राम राम जी,एक बार फिर ब्लॉगजगत से दूरी बनी हुयी है!कुछ नया भी लिखा नहीं जा रहा है!आज फिर एक शुरूआती पोस्ट आपके लिए.....
यह विषय आज के समय को देखते हुए बड़ा जरुरी-सा विषय बनता जा रहा है!हालांकि इसकी आवशयकता है भी या नहीं ये परिस्थितियों पर बहुत निर्भर करता है,मेरे हिसाब से तो!इसका एक कारण बताया जाता है कि लड़की ओर लड़के की आपस में जानकारी बढ़ेगी और वो एक दुसरे को और अच्छी तरह जान पायेंगे!जिस से कि उनका आने वाला समय बेहतर होगा!
किन्तु कई बार इसका उल्टा हुआ है!उनकी आपस में एक दुसरे के बारे में जानकारी तो बढ़ जाती है,लेकिन एक रिश्ता जो बनने जा रहा था वो बन नहीं पाता!यहाँ तक कि शादी होने के बाद भी!क्योंकि वो जान जाते है एक दुसरे के बारे में,पहले ही!रोमांच सारा ख़त्म!
पहले क्या होता था,या गाँव-देहात में क्या होता है,लड़का-लड़की एक दुसरे से बात करना तो दूर,जानते भी नहीं,और शादी हो गयी जी!आधुनिक जगत को ये बात बहुत अखरती है!ऐसा कैसे हो गया,कैसे हो सकता है?पता नहीं वो एक दुसरे को समझ पायेंगे या नहीं?वो नहीं समझ पायेंगे तो सुखी कैसे रहेंगे?वगराह-वगराह!
वो ज्यादातर सुखी रहते है!
असल में सुखी रहने का रहस्य दुसरे को समझने में कम और खुद को समझने में अधिक छिपा है!ऐसा नहीं है के वो एक दुसरे को नहीं समझते,समझते है!लेकिन जब तक वो एक दुसरे को समझते है तब एक बहुत बड़ा कालखण्ड जीवन का बीत चुका होता है,जानने के रोमांच में!और जो आनंद मनुष्य दुसरे की जिन्दगी ने झाँक कर लेता है उसका शायद कोई विकल्प नहीं!वो आनंद ले रहे होते है 'किसी अपने' की जिंदगी में झाँकने का!जबकि यही काम यदि शादी से पहले किया जाए तो हम केवल 'किसी' लड़के या लड़की की जिंदगी में झाँक रहे होते है जो अभी तक हमारा कुछ नहीं है!भविष्य में हो सकता है,अभी कुछ नहीं है!सो एक एह्न्कार-सा मन में आ जाता है कि हम निष्पक्ष होकर किसी की जिंदगी में देखेंगे जो की हम कभी हो ही नहीं सकते!एह्न्कार में निर्णय ठीक ही हो इसकी सुनिश्चितता नहीं होती!
दूसरी और जब हम 'किसी अपने' की जिंदगी में झांकेंगे तो हमारे पास निष्पक्ष होने या रहने की मजबूरी नहीं होती!हम स्वाभाविक ही अपने का पक्ष ले सकते है!उसमे केवल अच्छा ही देखने की कोशिश करेंगे!कुछ बुरा यदि दिखाई दे भी जाए तो सोच लेते है की पहले रहा होगा,अब हम नहीं होने देंगे ऐसा!कमियाँ अब भी देखेंगे साथ ही उन्हें ख़त्म करने के उपाय भी!
जबकि शादी से पहले केवल कमियाँ ही दिख पाती है,उपाय तक जाने की कोशिश ही नहीं की जाती!करे भी क्यों?किसके लिए?"ये नहीं तो और सही" वाली खिड़की होती है अभी हमारे पास!वो भी खुली हुई!कोई चिंता ही नहीं!
हालांकि इसका कभी-कभी लाभ भी होता है दोनों को! पर मैंने अब तक ऐसा कम ही देखा है!वैसे जो अनुभव हमारा है वो केवल हमारा ही है!जरूरी नहीं जिन परिस्थितियों में 'क' जो करेगा वही उन्ही परिस्थितियों 'ख' के लिए भी सही रहेगा!
जय हिंद,जयश्रीराम,
कुंवर जी,
जरूरी नहीं जिन परिस्थितियों में 'क' जो करेगा वही परिस्थितियाँ 'ख' के लिए भी सही रहेंगी!
जवाब देंहटाएं..... बात सही है.
.......... मुझे प्रतीत होता है कि आप अत्यंत व्यक्तिगत उलझनों में उलझे हुए हैं. और मानस अशांत है.
शायद मैं गलह होऊं. आपके लेख का प्रभाव है कि मैं इसे आपसे जोड़कर देख रहा हूँ.
@
जवाब देंहटाएंवो ज्यादातर सुखी रहते है!
तलाक़ न होने का अर्थ सुखी विवाहित जीवन नहीं होता।
@वैसे जो अनुभव हमारा है ...
सच है, व्यक्तिगत अनुभव अत्यधिक सीमित होते हैं, अक्सर उनसे सही निष्कर्ष नहीं निकलते। बल्कि व्यक्तिगत अनुभव पर अन्यायी निर्भरता अक्सर कौंफ्लिक्ट का कारण बनती है।