ओस की बूंदे जम गयी थी पलकों पर,
अब झपकते तो मोती झर नहीं जाते,
साँसों में भर ली थी सुगंध जीवन की.
अब उन्हें छोड़ते तो मर नहीं जाते,
सपनो में बदल गयी थी जिंदगी,
जागते तो सपने बिखर नहीं जाते,
कुँवर जी,
जय हिंद,जय श्रीराम!
अब झपकते तो मोती झर नहीं जाते,
साँसों में भर ली थी सुगंध जीवन की.
अब उन्हें छोड़ते तो मर नहीं जाते,
सपनो में बदल गयी थी जिंदगी,
जागते तो सपने बिखर नहीं जाते,
तभी तो....
तभी तो
हमने रोक ली थी सांस,
हमने रोक ली थी सांस,
झपकने नहीं दिया पलकों को
और न खुलने दी आँख सो कर एक बार!
ताकि जो जैसा है वो रहे वैसे ही...
वैसा ही...!
वैसा ही...!
कुँवर जी,
जय हिंद,जय श्रीराम!
आपकी यह पोस्ट पढ़कर जाने क्यूँ एक पुरानी हिन्दी फिल्म हिना के एक गीत की कुछ लाइने याद आगयी "मर गए हम खुली रही आँखें
जवाब देंहटाएंयह तेरे इंतज़ार की हद थी"....
ओस की बूंदे जम गयी थी पलकों पर,
जवाब देंहटाएंअब झपकते तो मोती झर नहीं जाते,
साँसों में भर ली थी सुगंध जीवन की.
अब उन्हें छोड़ते तो मर नहीं जाते,
बहुत सुन्दर पंक्तिया है !
चुन-चुन कर शब्दों का प्रयोग किया आपने कुंवर जी रचना है लाजवाब!!!.
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