बुधवार, 10 मार्च 2010

नारी है अत्याचारी........(हास्य-वयंग्य)

कल ही महिला आरक्षण बिल पारित हुआ और आज मेरे पास ये सन्देश कई बार कई लोगो ने भेजा!
मुझे लगा आपको भी ये बताना चाहिए...


let,s celebrate men,s day...
बेचारा मर्द.....
अगर औरत पर हाथ उठाए तो ज़ालिम,
अगर पिट जाए तो बुजदिल,
औरत को किसी और के साथ देख कर लड़ाई करे तो 
जलता है,
चुप रहे तो बेगैरत.
घर से बहार रहे तो आवारा और
घर में रहे तो नाकारा,
बच्चो को डांटे तो  ज़ालिम,
ना डांटे तो लापरवाह,
औरत को सर्विस से रोके तो
शक्की-मिजाज़,
ना रोके तो औरत की कमाई खाने वाला,
आखिर नादाँ मर्द जाए तो जाए कहाँ...?
जनहित में जारी...
नारी है अत्याचारी!


मुझे इसके वास्तविक रचनाकार का नहीं पता!पर जिसने भी इसकी रचना की है उसने अपना पूरा अनुभव पूरी इमानदारी से उड़ेल दिया है!
कुंवर जी,

6 टिप्‍पणियां:

  1. हा हा हा समझ सकते हैं आपका दर्द । बडिया लिखा है। शुभकामनायें ए नीरीह प्राणी ! तेरा भी कल्यान हो।

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  2. हा हा हा
    आनन्द आ गया...कोई तो है अपना भी ’दर्द’ समझने वाला.
    एक सुझाव है......
    ’मध्य मार्ग’ अपना लिया जाये.

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  3. सच कहा आपने जिसने भी लिखा होगा बड़ी शिद्धत से लिखा है,अच्छी कविता .
    विकास पाण्डेय
    www.विचारो का दर्पण.blogspot.com

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  4. kaavya-rachnaa manoranjak hai
    to chaliye....
    kaheen 'naari-darbaar, mei hi fariyaad kee jaae

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  5. aap sabhi ke padhaarne ka dhanyawaad!

    shefali ji "itna bhi" mtlab itne ke laghbhag to hota hi hai....
    hai na!
    kunwar ji,

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