मंगलवार, 21 मई 2013

जो था नहीं.....(कुँवर जी)

जो था नहीं,
जो रहेगा नहीं,
वो ही रह कर भला क्या हो जायेगा !
जो रुका नहीं,
जो रुकेगा नहीं ,
 उसके लिए रुक कर भला क्या मिल जायेगा!
पर हम रुक जाते है,
जो है नहीं 
वो ही रह जाते है,
ना  कुछ होता है,
ना कुछ मिलता है,
शेष रह जाता है वही 
जो था ही …। 


जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,


5 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात है ... घुमावदार उलझे शब्दों की सुलझी कविता ...
    बहुत खूब ...

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  2. सबकुछ यही रहता है बस इंसान हमेशा यहाँ नहीं रहता ..क्षण भंगुर जीवन की सत्यता बताती बढ़िया प्रस्तुति

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    1. स्वागत है कविता जी,
      इस क्षणभंगुरता को ही तो समझ नहीं पाते हम... और कोशिश करते रहते है यही,यूँही बने रहने की...

      कुँवर जी,

      हटाएं
  3. भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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