बुधवार, 23 जून 2010

जीवन में कोई रहस्य है ही नहीं.......!


आज कुछ ओशो की बातो पर चर्चा हो जाए!उनका मनोविज्ञान अनूठा था,थोडा अलग था,थोडा अजीब सा भी था,पर गहरा था!देखिये जीवन के रहस्य के बारे में वो क्या कहते है....और तत्पश्चात आप क्या कहते है वो भी बताने की कृपा करे......

"जीवन में कोई रहस्य है ही नहीं। या तुम कह सकते हो कि जीवन खुला रहस्य है। सब कुछ उपलब्ध है, कुछ भी छिपा नहीं है। तुम्हारे पास देखने की आँख भर होनी चाहिए।
पर यह ऐसा ही है जैसी कि अंधा आदमी पूछे कि 'मैं प्रकाश के रहस्य जानना चाहता हूँ।' उसे इतना ही चाहिए कि वह अपनी आँखों का इलाज करवाए ताकि वह प्रकाश देख सके। प्रकाश उपलब्ध है, यह रहस्य नहीं है। लेकिन वह अंधा है- उसके लिए कोई प्रकाश नहीं है। प्रकाश के बारे में क्या कहें? उसके लिए तो अँधेरा भी नहीं है- क्योंकि अँधेरे को देखने के लिए भी आँखों की जरूरत होती है।


एक अंधा आदमी अँधेरा नहीं देख सकता। यदि तुम अँधेरा देख सकते हो तो तुम प्रकाश भी देख सकते हो, ये एक सिक्के के दो पहलू हैं। अंधा आदमी न तो अँधेरे के बारे में कुछ जानता है न ही प्रकाश के बारे में ही। अब वह प्रकाश के रहस्य जानना चाहता है। अब हम उसकी मदद कर सकते हैं उसकी आँखों का ऑपरेशन करके। प्रकाश के बारे में बड़ी-बड़ी बातें कह कर नहीं- वे अर्थहीन होंगी!


जिस क्षण अहंकार बिदा हो जाता है, उसी क्षण सारे रहस्य खुल जाते हैं। जीवन बंद मुट्ठी की तरह नहीं है, यह तो खुला हाथ है। लेकिन लोग इस बात का मजा लेते हैं कि जीवन एक रहस्य है- छुपा रहस्य। अपने अँधेपन को छुपाने के लिए उन्होंने यह तरीका निकाला है कि छुपे रहस्य हैं कि गुह्य रहस्य है जो सभी के लिए उपलब्ध नहीं हैं, या वे ही महान लोग इन्हें जान सकते हैं जो तिब्बत में या हिमालय में रहते हैं, या वे जो अपने शरीर में नहीं हैं, जो अपने सूक्ष्म शरीर में रहते हैं और अपने चुने हुए लोगों को ही दिखाई देते हैं।
और इसी तरह की कई नासमझियाँ सदियों से बताई जा रयही है सिर्फ इस कारण से कि तुम उस तथ्य को देखने से बच सको कि तुम अंधे हो। यह कहने की जगह कि 'मैं अंधा हूँ', तुम कहते हो, 'जीवन के रहस्य बहुत छुपे हैं, वे सहजता से उपलब्ध नहीं हैं। तुम्हें बहुत बड़ी दीक्षा की जरूरत होती है।'
जीवन किसी भी तरह से गुह्य रहस्य नहीं है। यह हर पेड़-पौधे के एक-दूसरे पत्ते पर लिखा है, सागर की एक-एक लहर पर लिखा है। सूरज की हर किरण में यह समाया है- चारों तरफ जीवन के हर खूबसूरत आयाम में। और जीवन तुम से डरता नहीं है, इसलिए उसे छुपने की जरूरत ही क्या है? सच तो यह है कि तुम छुप रहे हो, लगातार स्वयं को छुपा रहे हो। जीवन के सामने अपने को बंद कर रहे हो क्योंकि तुम जीवन से डरते हो।


तुम जीने से डरते हो- क्योंकि जीवन को हर पल मृत्यु की जरूरत होती है। हर क्षण अतीत के प्रति मरना होता है। यह जीवन की बहुत बड़ी जरूरत है- यदि तुम समझ सको कि अतीत अब कहीं नहीं है। इसके बाहर हो जाओ, बाहर हो जाओ! यह समाप्त हो चुका है। अध्याय को बंद करो, इसे ढोये मत जाओ! और तब जीवन तुम्हें उपलब्ध है।
अभी के द्वार में प्रवेश करो और सब कुछ उदघाटित हो जाता है - तत्काल खुल जाता है, इसी क्षण प्रकट हो जाता है। जीवन कंजूस नहीं है : यह कभी भी कुछ भी नहीं छुपाता है, यह कुछ भी पीछे नहीं रोकता है। यह सब कुछ देने को तैयार है, पूर्ण और बेशर्त। लेकिन तुम तैयार नहीं हो।"


उपरोक्त नीले रंग में सारी की सारी बाते ओशो द्वारा कही गयी है!आपने पढ़ा....क्या वाकई ऐसा ही है....?अपने विचार जरुर व्यक्त करे हो सकता है जो बात इसे पढ़ते समय छिपी रह गयी हो वो इस पर कुछ टिप्पणी करते समय प्रकट हो जाए.....

जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुंवर जी,

6 टिप्‍पणियां:

  1. कुंवर जी रहस्य किसी चीज या बात के अन्दर छिपा हुआ वह तत्त्व या बात जिसका पता ऊपर से यों ही देखने पर न चलता हो, और फलतः जिसे जानने या समझने के लिए कुछ विशिष्ट पात्रता, बुद्धि-योग्यता आदि की आवश्यकता होती हो को कहते है. उसी प्रकार जीवन का ध्येय आत्मस्वरूप का ज्ञान प्राप्त करना है, और इस तत्त्व को पहचान के लिए भी विशिष्ट पात्रता, बुद्धि-योग्यता आदि की आवश्यकता होती है. ईश्वर और उसकी सृष्टि के संबंध के वे गुप्त तत्त्व या भेद जो सब लोग नहीं जानते या नहीं जान सकते और जिनकी अनुभूति केवल सात्विक वृत्तिवाले लोगों के अंतःकरण में ही होती है।
    अतः जब तक किसी भी तत्त्व को समग्र रूप में जान पाने की योग्यता ना आ पाये तब तक वह तत्त्व रहस्य ही रहेगा. जब जान लिया तो रहस्य कैसा,
    इसलिए यह ठीक है की रहस्य कुछ नहीं है, लेकिन कब ??? जब तक की जान लिया जाये.
    किसी ने कोई वस्तु प्रत्यक्ष अनुभूत ही ना की हो तब तक आप उसे कितना ही बता लीजिये की इसका स्वरुप कैसा है उसके लिए वह रहस्य ही है. जब जानने की पात्रता आ गयी तो कुछ गोपन ना रहा.
    अंतःकरण की निर्मलता सारे रहस्यों को उदघाठित कर देती है, फिर कुछ गोपन नहीं रह पाता.

    जैसा की रामचरितमानस में भगवान श्री राम कहते है ------ मोहे कपट छल छिद्र ना भावा निर्मल मन जन सो मोहि पावा

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  2. मेरे ख्याल से अमित जी ने बिल्कुल सही कहा है और उससे आगे कहना तो दोहराना ही होगा…………………अनुभूति के बाद ही सब रह्स्य उदघाटित होते हैं……………सबसे पहले जानना है स्वयम को उसके बाद कुछ बचेगा ही नही …………॥कोई रहस्य नही।

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  3. बेहद ख़ूबसूरत और शानदार लेख! उम्दा प्रस्तुती!

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  4. ओशो को पढ़ा तो आयी है ... पर सुना है दिलचस्प है बहुत उनक लिखा ..

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  5. आपकी साफगोई काबिले तारीफ है।
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    क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है?
    अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।

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