हर और आग थी,
जलन थी,
धुआँ...
बड़ी मुश्किल से एक कोना ढूँढा ...
बैठे,
कुछ अपने दिल में झाँका,
देखा...
कुछ लपटे तो वहा भी उठ रही थी!
अब..?
जय हिन्द,जय श्रीराम!
कुँवर जी,
जलन थी,
धुआँ...
बड़ी मुश्किल से एक कोना ढूँढा ...
बैठे,
कुछ अपने दिल में झाँका,
देखा...
कुछ लपटे तो वहा भी उठ रही थी!
अब..?
जय हिन्द,जय श्रीराम!
कुँवर जी,
दिल में जो धुंआ है ... वह जाता भी नहीं , ना ही पूरी तरह आग भभकती है
जवाब देंहटाएंआदरणीय रश्मि जी,
हटाएंआपका स्वागत है जी, यूँ लगा जैसे आपने अव्यक्त विचारो को को यहाँ लिख कर अधूरे भावो को पूर्ण कर दिया.,
आभार!
कुँवर जी,
गहरी बात कह दी आपने.... प्रशंसनीय रचना कुँवर जी
जवाब देंहटाएंसन्जय भाई
हटाएंआपका to मुझे हमेशा ही इन्तजार रहता है.,
आप बस यूँ ही मुस्कुराते रहिये...
कुँवर जी.
अब इस आग से भी धुंवा उठने दो ... ये धुंवा ही बदलाव ले कर आयगा ...
जवाब देंहटाएंआदरणीय नासवा जी..
हटाएंआपका स्वागत है जी,मार्गदर्शन और प्रोत्साहन के लिए आभार...
कुँवर जी,
गहन चिंतन, आग की जड ही………!! ला-जवाब!!
जवाब देंहटाएंआदरणीय सुज्ञ जी..
हटाएंआपका स्वागत है जी,आपकी उपस्थिति हर्ष तो देती ही है साथ ही सचेत भी करती है सम्वेदनाओक के प्रति...
आपसे सदा ही मार्गदर्शन उम्मीद रहती है.,
कुंवर जी.
हर्ष आनन्द में रहिए, अपनी कोमल भावनाओं को भी जागृत रखिए
हटाएंआपका प्रेम काफी है स्नेहबंधन सुदृढ़ रखने के लिए!!
मित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
जवाब देंहटाएंपैदल ही आ जाइए, महंगा है पेट्रोल ||
--
बुधवारीय चर्चा मंच ।
जी पैदल ही आये है,इसीलिए इतनी देर हो गयी.,
हटाएंइतने बेहतरीन लिंक्स के साथ मेरी पंक्तियों को भी आपने चर्चा मंच में शामिल किया... इस उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद,आभार, अब तो मुझे अपनी जिम्मेदारी और भी अधिक बड़ी महसूस हो रही है.,
कुँवर जी,
दिल में उठ रहे आग को कैसे
जवाब देंहटाएंबुझाये...
गहन अभिव्यक्ति...
@रीना जी,
हटाएंआपका स्वागत है जी.,
कुँवर जी,
गहरे उतार गई रचना...
जवाब देंहटाएंसादर
आभार.,
हटाएंकुँवर जी.
याने दोनों तरफ है आग बराबर!!!!
जवाब देंहटाएंअब जाएँ तो जाएँ कहाँ........................
अनु
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंदेखा...
जवाब देंहटाएंकुछ लपटे तो वहा भी उठ रही थी!
अब..?
बहुत अच्छी बात कही है आपने .अच्छी पोस्ट भाई साहब .
आप सभी का यहाँ पधारने पर हार्दिक धन्यवाद्,
जवाब देंहटाएंये
स्नेहाशीष सदैव बनाये रखना...
कुँवर जी,
दिल तो बच्चा हैं इसको बच्चा ही रहने देने में हर्ज क्या हैं?
जवाब देंहटाएंइसको दुःख देने से पहले सोचो की हमारा फ़र्ज़ क्या हैं
कभी जलाते हैं इसको तो कभी तोड़ते हैं कांच की तरह
पता नही चलता की इंसान को आखिर मर्ज क्या हैं.
बहुत सुंदर रचना
धन्यवाद
बहुत बेहतरीन रचना....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
जवाब देंहटाएंआपकी इस रचना को कविता मंच पर साँझा किया गया है
संजय भास्कर
http://kavita-manch.blogspot.in