आज जहा देखो वही भ्रष्टाचार, कपट, झूठ और बेईमानी.... बस सब यही दिखता है! कहते है पहले ये सब गुण "किसी अज्ञात डर" से कही कोने छुप कर रहते थे! यदा-कदा ही समाज में दिखने को मिलते थे!कही दिख गए जिसके संग तो उसे शर्मिंदगी भी महसूस होती दिखती थी!
परन्तु आजकल स्थिति इसके उलट होती जा रही है!ये सब गुण ही आजकल ज्यादा दिखाई दे रहे है!वो "अज्ञात" अज्ञात सा ही हो गया है!उसका डर भी अज्ञात ही बताया जा रहा है!
इमानदारी जैसे गुण लुप्त प्राय दिखने लगे है!लुप्त नहीं हुए है, ऐसा दिखने लगा है! एक तो इमानदारी बेचारी अकेली पड़ गयी और वो दुसरे गुण कई सारे इक्कठे हो गए!
अब वो अज्ञात तो मानो गया! पर समस्या अभी भी ज्यू की त्यू खड़ी दिखाई देती है! ये सारे गुण जो कि समाज में अव्यवस्था पैदा करते है,असंतुलन पैदा करते बढ़ते हुए ही दिख रहे है!
आज के शरीर विग्नानीयो ने कोई ऐसी दवाई तो बनाई ही होगी जो ऐसे गुणों को कम करके इमानदारी,सद्भावना और भाईचारे जैसी भावनाओं को बढ़ा दे!
कोई ऐसी मशीन अथवा कुछ भी चीज खोज ली गयी होगी जो प्राणी स्वभाव या तो मानव स्वभाव को समझ के नियंत्रित कर दे!उसे समाज के हित के हिसाब से ही व्यवहार करने दे!
हो सकता हो कि ये सब चीज़े (दवाई,मशीन) बहुत महँगी होगी जो अब तक मार्किट में नहीं दिखी! या फिर ये भी हो सकता है कि सरकार ने ही रोक लगा दी हो इन पर…. सत्ता का सवाल है भई !
कोई दवाई या मशीन नहीं तो क्या हुआ….!क़ानून तो बना ही रखा है, जनता पर लागू भी है!
क़ानून..... नहीं;
ये तो होने के बाद वाली वयवस्था है! और फिर वही बात अब ज्ञात का डर दिखाया जा रहा है! कोई ऐसा इलाज जिसमे डर वाली भावना ही ख़त्म हो जाए !
होगा तो जरूर!
ये इमानदारी बढ़ाने वाली दवाई सच में कही मिलती है क्या...?
जय हिन्द, जय श्रीराम,
कुँवर जी,
दवा भी है और उपकरण भी। साथ ही कारगर भी। प्रत्यक्ष प्रमाण की देरी के बहाने सुविधाभोगियों ने दरकिनार करवा कर कबाड घोषित करवा दिया है। क्या हो!! जैसे कर्म वैसा भोग्… अब भुगतें अनाचार, भ्रष्टाचार, व्याभिचार, कपट, झूठ, बे-ईमानी, आक्रोश, आवेश, हिंसा को……
जवाब देंहटाएं"प्रत्यक्ष प्रमाण की देरी के बहाने सुविधाभोगियों ने दरकिनार करवा कर कबाड घोषित करवा दिया है।"
हटाएंसही कहा है आपने सुज्ञ जी, मानव धर्म में धैर्य स्वभाव में होना बताया गया है! हमें धैर्य का बोध होता भी है परन्तु भोगबुद्धि को अधिक महत्त्व देने के कारण हम इसको अनदेखा करने की भूल कर देते है! जिसके हम पात्र ही नहीं है उस परिणाम को पाने और तुरंत पाने की लालसा को पोषते हम स्वयं ही ऐसे निर्णयों पर आकर रुक जाते है जिनका आधार केवल हमारी अधीरता ही होती है!
कुँवर जी,
मुझे आप को सुचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि
जवाब देंहटाएंआप की ये रचना 31-05-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल
पर लिंक की जा रही है। सूचनार्थ।
आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाना।
मिलते हैं फिर शुकरवार को आप की इस रचना के साथ।
जय हिंद जय भारत।
बहुत-बहुत आभार ..!
हटाएंकुँवर जी,
अपने अंदर ही है ये दवाई ... अपने दिमाग में इसकी पैदाइश है ... बस समझने वाली बात है ...
जवाब देंहटाएं"सुमति-कुमति सबके उर रहहि.."
हटाएंबिलकुल यही बात है नासवा जी!बहुत बहुत आभार आपका!
पर ये समझ,बोध अपने अन्दर अपने आप ही ही कैसे पनपता है...!मै तो यही सोचता रह जाता हूँ कई बार!
कुँवर जी,
समस्या तो है ही - समाधान भी हमें ही करने हैं न ? ( समाधान मालूम होना और उसे कार्यान्वित करना दो अलग बातें है .....)
जवाब देंहटाएंइस सारगर्भित मार्गदर्शन के लिए आभार शिल्पा जी !
हटाएंसमाधान पता होते हुए भी उसे अमल में यदि नहीं लाया जाए तो समाधान कैसा होगा ये सभी जानते है!अब उसे अमल में न लाने के कारण कुछ भी हो सकते है!हमारा सामर्थ्य न हो एक कारण ये भी हो सकता है!
आयर यदि साम्र्त्य है भी... उसके परिणाम से डर.. अथवा तो संभावित डर!एक बड़ा कारण ये भी हो सकता है! डर ये कि जो अब तक मै सोच रहा था,जैसा मान रहा था अथवा तो जो कल्पित संसार मैंने बनाया हुआ था उसका अस्तित्व ही ख़त्म हो जाएगा...जो पहचान थी मेरी वही ख़त्म हो जायेगी.... अन्य समस्याओ के हल होने से इस संभावित समस्या का डर भी समाधान को किर्यान्वित करने में बाधक हो ही जाता है!
कुँवर जी,
bndhu aap ka hardik aabhar aap ne meri rchna ko protsahit kiya
जवाब देंहटाएंnirntr smprk bna rhe
mera nmbr hai 09868842688
aap chahen to is pr bhi smprk kr skte hain
आपका स्वागत है!
हटाएंरोचक प्रस्तुति . हम हिंदी चिट्ठाकार हैं.
जवाब देंहटाएंBHARTIY NARI .
एक छोटी पहल -मासिक हिंदी पत्रिका की योजना
आपका स्वागत है!
हटाएंआभार!