शब्द फूट पड़े है चंहूँ ओर से,
हर पल हर जगह से,
हर हल चल हर परिवर्तन से,
हर स्थूल हर सूक्ष्म से,
बढ़ चले कि कविता बनेंगे....
इसी उमंग में,
फूट रहे थे शब्द हर कहीं से,
पर क्या पता...
एक अधुरा वाक्य
भी वो पूरा कर पायेंगे या नहीं.....?
अर्धविराम की सीमा लांघ
पूर्णविराम तक का सफ़र ....
तय कर पायेंगे या नहीं....
जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,
हर पल हर जगह से,
हर हल चल हर परिवर्तन से,
हर स्थूल हर सूक्ष्म से,
बढ़ चले कि कविता बनेंगे....
इसी उमंग में,
फूट रहे थे शब्द हर कहीं से,
पर क्या पता...
एक अधुरा वाक्य
भी वो पूरा कर पायेंगे या नहीं.....?
अर्धविराम की सीमा लांघ
पूर्णविराम तक का सफ़र ....
तय कर पायेंगे या नहीं....
जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,
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