बधाई हो,आज २६ जनवरी है न इसीलिए!
और मै हमारे गाँव में शिव जी के निकलने की बधाई थोड़े ही दे रहा हूँ!आपको तो पता ही होगा खैर,मुझे थोडा देर से पता चला था!असल में आज छुट्टी थी तो थोडा और सो लिए थे,जब तक जागे परेड हो चुकी थी!वैसे भी लालकिले पर झण्डा मुझे ही तो फेहराना नहीं था जो जल्दी उठता! न कंपनी में ही जाना था,सो सोचा के थोडा और सो ले!
मै सोच रहा था के कल के लिए आपसे क्षमा याचना कर लू!कल मैंने शुरू किया था ये सोच कर कि अपने बारे में कुछ न कुछ बता कर ही दम लूँगा! लेकिन एक बार फिर मै कुछ भी स्पष्ट करने में नाकाम रहा!
वास्तविकता यही है,मै भी अपने बारे में अभी कुछ स्पष्ट रूप से नहीं जान पाया हूँ!तो अब मेरे बारे में आप अधिक न सोचे!सोचने का कार्य तो आप बस मेरे लिए छोड़ दे!
मै ये सोच रहा था कि आपको एक लड़के का किस्सा सुना ही दूं जो मेरी तरह बहुत सोचता था!
मैंने भी सुना ही था.....
..........एक कक्षा में किसी अध्यापक को कक्षा में ही लड्डू खाने कि तलब हो आई!लड्डू थे नहीं सो बहार दुकान से मंगवाने कि सोच ली!उसने कक्षा में दृष्टि दौड़ाई तो जो लड़का सबसे शांत दिखाई दिया उसको ही 5 रुपये दे दिए लड्डू लाने के लिए!अब जो बहुत सोचता है वो स्वाभाविक ही शांत तो होता ही है!
उस लड़के ने वो 5 रुपये दुकानदार को दिए और बोला लड्डू दे दो!दुकानदार ने लड्डू तोले,पहले तराजू में 5 रखे जब देखा के ज्यादा है तो एक निकाला!ठीक थे दे दिए!वो लड़का भी ले कर चल दिया,और शुरू हो गया उसके सोचने का सिलसिला!
उसने सोचा जब दुकानदार 5 रख कर एक वापस उठा सकता है तो वो तो मै भी 4 में से एक तो उठा ही सकता हूँ,मास्टर जी देख थोड़े ही रहे है!एक उठाया और खा गया!
बीच राह में एक बड़ा नाला था,उसे कूदने लगा तो एक लड्डू गिरते-गिरते बच गया!उसने फिर सोचा,"गिर भी तो सकता था"! एक और खा गया!
जैसे ही विद्यालय में प्रवेश किया,फिर सोचा!उसने सोचा के मै इतनी मेहनत कर के लड्डू ला रहा हूँ,कम से कम एक तो मिलेगा मुझे भी!क्यों मास्टर जी का समय नष्ट किया,सोचा बता दूंगा और खा गया!
अब जो एक बचा था उसे ही अखबार में बहुत अच्छी तरह से लपेट-सपेट कर रख दिया मास्टर जी के सामने!मास्टर जी 5 रुपये का एक लड्डू पाकर हैरान,परेशान!
उस शांत बच्चे से बड़ी शान्ति से पूछा- "5 का एक ही?"
वो बोला- "नहीं; थे तो ज्यादा यहाँ तक एक ही पहुँच पाया!"
मास्टर जी-थोडा सा सख्त हो कर-"कैसे????"
लड़का-"जी दूकानदार ने 4 रखे फिर एक उठा लिया,रह गए तीन!"
मास्टर जी- "वो तीन कहा गए ?"
लड़का-"जी एक लड्डू नाला कूदते हूए नाले में गिर गया!रह गए दो!"
मास्टर जी थोडा सा और गंभीर होते हूए- ये तो दो भी नहीं, ये कैसे???
लड़का बड़ी ही स्वाभाविक सी मासूमियत के साथ- "मैंने सोचा मै इतनी मेहनत कर के लड्डू ला रहा हूँ,कम से कम एक तो मिलेगा मुझे भी!क्यों मास्टर जी का समय नष्ट किया,सोचा बता दूंगा और खा गया!
मास्टर जी फुल्ली आग-बबूला होते हूए- "हरामजादे! मेरा लड्डू तू कैसे खा गया??"
उस लड़के ने वो लड्डू उठाया और मुह में रक्खा और खा गया,बोला-"जी ऐसे खा गया!"
मास्टर जी देखते रहे और वो जो एक लड्डू जैसे-कैसे भी आया था, वो भी उन्हें नसीब न हूआ!
मै सोचता हूँ कि........
मै केवल सोचता ही हूँ,करता नहीं हूँ ये भी ठीक ही है!
यदि वो लड़का मेरी तरह केवल सोचता ही,करता नहीं तो मास्टर जी को उनके सारे लड्डू मिल ही जाते!
खैर छोडो आज यही.........
एक बार फिर बधाई हो,इस बार असली वाली है,,,,,
राम-राम जी
कुंवर जी!
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