शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

ज़ख्म देख कर भी कोई सहलाता नहीं है,,,,(कुँवर जी)

ज़ख्म देख कर भी कोई सहलाता नहीं है,
नमक डालते है,इलाज़ कोई बताता नहीं है!

आँखों में आंसूं देख आँखे झुकाते मिले सब,
हौसला बढाने को भी तो कोई मुस्कुराता नहीं है!

चौराहे तक तो खूब साथ निभाया गया,
अब गलत-ठीक ही सही,राह कोई बताता नहीं है!

उनकी जरुरत के हिसाब से तो रिश्ते बहुत बने,
अपनी बारी आई,नया-पुराना कोई रिश्ता निभाता नहीं है!

चलो किसी का अच्छा किया ही नहीं हमने,
फिर सोचा,हँसे;बुरा किया हो ये भी तो याद आता नहीं है!


जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,

12 टिप्‍पणियां:

  1. ज़ख्म देख कर भी कोई सहलाता नहीं है,
    नमक डालते है,इलाज़ कोई बताता नहीं है!

    isi baat ka toh rona hai bandhu.........

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  2. .

    कुंवर जी ,

    स्वार्थ से भरी इस दुनिया में कोई किसी का नहीं होता । सब मतलब के ही साथी होते हैं। सुख के सब साथी, दुःख का न कोई ..

    .

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  3. @अलबेला खत्री जी-

    @ZEAL जी-

    आपका स्वागत है जी,मुझ तुच्छ के ब्लॉग पर पधार कर अपने कीमती शब्द यहाँ छोड़ने के लिए आभार!

    अलबेला जी आपका कमेन्ट पढ़ते-पढ़ते ही मै तो रोहतक में तेलियार झील पर पहुँच गया था,जहाँ आपसे मै प्रत्यक्ष में हाथ मिला कर मिला था...

    इस स्नेहाशीष को यूँ ही बना के रखना जी..

    कुंवर जी,

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  4. उनकी जरुरत के हिसाब से तो रिश्ते बहुत बने,
    अपनी बारी आई,नया-पुराना कोई रिश्ता निभाता नहीं है!

    आज कोई निभाने की बात नहीं करता ..अपना स्वार्थ साधते हैं ...

    अच्छी प्रस्तुति

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  5. आँखों में आंसूं देख आँखे झुकाते मिले सब,
    हौसला बढाने को भी तो कोई मुस्कुराता नहीं है!
    ........ हमेशा की तरह ये पोस्ट भी बेह्तरीन है
    कुछ लाइने दिल के बडे करीब से गुज़र गई....

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  6. चलो किसी का अच्छा किया ही नहीं हमने,
    फिर सोचा,हँसे;बुरा किया हो ये भी तो याद आता नहीं है!

    संजयजी के ही शब्दों में ...........हमेशा की तरह ये पोस्ट भी बेह्तरीन है
    कुछ लाइने दिल के बडे करीब से गुज़र गई....

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  7. चलो किसी का अच्छा किया ही नहीं हमने,
    फिर सोचा,हँसे;बुरा किया हो ये भी तो याद आता नहीं है!

    बहुत सुन्दर !

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  8. चलो किसी का अच्छा किया ही नहीं हमने,
    फिर सोचा,हँसे;बुरा किया हो ये भी तो याद आता नहीं है!

    बहुत खूब। सुन्दर रचना.........

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  9. उनकी जरुरत के हिसाब से तो रिश्ते बहुत बने,
    अपनी बारी आई,नया-पुराना कोई रिश्ता निभाता नहीं है!..

    ये तो रीत है जीवन की ... कौन साथ देता है ... अच्छा लिखा

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  10. आप सभी का स्वागत है जी,अपने अमूल्य विचार यहाँ प्रकट करने का आप सभी सुधिजनो का आभार!

    कुंवर जी,

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  11. बहुत खूब लिखा है आपने.... हर पंक्ति ने मन मोह लिया. लिखते रहे.

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