मुझे पता है
परिवर्तन संसार का नियम है,
फिर क्यूँ
न मै बदल सका न तुम बदले,
न हम बदले न हमारे नज़रिए बदले,
आज भी
जाती है तुझ तक मेरी नज़र
कुछ सवाल लेकर,
आज भी
कुछ भी बताती नहीं उनको तुम्हारी नज़र,
आज भी
बिना जवाब के लौटी मेरी नज़र
पूछती है मुझसे
जब
पता था ही तुम्हे
कि कुछ बताया नहीं जाएगा
तो भेजा ही क्यों था हमें वहा?
आज भी
मै कुछ कह नहीं पाता हूँ इनको !
क्या
तुम्हारी नज़र भी पूछती है तुमसे
कि क्यों हमें कुछ बताने नहीं दिया तुमने?
और
क्या तुम भी उन्हें कुछ कह नहीं पाते हो?
जय हिंद,जय श्रीराम
कुँवर जी,
वाह क्या बात है !
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता..
आज गुड फ्राई डे क अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं आपको !
Sanjay bhai swaagat aapka....
जवाब देंहटाएंkunwar ji,
आज भी
जवाब देंहटाएंमै कुछ कह नहीं पाता हूँ इनको !
क्या
तुम्हारी नज़र भी पूछती है तुमसे
कि क्यों हमें कुछ बताने नहीं दिया तुमने?
behtareen
Bahut khoob ... lajawaab bhaav hain ....
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद पहली बार शायद आना हुआ... भावपूर्ण रचना... !
जवाब देंहटाएंआकुल भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएं@मीनाक्षी जी- पहली बार नहीं...बहुत दिनों के बाद आना हुआ....आपका क्या मेरा भी बहुत दिनों के बाद ही आना होता है इधर....आपका स्वागत है....
जवाब देंहटाएं@दिगंबर नासवा जी-राम राम जी,आपका भी स्वागत है जी,
@रश्मि प्रभा जी- निरंतर उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाधई जी...
कुँवर जी,
@सुरेन्द्र जी- पधारने के लिए आभार...
जवाब देंहटाएंकुँवर जी,
बहुत खूबसूरत रचना| धन्यवाद|
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