गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

कहा है साहस खुद को उघाड़ने का....(कुँवर जी)

सब विषयो,
शीर्षकों,
मुद्दों,शब्दों को
इक्कठा कर
जब
कुछ लिखने  की सोचता हूँ
तो एक-एक कर के
सब दूर जाते दिखते है....
बस
रह जाता हूँ
खड़ा मै अकेला
और
बात मुझ पर आकर
रुक ही जाती है....

और फिर क्या....

सब मौन....

कहा है साहस खुद को उघाड़ने का....????

कुँवर जी,

3 टिप्‍पणियां:

  1. इन बिषयों . मुद्दों इत्यादि को दबोच कर रखना होगा, लिखने के लिए ! बढ़िया !

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  2. बेहतरीन लिखा है कुंवर जी...

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  3. बहुत खूब .. खुद को खोदना आसान नहीं होता .. पर उसके बिना मंजिल भी तो नहीं ...

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