शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

क्या तुम भी उन्हें कुछ कह नहीं पाते हो?

मुझे पता है
परिवर्तन संसार का नियम है,
फिर क्यूँ
न मै बदल सका न तुम बदले,
न हम बदले न हमारे नज़रिए बदले,
आज भी
जाती है तुझ तक मेरी नज़र
कुछ सवाल लेकर,
आज भी
कुछ भी बताती नहीं उनको तुम्हारी नज़र,
आज भी
बिना जवाब के लौटी मेरी नज़र
पूछती है मुझसे
जब
पता था ही तुम्हे
कि कुछ बताया नहीं जाएगा
तो भेजा ही क्यों था हमें वहा?

आज भी
मै कुछ कह नहीं पाता हूँ इनको !
क्या
तुम्हारी नज़र भी पूछती है तुमसे
कि क्यों हमें कुछ बताने नहीं दिया तुमने?
और
क्या तुम भी उन्हें कुछ कह नहीं पाते हो?

जय हिंद,जय श्रीराम
कुँवर जी,
 

9 टिप्‍पणियां:

  1. वाह क्या बात है !
    सुन्दर कविता..
    आज गुड फ्राई डे क अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं आपको !

    जवाब देंहटाएं
  2. आज भी
    मै कुछ कह नहीं पाता हूँ इनको !
    क्या
    तुम्हारी नज़र भी पूछती है तुमसे
    कि क्यों हमें कुछ बताने नहीं दिया तुमने?
    behtareen

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत दिनों बाद पहली बार शायद आना हुआ... भावपूर्ण रचना... !

    जवाब देंहटाएं
  4. @मीनाक्षी जी- पहली बार नहीं...बहुत दिनों के बाद आना हुआ....आपका क्या मेरा भी बहुत दिनों के बाद ही आना होता है इधर....आपका स्वागत है....

    @दिगंबर नासवा जी-राम राम जी,आपका भी स्वागत है जी,

    @रश्मि प्रभा जी- निरंतर उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाधई जी...

    कुँवर जी,

    जवाब देंहटाएं
  5. @सुरेन्द्र जी- पधारने के लिए आभार...

    कुँवर जी,

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत खूबसूरत रचना| धन्यवाद|

    जवाब देंहटाएं

लिखिए अपनी भाषा में