मंगलवार, 16 मार्च 2010

नाम सब से अच्छा "तम्बकतुरा"!...(हास्य-वयंग्य)

एक गरीब के घर गलती से लड़का पैदा हो गया!क्षमा चाहूंगा,गरीब अधिकतर गलती ही करता है ना इसी लिए यहाँ भी 'गलती से' निकल गया!हाँ तो वो पैदा तो हो गया पर अब उसका नाम क्या रखे जी?
बड़ा ही कठिन सा प्रशन!हमारे-तुम्हारे लिए तो नहीं पर उस गरीब के लिए जरुर!

राम,कृष्ण,बलराम,विक्रम आदि रखदे तो क्षत्रिय वर्ग खा जाएगा उसे,'हमारे नाम ये रखेगा अब?"
सोहन,मोहन,बनारसी रखे तो पडोसी जीने नहीं देंगे,'हमारे ही नाम पाए थे तुझे?"
असलम,राशिद,रफ़ीक उसे अच्छे नहीं लगे,क्योंकि रखे तो जात-बिरादरी का डर!
आजकल के मोडर्न नाम उसे सूझते नहीं!

एक जमींदार आया,उसने कुछ बधाई स्वरूप कुछ अनाज उस गरीब के घर डाला और बोला इसका नाम रख दो "तम्बकतुरा"!

चलो हो गया जो नामकरण!
अब तम्बक्तुरा बड़ा हो गया,समय पर विवाह भी हो गया जैसे-कैसे!अब उसकी पत्नी थोड़ी-बहुत पढ़ी-लिखी सी आ गयी जी गलती से!अब लड़की और गरीब की तो गलती से ही पढ़ ली होगी!उसे कोंन सा राष्ट्रपति बनना है!

अब कुछ दिन तो उसने सहा अपने पतिदेव का नाम-रूपी-अपमान!आखिर कब तक!एक दिन उसके अन्दर की शिक्षित नारी तड़प उठी,बोली "ये नाम बदल लो जी,मुझे अच्छा नहीं लगता!"
तम्बकतुरा बेचारा पुश्तैनी गरीब,जमींदार जो कहें वोही सर्वोपरि!बोला,"नाम में क्या रखा है,कोई कुछ भी कह ले,हमे तो अपना पेट भरना है और सो जाना है!और ये तो वैसे भी बड़े चौधरी ने दिया है,बदल कर उनका अपमान करना मेरे बस में नहीं है!":

पर जब पेट भरी नारी जाग जाती है तो उसे समझाना सम्भवतः असंभव है!अपने पतिदेव का नाम परिवर्तन की हठ उसने ठान ली!अब तम्बकतुरा गरीब के साथ-साथ आदमी भी था!घर की सुख-शान्ति के लिए के पत्नीश्री की मान लेना ही उचित देख बोला,"तू ही रख दे कोई नाम!"

वो बोली आज शाम तक नाम ढूंढ लाऊँगी!

उसने सोचा सावित्री तो यमराज से अपने पति के प्राण तक वापस  ले आई थी मुझे तो एक नाम ही लाना है,ले कर ही दम लूँगी!ऐसा प्राण कर वो घर से निकल पड़ी!सोचा जो भी नाम सबसे अच्छा लगेगा वो ही अपने पतिदेव का नाम रखूंगी!

घर से थोड़ी दूर निकलते ही उसने देखा किसी की अर्थी जा रही है!पूछने पर पता चला के मरने वाले का नाम था "अमर"!
उसने सोचा जो मर गया वो कैसा अमर?

थोडा आगे चलने पर देखा के एक आदमी शराब के नशे धुत्त सबके साथ गाली-गलौंच कर रहा था!पता लगा के उसका नाम था "भगत"!
उसने सोचा जो सूरा का गुलाम है वो कैसा भगत?
आगे राह में उसने देखा के एक हट्टा-कट्टा आदमी बदहवास सा भागा जा रहा है!बार पीछे मुड़-मुड़ कर देखता जाता और दौड़ता जाता!पता लगा वो ना जाने किस से डर कर भाग रहा था!नाम पता लगा उसका "शेर सिंह"!
उसने सोचा ये कैसा शेर,कैसा सिंह,जो डर रहा है?

थक हार कर शाम होते-होते वो बेचारी वापस अपने घर आ गयी!अब सभी को बता कर निकली थी के आज तो कोई उत्तम नाम अपने पतिदेव का ढूढ़ लाऊँगी,सो सभी की व्याकुल दृष्टि उसी की और थी!अब पुरुषो को तो उसकी हालत से अंदाजा हो गया के जो उन्होंने सोचा था वोही हुआ है आज,सो चुप ही रहे!पर नारी तो नारी ठहरी!समझ तो वें भी गयी के क्या हुआ है,पर जो रस सुन कर आता है वो महसूस करने में कहाँ?अपने-अपने अंदाज़ में सभी ने पूछा?
अब जो उत्तर उस बेचारी ने दिया वो मै आपको बिलकुल वैसे बताता हूँ जैसे मैंने सुना था!है तो हरियाणवी पर थोडा सरल है! वो बोली.....
                              "अमर को मरदे* देख्या,अर भगत देख्या सूरा**,
                               शेर सिंह नाम जिसका वो भी डर रह्य था पूरा,
                                सुन लो मेरी जिक्र करण की लोड*** नहीं...
                                नाम सब तै अच्छा "तम्बकतुरा"!

ये आख्यान मैंने अपने गाँव में सुना था!आप तक पहुँचाने में मैंने भी कुछ मिर्च मसाला इसमें अपनी ओर से डाल दिया है!पता नहीं स्वाद बिगाड़ा है या सुधारा है मेंरे मसाले ने!अब ये तो आप ही बता सकते हो!अब तो ये आपके हवाले........
कुछ शब्दार्थ...
*=मरते हुए
**=शराबी
***=जरुरत 
 कुंवर जी,

5 टिप्‍पणियां:

  1. नव संवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनाये ....

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  2. आपकी नज़्म से अच्छा यह व्यंग्य लगा.
    ..बधाई.

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  3. purani katha kahaniyon mein bhi achche sandesh hua karte the..badi hi rochak katha sunaayee aap ne.

    naam hai to badhiya!tambaktoora! :)

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  4. आपके इधर ध्यान देने का हार्दिक धन्यवाद है जी!
    आपके सुझाव पर अमल करने की पूरी-पूरी कोशिश की जायेगी!
    अल्पना जी आपको ये नाम अच्छा लगा,
    मुझे ख़ुशी हुई
    कुंवर जी,

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