सोमवार, 27 दिसंबर 2010
ये रात अँधेरी और सर्द तो जरुर है,पर क्या मेरे मन से भी ज्यादा...?(कुंवर जी)
ये रात अँधेरी और सर्द
तो जरुर है,
पर क्या मेरे मन से भी ज्यादा..?
जो
समेटे हुए है,
अंधड़ कितने ही,
कितने ही तुषाराघात सहे हुए है!
खुशियों के कितने ही सूरज
धुंधले-धुंधले से फिर रहे है
मेरे दुखो कि धुन्ध में!
जैसे भीख मांगते हो
कुछ पल को दिखने कि खातिर!
और आस के सूरज तो
फिर से नकलने की आस छोड़,
छिप ही चुके है!
ये रात अँधेरी और सर्द तो जरुर है,
पर क्या मेरे मन से भी ज्यादा...?
जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुंवर जी,
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और आस के सूरज तो
जवाब देंहटाएंफिर से नकलने की आस छोड़,
छिप ही चुके है!
अच्छी भावाभिव्यक्ति!!
लेकिन नववर्ष के आगमन पर यह सर्द सी उदासी भरी?
नव-उत्साह की शुभकामनाएं!!
@ये रात अँधेरी और सर्द तो जरुर है,
जवाब देंहटाएंपर क्या मेरे मन से भी ज्यादा...?
मन अथाह उसकी गहराई नापना असंभव है
लेकिन अंधेरा सतही है, कभी तो सूरज की किरणें वहां तक पहुंचेगी और लाएंगी,गरमाहट और उजास का उपहार।
सुंदर कविता कुंवर जी
राम राम
मेरे दुखो कि धुन्ध में!
जवाब देंहटाएंजैसे भीख मांगते हो
कुछ पल को दिखने कि खातिर!
और आस के सूरज तो
फिर से नकलने की आस छोड़,
छिप ही चुके है!
बहुत सुन्दर बिम्बों से सजा शब्दचित्र परोसा है आपने!
आपको नए साल की ढेर सारी शुभकामनाएं.
सादर!
@सुज्ञ जी- नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये आपको भी....
जवाब देंहटाएंउदासी क्यों है........?
तो एक मानव मन अपने आस-पास के दुःख को देख कर उदास हो ही जाता है....मै भी क्या करूँ...?
कुंवर जी,
@ललित जी- राम राम जी,आप बिलकुल; सही कह रहे हो जी..पर जब तक खुद नही देखेंगे तब तक हम जैसे मूढमति विश्वाश नहीं कर पायेंगे....
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन और सहारे के लिए आभार...
कुंवर जी,
@संजय भास्कर जी-नव वर्ष की शुभकामनाये आपको भी...
जवाब देंहटाएंक्या बात...आज एक ही टिप्पणी...???
मजाक कर रहा हूँ जी...धन्यवाद है जी आपका भी...
कुंवर जी,
खुशियों के कितने ही सूरज
जवाब देंहटाएंधुंधले-धुंधले से फिर रहे है
मेरे दुखो कि धुन्ध में!
जैसे भीख मांगते हो
गजब भाव-प्रवाह !
खुशियों के कितने ही सूरज
जवाब देंहटाएंधुंधले-धुंधले से फिर रहे है
मेरे दुखो कि धुन्ध में!
जैसे भीख मांगते हो
बहुत सुन्दर लिखा है आपने
@Amit bhai sahaab...
जवाब देंहटाएं@Vandana ji- shukriya...
kunwar ji,