लगता है भगवान् ने भी कांग्रेस सरकार को समर्थन दे दिया है या फिर कांग्रेस सरकार ने भगवान् के साथ मुलायम या ममता के जैसे कोई गठबंधन कर लिया है!तभी तो..... जब गेहुओ को पानी की जरुरत थी तब सरकारसही बिजली नहीं दे रही थी और वो भगवान् भी बारिश नहीं कर रहा था! और अब जब फसल कटाई के लिए बिलकुल तैयार है तब बिजली भी पहले से सही है और बारिश.... उसमे परमात्मा ने मौज कर रखी है!रही-सही कसर औलो ने पूरी कर दी!
पिछले कई महीने जिस फसल के लिए किसान दिन-रात एक कर के मेहनत कर रहा था और जब उसका फल मिलने ही वाला था....लगभग मिल भी गया था....क्योकि खेत में सोने के जैसे लहलहाती गेहूं की बैल देख कर उसकी सारी थकान और दिक्कत जो उसने पिछले कुछ महीनो में उठाई थी बहुत छोटी लग रही थी उसे.....पर ....!
नया सूरज उगते ही जो फसल लहलहा रही थी कल तक आज बरसात और औलो की मार से भारत की जनता के जैसे ज़मीन पर बिछी पड़ी थी और देख रही थी किसान की और जो की भगवान् की और टकटकी लगाए हुए था!
भगवान् की ये कांग्रेस नीति..... किसान को कही का नहीं छोड़ा!
जैसे भारत की जनता चुनावों से पहले खूब जोश दिखाती है...कांग्रेस को चुनती है फिर मंहगाई ,भ्रष्टाचार,घपले-घोटाले की बारिश और ओलावृष्टि से ज़मीन पर बिछ जाती और फिर कांग्रेस सरकार की ओर देखती है जो की भगवान् की ओर देख रही होती है....
जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,
पिछले कई महीने जिस फसल के लिए किसान दिन-रात एक कर के मेहनत कर रहा था और जब उसका फल मिलने ही वाला था....लगभग मिल भी गया था....क्योकि खेत में सोने के जैसे लहलहाती गेहूं की बैल देख कर उसकी सारी थकान और दिक्कत जो उसने पिछले कुछ महीनो में उठाई थी बहुत छोटी लग रही थी उसे.....पर ....!
नया सूरज उगते ही जो फसल लहलहा रही थी कल तक आज बरसात और औलो की मार से भारत की जनता के जैसे ज़मीन पर बिछी पड़ी थी और देख रही थी किसान की और जो की भगवान् की और टकटकी लगाए हुए था!
भगवान् की ये कांग्रेस नीति..... किसान को कही का नहीं छोड़ा!
जैसे भारत की जनता चुनावों से पहले खूब जोश दिखाती है...कांग्रेस को चुनती है फिर मंहगाई ,भ्रष्टाचार,घपले-घोटाले की बारिश और ओलावृष्टि से ज़मीन पर बिछ जाती और फिर कांग्रेस सरकार की ओर देखती है जो की भगवान् की ओर देख रही होती है....
जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,
बहुत बड़ा सवाल है यह .
जवाब देंहटाएंराम राम जी....
जवाब देंहटाएंडॉ. साहब स्वागत है आपका... बस सवाल ही है जी..और तो कुछ है ही नहीं!
कुँवर जी,