प्रकाश-पुन्ज को
अभी निहारा भी न था
जी भर के,
ना समेटा ही था अभी
आश्चर्य
आँखे खुलने का,
कि तभी
शाम का डर समां गया मन में,
सूरज के भी ढलने का रोमांच
डरा ही तो रहा था!
तम के वहम से सहमा मन
और भी चकित हो गया
जब
देखा कि
तम को भेदती हुई
वो महीन सी किरण
विराट हुई जाती है
फूटी है मुझ ही से...
जय हिन्द,जय श्रीराम!
कुँवर जी,
अभी निहारा भी न था
जी भर के,
ना समेटा ही था अभी
आश्चर्य
आँखे खुलने का,
कि तभी
शाम का डर समां गया मन में,
सूरज के भी ढलने का रोमांच
डरा ही तो रहा था!
तम के वहम से सहमा मन
और भी चकित हो गया
जब
देखा कि
तम को भेदती हुई
वो महीन सी किरण
विराट हुई जाती है
फूटी है मुझ ही से...
जय हिन्द,जय श्रीराम!
कुँवर जी,
तम के वहम से सहमा मन
जवाब देंहटाएंऔर भी चकित हो गया
जब
देखा कि
तम को भेदती हुई
वो महीन सी किरण
विराट हुई जाती है
फूटी है मुझ ही से...एक अलौकिक एहसास
दिव्य अनुभूति!
जवाब देंहटाएंभाव बहुत स्पष्ट.... साधु.
bahut hi shandar rachna
जवाब देंहटाएंआखिर असली जरुरतमंद कौन है
भगवन जो खा नही सकते या वो जिनके पास खाने को नही है
एक नज़र हमारे ब्लॉग पर भी
http://blondmedia.blogspot.in/2012/05/blog-post_16.html
बढ़िया ।चमत्कारिक ।।
जवाब देंहटाएंतम के वहम से सहमा मन
जवाब देंहटाएंऔर भी चकित हो गया
जब
देखा कि
तम को भेदती हुई
वो महीन सी किरण
विराट हुई जाती है
फूटी है मुझ ही से......Awesome ...
.
हर एक पंक्तियाँ अद्भुत सुन्दर है
जवाब देंहटाएंउत्तम रचना...
जवाब देंहटाएंसादर।
आपकी पोस्ट 17/5/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा - 882:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
तम के वहम से सहमा मन
जवाब देंहटाएंऔर भी चकित हो गया
जब
देखा कि
तम को भेदती हुई
वो महीन सी किरण
विराट हुई जाती है
फूटी है मुझ ही से.....अति सुन्दर अलोकिक दर्शन ..बहुत सुन्दर दार्शनिक भाव हैं रचना में
http://urvija.parikalpnaa.com/2012/05/blog-post_28.html
जवाब देंहटाएंखूबसूरत.........................
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया...
अनु
Nice rachna....
जवाब देंहटाएंAap sabhi ka swagat aur aabhar...
जवाब देंहटाएंKunwar ji
तम के वहम से सहमा मन
जवाब देंहटाएंऔर भी चकित हो गया
जब
देखा कि
तम को भेदती हुई
वो महीन सी किरण
विराट हुई जाती है
फूटी है मुझ ही से...
..bahut sundar...
जी धन्यवाद्.
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों के बाद आगमन हुआ आपका बहुत अच्छाल लगा,स्वागत है जी,
कुँवर जी,