बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

ताकि जो जैसा है वो रहे वैसे ही...

ओस की बूंदे जम गयी थी पलकों पर,
अब झपकते तो मोती झर नहीं जाते,


साँसों में भर ली थी सुगंध जीवन की.
अब उन्हें छोड़ते तो मर नहीं जाते,


सपनो में बदल गयी थी जिंदगी,
जागते तो सपने बिखर नहीं जाते,


तभी तो....

तभी तो
हमने रोक ली थी सांस,
झपकने नहीं दिया पलकों को
और न खुलने दी आँख सो कर एक बार!
ताकि जो जैसा है वो रहे वैसे ही...
वैसा ही...! 


कुँवर जी,
जय हिंद,जय श्रीराम!

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह पोस्ट पढ़कर जाने क्यूँ एक पुरानी हिन्दी फिल्म हिना के एक गीत की कुछ लाइने याद आगयी "मर गए हम खुली रही आँखें
    यह तेरे इंतज़ार की हद थी"....

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  2. ओस की बूंदे जम गयी थी पलकों पर,
    अब झपकते तो मोती झर नहीं जाते,


    साँसों में भर ली थी सुगंध जीवन की.
    अब उन्हें छोड़ते तो मर नहीं जाते,


    बहुत सुन्दर पंक्तिया है !

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  3. चुन-चुन कर शब्दों का प्रयोग किया आपने कुंवर जी रचना है लाजवाब!!!.

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