शब्द खड़े है चारो और...
मुझे घेरे...
घूर रहे है...
घूर रहे है...
मैंने पूछा उन से..
"सर्दी नहीं लगती है क्या तुम्हे......?"
वो बोले....
जवाब नहीं तो बात बदलोगे...?
हम ने कहा
तुमने पूछा ही क्या है..?
वो बोले...
नहीं पूछा तो क्यों हो सहमे-सहमे ...?
मन में क्या कम्पन है..?
हम ने कहा...
तुम भी खूब हो.
सर्द सुबह में
सर्दी से ही कांप रहे है!
और जिनकी तुम सोच रहे हो...
उन फुटपाथ पर पड़े
लोगो की
दिक्कत को भी भांप रहे है!
शब्द जैसे इतराए...
हमारी चोरी पकड़ कर..
हम पुनः बोले..
उनका प्रारब्ध,विधान.....
शब्द तो जैसे गरजे.....
बोले..
हमारे ही सहारे
हम ही से खेलते हो....!
मन की सारी करुणा
बस कागज़ पर ही उड़ेलते हो!
कविता में तो भिगो देते हो
हमें भी
अपने आंसुओ से....
पर असल में
पर असल में
बच के निकल आये हो तुम
फुटपाथ पर पड़े अधनंगो से!
उनको कितने ही शब्द
ओढाओ,पहराओ,
ऐसे किसी ही सर्दी नहीं हटती,
उनके जीवन से
कोरी "वाह" बीनने से ही
उनकी आह नहीं मिटती...
उनकी आह नहीं मिटती...
उनकी आह नहीं मिटती...
जय हिंद,जय श्रीराम
कुँवर जी,
"सर्दी नहीं लगती है क्या तुम्हे......?"
वो बोले....
जवाब नहीं तो बात बदलोगे...?
हम ने कहा
तुमने पूछा ही क्या है..?
वो बोले...
नहीं पूछा तो क्यों हो सहमे-सहमे ...?
मन में क्या कम्पन है..?
हम ने कहा...
तुम भी खूब हो.
सर्द सुबह में
सर्दी से ही कांप रहे है!
और जिनकी तुम सोच रहे हो...
उन फुटपाथ पर पड़े
लोगो की
दिक्कत को भी भांप रहे है!
शब्द जैसे इतराए...
हमारी चोरी पकड़ कर..
हम पुनः बोले..
उनका प्रारब्ध,विधान.....
शब्द तो जैसे गरजे.....
बोले..
हमारे ही सहारे
हम ही से खेलते हो....!
मन की सारी करुणा
बस कागज़ पर ही उड़ेलते हो!
कविता में तो भिगो देते हो
हमें भी
अपने आंसुओ से....
पर असल में
पर असल में
बच के निकल आये हो तुम
फुटपाथ पर पड़े अधनंगो से!
उनको कितने ही शब्द
ओढाओ,पहराओ,
ऐसे किसी ही सर्दी नहीं हटती,
उनके जीवन से
कोरी "वाह" बीनने से ही
उनकी आह नहीं मिटती...
उनकी आह नहीं मिटती...
उनकी आह नहीं मिटती...
जय हिंद,जय श्रीराम
कुँवर जी,
पर असल में
जवाब देंहटाएंबच के निकल आये हो तुम
फुटपाथ पर पड़े अधनंगो से!
उनको कितने ही शब्द
ओढाओ,पहराओ,
ऐसे किसी सर्दी नहीं हटती,
वाह शब्द स्वयं ठिठुर उठे!!
सुज्ञ जी राम राम...
जवाब देंहटाएंआपका स्वागत है...
शब्द ठिठुरे होंगे जरूर...मै भी... पर कर कुछ नहीं सका न शब्दों के लिए न अपने लिए और न ही उन फुटपाथ पर पड़े ....आधे ढके शरीर के बावजूद सोते हुए उन बदनसीबो के लिए....
कुँवर जी,
शब्द खड़े है चारो और...
जवाब देंहटाएंमुझे घेरे...
घूर रहे है...
मैंने पूछा उन से..
"सर्दी नहीं लगती है क्या तुम्हे......?"
वो बोले....
जवाब नहीं तो बात बदलोगे...?
हम ने कहा
तुमने पूछा ही क्या है..?
वो बोले...
नहीं पूछा तो क्यों हो सहमे-सहमे ...?
मन में क्या कम्पन है..?
bahut kuch hai aapke bhawon me