भावनाओ के बंजर में भी
फूल खिलते है
एक सहरा
तो अपना
बना के देखो!
पंक्तियों की कोंपले
भी फूटेंगी
कुछ शब्द तो
रेत में
बिखरा के देखो!
फूल खिलते है
एक सहरा
तो अपना
बना के देखो!
पंक्तियों की कोंपले
भी फूटेंगी
कुछ शब्द तो
रेत में
बिखरा के देखो!
कविताओ की फसल
भी लहलहाएगी खूब
संवेदनाओं से
उन्हें
सींच कर तो देखो!
जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,
वाह कितनी प्यारी बात है कि
जवाब देंहटाएंभावनाओं के बंजर में भी फूल खिलते हैं।
Aapko pyari lgi ye to mera saubhagya hai...
हटाएंबहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंProtsaahan ke liye aabhaar
हटाएंswagat hai apka...
बो तो दे बंजर में फूल
जवाब देंहटाएंबड़ी महनत लगती है संवेदनाओं से
उन्हें सींच कर खिलाना॥
Bilkul sahi kaha ji aapne,bahut mushkil hai.... Par bina sanvedna ke sungandh kaha reh jaati hai....
हटाएंअंतर्द्वंद से निकली बेहद सुन्दर रचना!
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