शनिवार, 27 नवंबर 2010

किस रंज के सायें में उल्लास है!



क्यों आज  आस ही   उदास है,
किस रंज के सायें में उल्लास है!

कर के मंथन कोई खुद ही,
कालकूट पीने का सा भास है!

दिल का दर्द यही  था बस,
या उसे छिपाने का ही ये प्रयास है!

बात छोटी हो या बड़ी,
भला क्यों ये अकेलेपन का एहसास है!

जय हिन्द,जय श्री राम,
कुंवर जी,

9 टिप्‍पणियां:

  1. दिल का दर्द यही था बस,
    या उसे छिपाने का ही ये प्रयास है!
    बात छोटी हो या बड़ी,
    भला क्यों ये अकेलेपन का एहसास है!
    ..बहुत ख़ूबसूरत...ख़ासतौर पर आख़िरी की पंक्तियाँ....मेरा ब्लॉग पर आने और हौसलाअफज़ाई के लिए शुक़्रिया..

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  2. क्यों आज आस ही उदास है,
    किस रंज के सायें में उल्लास है!
    वाह बहुत खूबसूरत पँक्तियाँ। शुभकामनायें।

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  3. आस पाली है जमाने से, क्या ख़ाक उल्लासी देगा
    बन शिवमय कालकूट को अब कौन भला पी लेगा

    दिल तो दर्दे जहाँ को समेटे जा रहा है आजकल
    मुहर्रिक क्या बनेगा किसी का, बैठ गया कोने में

    यह छाले भी मिटा लेंगे, मुहसिन जो आपसे है
    आती जाती बात है, कोई बुरा ख़्वाब एहसास नहीं

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  4. @संजय जी-

    @निर्मला कपिला जी-

    @संगीता जी-

    आपका स्वागत है जी,इस हौसलाफजाई के लिए आभार है जी!

    कुंवर जी,

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  5. @अमित भाई साहब-आपका तो जवाब ही नहीं है जी,तुरन्त कविता बना देते हो जी...शानदार,

    @सुज्ञ जी-आपका स्वागत है जी....

    आपने जैसे उत्साहवर्धन कर के प्रेरित किया है वो बेमिसाल है!

    @वीरेंद्र जी-आपका स्वागत है जी,पधारने के लिए धन्यवाद है जी,अब आते जाते रहना जी!

    कुंवर जी,

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  6. बात छोटी हो या बड़ी,
    भला क्यों ये अकेलेपन का एहसास है!

    क्या बात है..बहुत खूब ..शुक्रिया
    चलते -चलते पर आपका स्वागत है

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  7. @केवल जी- आपका भी स्वागत है जी,उत्साहवर्धन के लिए आभार है जी,


    कुंवर जी,

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