एक आदमी करहाता हुआ सा, लगभग झुका हुआ धीरे-धीरे एक चिकित्सक महोदय के पास पहुंचा!चिकित्सक ने देखा आदमी तो बहुत परेशां है!तुरंत उसको अपने पास बुलाया,पूछा कि क्या बात हुयी है,इतने परेशान क्यों हो?
वो आदमी अपनी कमर पर हाथ रखता हुआ बोला ," मेरी पीठ में दर्द है!
चिकित्सक- अच्छा; कुर्ता ऊपर उठाओ!
मरीज ने अपना कुर्ता ऊपर उठाया, चिकित्सक ने पीठ पर हाथ फिराया और कहा- नहीं;दर्द नहीं है!
आदमी ने कहा साहब दर्द तो है,तो चिकित्सक पीठ को सूंघने लगा!
आदमी-" ये क्या कर रहे हो साहब?"
चिकित्सक-"दर्द को सूंघने की कोशिश कर रहा था!"
आदमी-"साहब क्या सूंघने से पता चलेगा?
चिकित्सक-अच्छा! चलो चाट कर देख लेता हूँ!
आदमी- साहब...?
चिकित्सक-अच्छा चलो लेट जाओ, चिकित्सक ने अपना कान मरीज की पीठ पर रख दिया,स्टेथोस्कोप मँगा लिया...गौर से सुना और फिर कहा - नहीं दर्द है ही नहीं!
आदमी- साहब दर्द तो है,मै मरा जा रहा हूँ दर्द से!
चिकित्सक- कोई प्रमाण लाओ दर्द का,तो माने! जो है वो दिखना चाहिए,उसे हम छूकर जान पाए,उसे सुन पाए अथवा तो कोई स्वाद ही हो उसका...! किसी तरह तो उसका पता चले!
आदमी- पता मुझे चल रहा है,मै दर्द से मरा जा रहा हूँ!
चिकित्सक- नहीं आपका कहना ही प्रमाण नहीं हो सकता!आप ठीक है!कोई दर्द नहीं है!
आदमी- पर दर्द तो.....
चिकित्सक बीच में टोकते हुए- प्रमाण.....??
आदमी बेचारा चुप,अब क्या करे,कैसे दिखाए दर्द का प्रमाण!
अब वो लगा वही चक्कर काटने, एक तो दर्द ऊपर से जिसके पास वो आस लेकर आया था वही कह रहा है कि कहा है दर्द ....?
अब आदमी खामोश चिकित्सक को देखता जाए,चिकित्सक कंधे उचका कर इशारा करे दर्द है ही नहीं, है तो प्रमाण दिखाओ!
अब तो जी हो गयी हद,जैसे ही चिकित्सक उस आदमी के पास से गुजरा, आदमी ने न चाहते हुए भी चिकित्सक की पीठ में एक जोरदार घूंसा जड़ दिया! अब तो वो चिकित्सक दर्द से कराहे, सभी चेले-चपाटे चिकित्सक के पास एकत्रित हो गए!चिकित्सक चिल्लाये मै मरा , दर्द हो रहा है!मै मरा ,दर्द हो रहा है!
तब आदमी के चेहरे पर मुस्कान आई , वो बोला - साहब,किधर दर्द हो रहा है,
चिकित्सक- यहाँ पीठ में!
आदमी - दर्द दिखाई नहीं दिया कही,आओ जरा समीप आओ,सूंघ कर अथवा चाट कर देखू अथवा तो छूने से कुछ पता चले!
अब चिकित्सक आदमी को चुपचाप देखे जा रहा है!
ये कहानी टाईप की घटना कही कभी सुनी थी,तब इसे किसी और तरह से सुना था! आज अपने शब्दों में यहाँ प्रस्तुत किया है!हालांकि मूल कहानी में कुछ बदलाव हो गए है पर इसका उद्देश्य अभी भी वही है जो तब था!
आपको नहीं लगता ऐसी कुछ चीजे है जो बस स्वयं के अनुभव का विषय है! आप कभी विचार करना क्या कोई अनुभव है आपका ऐसा जिसको आप शब्द और आकार में न बाँध पाए हो!हालांकि आप हर एक अनुभव को प्रमाण रूप में कोई शक्ल देने के हिमायती हो पर इस से आपके उस अवर्णनीय अनुभव पर तो कोई फर्क नहीं पड़ता !
एक छोटी सी बात… आप मौन एकांत में खड़े है,आप मन-मन में कुछ बोल रहे है, गुनगुना रहे है अथवा तो सोच रहे है…. इस बात का किसी और को क्या प्रमाण देंगे आप!जबकि बोल तो आप रहे थे!
अब आपने गुड खाया है,मीठा आपको लगा है,आप मुझे बताये कि गुड का स्वाद मीठा है, मेरा मुह मिठास से भर रहा है,आपके ऐसा कहने भर से ही मेरा मुह मीठा नहीं हो जायेगा!आप मीठा लिख दो उसको चाटूं तब भी ये संभव नहीं है!हालांकि आपका अनुभव सच्चा है इसमें कोई दो राय नहीं है!अब आप कहेंगे कि ये तो गुड खाकर ही हो पायेगा और मै कहूँ कि नहीं गुड तो मै नहीं खाऊंगा!ये तो कोई भ्रमजाल हो सकता है!आप तो किसी और का बनाया हुआ गुड दोगे .... आदि-आदि! तो आप क्या कहना चाहेंगे मेरे बारे में!
आपको नहीं लगता जो ये प्रमाण परम्परा वाले है या यूँ कहूँ कि जो केवल प्रमाण परम्परा वाले है वो प्रमाणों के भ्रमजाल में फसे हुए है और अपना समय केवल प्रमाण इक्कट्ठे में ही गवां रहे है !
अब उस परम तत्व इश्वर का वो प्रमाण मांगते है…. वो स्वयं उस परमशक्ति के होने का प्रमाण नहीं है क्या?
जय हिन्द ,जय श्रीराम,
कुँवर जी ,
वो आदमी अपनी कमर पर हाथ रखता हुआ बोला ," मेरी पीठ में दर्द है!
चिकित्सक- अच्छा; कुर्ता ऊपर उठाओ!
मरीज ने अपना कुर्ता ऊपर उठाया, चिकित्सक ने पीठ पर हाथ फिराया और कहा- नहीं;दर्द नहीं है!
आदमी ने कहा साहब दर्द तो है,तो चिकित्सक पीठ को सूंघने लगा!
आदमी-" ये क्या कर रहे हो साहब?"
चिकित्सक-"दर्द को सूंघने की कोशिश कर रहा था!"
आदमी-"साहब क्या सूंघने से पता चलेगा?
चिकित्सक-अच्छा! चलो चाट कर देख लेता हूँ!
आदमी- साहब...?
चिकित्सक-अच्छा चलो लेट जाओ, चिकित्सक ने अपना कान मरीज की पीठ पर रख दिया,स्टेथोस्कोप मँगा लिया...गौर से सुना और फिर कहा - नहीं दर्द है ही नहीं!
आदमी- साहब दर्द तो है,मै मरा जा रहा हूँ दर्द से!
चिकित्सक- कोई प्रमाण लाओ दर्द का,तो माने! जो है वो दिखना चाहिए,उसे हम छूकर जान पाए,उसे सुन पाए अथवा तो कोई स्वाद ही हो उसका...! किसी तरह तो उसका पता चले!
आदमी- पता मुझे चल रहा है,मै दर्द से मरा जा रहा हूँ!
चिकित्सक- नहीं आपका कहना ही प्रमाण नहीं हो सकता!आप ठीक है!कोई दर्द नहीं है!
आदमी- पर दर्द तो.....
चिकित्सक बीच में टोकते हुए- प्रमाण.....??
आदमी बेचारा चुप,अब क्या करे,कैसे दिखाए दर्द का प्रमाण!
अब वो लगा वही चक्कर काटने, एक तो दर्द ऊपर से जिसके पास वो आस लेकर आया था वही कह रहा है कि कहा है दर्द ....?
अब आदमी खामोश चिकित्सक को देखता जाए,चिकित्सक कंधे उचका कर इशारा करे दर्द है ही नहीं, है तो प्रमाण दिखाओ!
अब तो जी हो गयी हद,जैसे ही चिकित्सक उस आदमी के पास से गुजरा, आदमी ने न चाहते हुए भी चिकित्सक की पीठ में एक जोरदार घूंसा जड़ दिया! अब तो वो चिकित्सक दर्द से कराहे, सभी चेले-चपाटे चिकित्सक के पास एकत्रित हो गए!चिकित्सक चिल्लाये मै मरा , दर्द हो रहा है!मै मरा ,दर्द हो रहा है!
तब आदमी के चेहरे पर मुस्कान आई , वो बोला - साहब,किधर दर्द हो रहा है,
चिकित्सक- यहाँ पीठ में!
आदमी - दर्द दिखाई नहीं दिया कही,आओ जरा समीप आओ,सूंघ कर अथवा चाट कर देखू अथवा तो छूने से कुछ पता चले!
अब चिकित्सक आदमी को चुपचाप देखे जा रहा है!
ये कहानी टाईप की घटना कही कभी सुनी थी,तब इसे किसी और तरह से सुना था! आज अपने शब्दों में यहाँ प्रस्तुत किया है!हालांकि मूल कहानी में कुछ बदलाव हो गए है पर इसका उद्देश्य अभी भी वही है जो तब था!
आपको नहीं लगता ऐसी कुछ चीजे है जो बस स्वयं के अनुभव का विषय है! आप कभी विचार करना क्या कोई अनुभव है आपका ऐसा जिसको आप शब्द और आकार में न बाँध पाए हो!हालांकि आप हर एक अनुभव को प्रमाण रूप में कोई शक्ल देने के हिमायती हो पर इस से आपके उस अवर्णनीय अनुभव पर तो कोई फर्क नहीं पड़ता !
एक छोटी सी बात… आप मौन एकांत में खड़े है,आप मन-मन में कुछ बोल रहे है, गुनगुना रहे है अथवा तो सोच रहे है…. इस बात का किसी और को क्या प्रमाण देंगे आप!जबकि बोल तो आप रहे थे!
अब आपने गुड खाया है,मीठा आपको लगा है,आप मुझे बताये कि गुड का स्वाद मीठा है, मेरा मुह मिठास से भर रहा है,आपके ऐसा कहने भर से ही मेरा मुह मीठा नहीं हो जायेगा!आप मीठा लिख दो उसको चाटूं तब भी ये संभव नहीं है!हालांकि आपका अनुभव सच्चा है इसमें कोई दो राय नहीं है!अब आप कहेंगे कि ये तो गुड खाकर ही हो पायेगा और मै कहूँ कि नहीं गुड तो मै नहीं खाऊंगा!ये तो कोई भ्रमजाल हो सकता है!आप तो किसी और का बनाया हुआ गुड दोगे .... आदि-आदि! तो आप क्या कहना चाहेंगे मेरे बारे में!
आपको नहीं लगता जो ये प्रमाण परम्परा वाले है या यूँ कहूँ कि जो केवल प्रमाण परम्परा वाले है वो प्रमाणों के भ्रमजाल में फसे हुए है और अपना समय केवल प्रमाण इक्कट्ठे में ही गवां रहे है !
अब उस परम तत्व इश्वर का वो प्रमाण मांगते है…. वो स्वयं उस परमशक्ति के होने का प्रमाण नहीं है क्या?
जय हिन्द ,जय श्रीराम,
कुँवर जी ,
एक तो मेरा प्रयास ही उतना बेहतर नहीं था जितना प्रवीन जी को उम्मीद थी ऊपर से ब्लॉग की सेटिंग में हुयी कुछ गड़बड़ी ने इसे प्रवीण जी की नजरो में कही का नहीं छोड़ा!आज थोडा दुरुस्त किया सेटिंग को तो जो प्रतिक्रियाए दिख रही थी लेख पर वो भी गायब हो गयी!
जवाब देंहटाएंइसके लिए मै आदरणीय प्रवीन जी और सुज्ञ जी से क्षमा प्रार्थना करता हूँ!
सेटिग तो अब भी नहीं है। तीन स्तम्भों का टेम्पलेट है, किन्तु स्तम्भ सिकुड़ कर लेफ्ट में जा रहे है। कुछ कीजिए…
हटाएंकुछ पता ही नहीं चल रहा है कि क्या किया जाए..,
हटाएंब्लॉग का बेक अप लो, सेव करके रखो और फिर टेम्प्लेट ही बदल दो. हो जाएगा
हटाएंअब मै क्या कहूं प्रवीन जी, ये इश्वर विषय ही इतना पुराना,सनातन है कि इसके विषय में जो कुछ भी कहा जाएग सब पहले कहा जा चूका होगा! मुझे लगता है जो कुछ नया होता है पुराने के आधार पर ही तो होता है!
जवाब देंहटाएंऔर शायद आप बस वो मरीज-डॉक्टर की कहानी पर ही अटक गए थे शायद, आपको वो इतनी अच्छी लगी कि शेष दो-चार पंक्तिया आप पढ़ ही नहीं पाए,नहीं तो उनका खंडन भी आप अवश्य ही करते...
कुँवर जी,
sundar sandesh preshit karti katha .aabhar
जवाब देंहटाएंhttp://www.facebook.com/HINDIBLOGGERSPAGE
आपका स्वागत है!
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