सोमवार, 23 अप्रैल 2012

शब्द फूटे तो कहा धरूँ मै....(कुँवर जी)

 जो मुझे पसंद है
वो तो
होता नहीं..
जो हो रहा है
उसे ही पसन्द न करूँ तो
क्या करूँ मै!

झेल गया जब
मै
जो बीत चूका,
अब तो जो  भी बीते
भला उस से
क्या डरूँ मै !

गैरो से बच कर 
आया था 
अपनों की ओट में,
अब अपनों से
बचने के लिए
किसकी ओट करूँ  मै!


बहुत पीता हूँ
आंसुओ को
बिना शोर के,
ये शब्द
न माने मेरी,
फूटे तो
इन्हें कहाँ  धरूँ मै! 





जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर  जी,

23 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर लिखा है कुंवरजी आज, मन की व्यथा| गैरों के ज़ुल्म-ओ-सितम खेल लेते हैं क्यूंकि उनसे उम्मीद यही होती है लेकिन जब अपने ऐसा करें तो न कहते बनता है न छुपाये| सरमद की कहानी सुन ही रखी होगी जरूर..

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    1. Aadarniya sanjay ji, sarmad ki kahani to suni nahi bas kai bar kuchh anubhav ham dabav bnane lgte h to wo dabav shabdo ke roop me kaagaj utar aata h kabhi-kabhi...
      Ummed h jld hi sarmad ki kahani se b avgat kra denge aap...

      Kunwar ji

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  2. बहुत ही सुंदर भाव संयोजन सार्थक रचना....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/

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  3. इस कविता के भाव, लय और अर्थ काफ़ी पसंद आए। बिल्कुल नए अंदाज़ में आपने एक भावपूरित रचना लिखी है।

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  4. बहुत ही सार्थक!!
    निर्थक दुविधाओं का प्रस्फुटन!!

    शब्द फूटे तो यहईं ब्लॉग पर धर दिया करें!! स्वागत!! शुभकामनाएँ!!

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    1. Sugya ji aabhar sujhav ke liye... Jb se blog jagat me aaye h yahi to kar rahe h.... Par sabhi kuchh b to btaya nahi jata kai baar

      Kunwar ji

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  5. bahut rochak lagi aapki rachna ek naya andaaj bahut nirmal ehsaas.bahut sundar.pahli baar pahunchi aapke blog par bahut achcha laga.

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  6. सच्चाई से कही गयी बात अच्छी लगी .....

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  7. shabdon ko dharne ke liye blog se behtar aur kaunsi jagah hogi....bahut sundar aur marmik rachna...

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  8. सार्थकता लिए हुए सटीक अभिव्‍यक्ति ।

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  9. आप सभी का सादर स्वागत है! आपका आगमन एक नयी उर्जा का सन्चार करता है !

    कुँवर जी,

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  10. वाह बहुत खूबसूरत शब्द संयोजन |

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  11. कल 11/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  12. बहुत पीता हूँ
    आंसुओ को
    बिना शोर के,
    ये शब्द
    न माने मेरी,
    फूटे तो
    इन्हें कहाँ धरूँ मै!

    बहुत सुंदर भाव ..... बस इन शब्दों को अपने ब्लॉग पर धर दीजिये ...

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  13. बहुत -बहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति है....
    बेहतरीन रचना.....

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  14. आप सभी का स्वागत है...
    आपके आगमन से नव-चेतना का एहसास हो रहा है!एक जिम्मेवारी अब और बड़ी होती सी दिखाई दे रही है!
    आभार!

    कुँवर जी,

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