शब्द गूंगे हुए तो तड्पी कलम...
एक पल के लिए..
फिर सोचा
इसमें मेरा तो कोई दोष नहीं!
शिथिल हुए हाथ तो रोया मन
एक पल के लिए
फिर सोचा
मैंने तो खोया अपना होश नहीं!
न कुछ कर-कह सके
तो रोई आत्मा,
पर इस से ही तो
ख़त्म हुआ उसका रोष नहीं!
जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,
शब्द गूंगे हुए तो तड्पी कलम...
जवाब देंहटाएंएक पल के लिए..
फिर सोचा
इसमें मेरा तो कोई दोष नहीं!
जिस्म चुप भले ही हो जाए
मगर कलम,
वो चलेगी,
होगी कभी खामोश नहीं !
राम राम जी,
हटाएंआपका प्रोत्साहन कलम को कभी खामोश नहीं होने देगा...
कुँवर जी,
Pen is mightier than sword.
जवाब देंहटाएंजी बिल्कुल, पर कई बार जब शब्द साथ छोड़ते दिखाई दे तो जो दर्द व्यक्त करना था उसे अकेले hi सहन करना पड़ता है,
हटाएंअसल में अपनी तड़प कलम में दिखाई देने लग जाती है,
कुँवर जी,
सुन्दर शब्द योजना .
जवाब देंहटाएंआभार ...
हटाएंकुँवर जी,
जी आपका स्वागत है.,
जवाब देंहटाएंKunwar ji,
सुंदर भाव संयोजन ....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर शब्दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...कुँवर जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ....
जवाब देंहटाएं--------------
आत्मविश्वास की महत्ता ..
कलम की तड़प बनी रहनी चाहिए ... ये विप्लव ये तड़प शब्द अपने आप उगा लेगी ..
जवाब देंहटाएंnice,
जवाब देंहटाएंशिथिल हुए हाथ तो रोया मन
जवाब देंहटाएंएक पल के लिए
फिर सोचा
मैंने तो खोया अपना होश नहीं!
सुन्दर संयोजन,सुन्दर अभिवय्कती
कलम तडपे तो और गहरे शब्द निकलेंगे, बहुत खूब हरदीप|
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
आप सभी के सहयोग और मार्गदर्शन के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंकुँवर जी,
शब्द जब तड़पते हैं तो बिखरते हैं प्राण पाने के लिए ... प्राण देना दोष कैसा
जवाब देंहटाएंजितनी तड़पन.....उतने गहरे भाव............
जवाब देंहटाएंबहुत खूब..
अनु