शनिवार, 21 अप्रैल 2012

भावनाओ के बंजर में भी फूल खिलते है....(कुँवर जी)

भावनाओ के बंजर में भी
फूल खिलते है
एक सहरा
तो अपना
बना के देखो! 
पंक्तियों की कोंपले
भी फूटेंगी
कुछ शब्द तो 
रेत  में
बिखरा के देखो!
कविताओ की फसल
भी लहलहाएगी खूब
संवेदनाओं से
उन्हें
सींच कर तो देखो!


जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,





7 टिप्‍पणियां:

  1. वाह कितनी प्यारी बात है कि
    भावनाओं के बंजर में भी फूल खिलते हैं।

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  2. बो तो दे बंजर में फूल
    बड़ी महनत लगती है संवेदनाओं से
    उन्हें सींच कर खिलाना॥

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    1. Bilkul sahi kaha ji aapne,bahut mushkil hai.... Par bina sanvedna ke sungandh kaha reh jaati hai....

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  3. अंतर्द्वंद से निकली बेहद सुन्दर रचना!

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