तो जो ख्याल मन में आये वो ये थे....
मेरा पिघलना अभी बाकी है,
तो भला क्या समझूंगा
यूँ नदी की तरह बहने की बाते,
भांप बन बन कर उड़ने की बाते,
बर्फ से बादल होने की बाते,
इस बारे में आपके के क्या ख्याल है...बताएँगे....
जय हिन्द,जय श्री राम.
कुंवर जी,
sundar kavita + sundar blog
जवाब देंहटाएंपिघलना भी मत
जवाब देंहटाएंमेरा पिघलना अभी बाकी है,
जवाब देंहटाएंतो भला क्या समझूंगा
यूँ नदी की तरह बहने की बाते,
भांप बन बन कर उड़ने की बाते,
बर्फ से बादल होने की बाते,...
wow...great piece
aap sabhi ka aabhaar...
जवाब देंहटाएंkunwar ji,