जिनको हमने अपना नेता बनाया
वो ही दुश्मन हुए हमारे,
हम उनको और
वो कुर्सी को पूजते रहे,
अब उनकी तिजोरिया है
कि भरती ही जा रही है,
और हम वैसे ही पहले की तरह
दो वक़्त की रोटी को ही जूझते रहे!
जूझते है हम
जिन्दंगी से जिन्दगी भर
और जुझारू वो है
बस हम तो
इस पहेली को ही
बूझते रहे!
जय हिन्द,जय श्रीराम
कुंवर जी,
... kyaa baat hai ... bahut badhiyaa !!!
जवाब देंहटाएंउदय जी-आपका स्वागत है जी,
जवाब देंहटाएंये जो बात है..वो है तो बढ़िया नहीं,पर सच्चाई हो गयी है!
कुंवर जी,
और हम कर क्या सकते हैं।
जवाब देंहटाएं@वंदना जी-स्वागत है जी आपका,सही है कह रही है आप,पधारने के लिए आभार !
जवाब देंहटाएंकुंवर जी,
बेहतरीन... सच को कितने प्यार से उतार दिया इस कागज़ पर...
जवाब देंहटाएंअब हमको कुछ तो करना ही होगा....हमारा धन जो वो अपनी तिजोरियों में भरते चले गए ...बाहर निकालना होगा......इस काम को किसी एक को तो शुरू करना ही होगा .......
जवाब देंहटाएंकुछ ऐसा ही कहने की कोशिश की है...शब्दों का उजाला ने
जबरदसत अभिव्यक्ति सच्चाई की
जवाब देंहटाएं@पूजा जी-
जवाब देंहटाएं@हरदीप जी-
धन्यवाद है जी,आपका स्वागत है जी!
कुंवर जी,
@सुनील जी-राम राम जी,बहुत दिनों के दिनों के बाद भेंट हुई जी!स्वागत है जी आपका एक बार फिर!
जवाब देंहटाएंकुंवर जी,
बेहद शानदार सत्य का उद्घाटन
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंबेहद सार्थक रचना। आम इंसान , उम्मीदों के साथ जिसे सत्ता में लाता है वो ही उसे निराश करता है। गरीबों का खून चूस चूस कर स्वयं मालामाल होता रहता है , और आम जनता वहीँ की वहीँ रह जाती है। न कोई विकास , न कोई सुनवाई ।
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बेहद सार्थक रचना...आपका स्वागत है...
जवाब देंहटाएं@ बस हम तो
जवाब देंहटाएंइस पहेली को ही
बूझते रहे!
और पता नहीं कब तक बुझते ही रहेंगे,,,,,,,,,,,, बहुत खूब कुंवरजी !
नेताओं को समझना तो कठिन नहीं पर उनको समझते हुए भी उन पर विश्वास करना कतई समझ नहीं आता.
जवाब देंहटाएं@सुज्ञ जी-राम राम जी,क्यों जले पर नमक सा छिड़क रहे हो जी..."शानदार"!हुह!
जवाब देंहटाएं@ZEAL जी-बिलकुल सही कहा जी आपने,ना विकास ना कोई सुनवाई,आम आदमी वही ठगा सा रह जाता है!
कुंवर जी,
@फिरदौस जी-राम राम जी,आपका भी स्वागत है जी,बहुत दिनों के बाद आपसे भेंट हुई जी!बहुत अच्छा लगा जी!
जवाब देंहटाएं@अमित भाई साहब-राम राम जी,एकदम ऐसा सा ही है जी जैसा आपने कहा...पता नहीं कब तक बूझते रहेंगे...???
कुंवर जी,
@विचारी जी-राम राम जी,आपके विचारों से बिलकुल सहमत हूँ जी!किन्तु इन पर अपने विचार प्रकट करूँगा तो एक ओर पोस्ट बन जायेगी अभी!
जवाब देंहटाएंबस इतना ही कहूँगा कि इनमे से चुने या उन में से.....चुनना उन्ही में से पड़ता है.....मजबूरी कह लो अब इसे या कुछ और!
अपने अमूल्य विचार यहाँ प्रकट करने का आप सभी सुधिजनो का आभार!
कुंवर जी,
हम उनको और
जवाब देंहटाएंवो कुर्सी को पूजते रहे,
सही कह रहे हो कुंवर जी...
bahut khoob kunwar ji
जवाब देंहटाएंदो वक़्त की रोटी को ही जूझते रहे!
जवाब देंहटाएंजूझते है हम
जिन्दंगी से जिन्दगी भर
और जुझारू वो है
........सही कह रहे हो कुंवर जी
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
जवाब देंहटाएं@शाहनवाज जी-आपका स्वागत है जी,पधारने का शुक्रिया!
जवाब देंहटाएं@संजीव राणा- अरे राणा साहब बहुत दिनों के बाद दिखाई दिए..चलो जब दिख ही गए हो तो कुछ हो जाए नया..
@संजय भास्कर जी- संजय भाई देर से आने कि सारी कसर आपने पूरी कर दी,दो टिप्पणी इनाम स्वरूप देकर!स्वागत है जी आपका!
आप आये तो,
हम तो बस बहाने सोचते रह जाते है
कि हाँ अब जायेंगे!
कुंवर जी,
कुंवर जी,
जवाब देंहटाएंअग्री करते हैं हम! जूझते हैं हम और जुझारू हैं वो.....!
सत्य का सजीव चित्रण.
आशीष
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नौकरी इज़ नौकरी!