मंगलवार, 18 मई 2010

कमी अपनों की खलती ही है!-(कविता)

रातो में,
बातो में,

कभी खयालो में
कभी हालातो में,

कभी जोश में
कभी जज्बातों में,

किसी से बिछुड़ने पर 
किसी की मुलाकातों में,

मौत के हमले में,
कभी जिंदगी की घातों में,

बोझ होते रिश्तों में
कहीं नए जुड़ते नातों में
.
.
.
कमी अपनों की खलती ही है! 

जय हिन्द जय श्रीराम,
कुंवर जी,

32 टिप्‍पणियां:

  1. हैरान हू
    परेशान हू
    सायद खुद से भी
    अनजान हूँ
    रिस्तो को समझ नही पाया जो आज तक
    किसी अपने के खोने से परेशान हू

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  2. बहुत सुन्दर ढंग से भावों को अभिव्यक्ति दी है आपने....सुन्दर रचना...

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  3. @राणा जी- आपने दिल कोछुने वाली बात कह दी!



    @दिलीप भाई-आपका स्वागत है जी,आपने भाव समझे,शुक्रिया...

    @रंजना जी-आपका स्वागत है जी!

    आप सभी का शुक्रिया!

    कुंवर

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  4. bilkul kunwar ji ..kami to apno ki humesha kahlti hai ....badhiya kavita kahi aapne..."haalaat aur jazbaat" apne aap me bahu vachan hain jahaan tak meri jankari hai ...haalaton aur jazbaton karne se gadbad ho jayegi...

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  5. वाह भाई
    कमाल की अभिव्यक्ति

    राम राम

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  6. सुन्दर तारतम्यमय रचना

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  7. @ललित जी,@ वर्मा जी-आपका स्वागत है जी,हौसला बढाने के शुक्रिया!

    @आतिश जी-आपका शुक्रिया जो इस छोटी मगर गम्भीर गलती से परिचय करवाया!अब से पहले ऐसे सोचा ही नहीं था!वैसे ऐसे पलो में नियमादि का ध्यान कहाँ रहता है!

    इसे कैसे सुधारा जाए जो कविता की मूल भावना भी बची रहे!ऐसे ही मार्गदर्शन करते रहे!

    कुंवर जी,

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  8. @गोदियाल जी-बस ऐसे ही स्नेहाशीष बनाए रखे....

    कुंवर जी

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  9. भाई वाह क्या बात है , लाजवाब प्रस्तुति , उम्दा अभिव्यक्ति ।

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  10. बोझ होते रिश्तों में
    नए जुड़ते रिश्तों में ....
    कमी अपनों की ही खलती है ...
    ख़ामोशी भी, तंज़ भी अपनों का ही खलता है ज्यादा ....
    अच्छी कविता

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  11. उत्तम भाव कम शब्दों में, सुंदर रचना।

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  12. बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति ....सुन्दर रचना

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  13. ...बहुत सुन्दर,प्रसंशनीय !!!

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  14. सच में यही सच में जीवन कि सच्चाई थी जो कभी घटी और फिर घटती चली गयी . इसने जीवन कही का नहीं छोड़ा . किसी वस्तु में आनंद नहीं ,
    " मौत के हमलो में कभी जिंदगी की घातों में "
    मुझे तो यही पंक्ति पूरी कविता की आत्मा लगी या शायद मेरी आत्मा के ज्यादा पास थी इसीलिए अच्छी लगी . मन को गहरी संवेदना को प्रगट कर दिया इस कविताने
    Hats Off to you hardeep !!!!!!!!!!!!!!!!!!
    इसी रचनाकार की मैं बात कर रहा था और वो हिन्दू मुस्लिम में फंसा हुआ था .
    जबरदस्त और महान लेखन के लिए साधुवाद . ऐसे ही लिखते रहे , ये निष्काम भक्ति में गिना जायेगा .

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  15. आदरणीय-@शाष्त्री जी,@वाणी जी,@नितीश राज जी,@अरशद जी@संगीता जी,@उदय जी-आपका स्वागत है जी,


    आप सब मुझ पर ऐसे ही स्नेहाशीष बरसाते रहना जी!

    @मिथिलेश भाई-आपको कविता बढ़िया लगी,आपका धन्यवाद है जी,जो आपने मझे प्रोत्साहित भी करने चले आये!

    आप सब ने मुझे मेरा दायित्व फिर स्मरण करवा दिया,अब खुद और अधिक जिम्मेवार मान रहा हूँ आ सब के प्रति!मै अपनी जिम्मेवारी इमानदारी से निभा पाऊं उसके लिए आपके इसी सहयोग की मुझे सदा जरुरत रहेगी!

    कुंवर जी

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  16. अपनो की कमी तो खलती ही है बशर्ते वो अपने हो - अच्छी सोच और शब्द

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  17. जी कौशिक जी!

    स्वागत है जी आपका!अपने तो अपने ही होते है जी....

    कुंवर जी

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  18. बेहद सुन्दर रचना ,मन में कई नए विचारों को जन्म दे गई

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  19. आपको पढ़ते तो रहे है लेकिन टिप्पणी देने आज आ पाए..सरल सहज शब्दों मे गहरी सम्वेदना मन पर असर करती है...

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  20. बहुत बेहतरीन और सुन्दर रचना .......

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  21. @सोनल जी,@मिनाक्षी जी,@समीर जी,@देवेश भाई -आपका स्वागत है जी,आप सब को यहाँ देख कर सच में मै गर्व महसूस कर रहा हूँ!

    कुंवर जी,

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  22. सही कहा कुंवर जी, अपनों की कमी तो हमेशा ही खलती है.

    बेहतरीन रचना. बहुत खूब!

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  23. धन्यवाद शाहनवाज भाई....

    कुंवर जी,

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  24. हम कितनी भी बुलंदी पर क्यों न हो अपनी की कमी तो खलती ही हैं,,भावनात्मक रचना ..लाजवाब ,,

    विकास पाण्डेय
    www.vicharokadarpan.blogspot.com

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  25. Tanhaai mein apno ki kami to hamesha hi khalti hai ..bahut achaa likha hai Kunwar ji ...

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  26. @विकास जी,@नासवा जी-आपका स्वागत है जी!

    अपनों की कमी खाली थी और कलम अपने आप चली थी.....

    धन्यवाद आप सब का इतना प्यार बरसाने के लिए...

    कुंवर जी

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