बुधवार, 20 जनवरी 2010

जारी है संघर्ष मेरा मुझ को "मै" बताने का.........

जब भी मै नहीं लिख रहा होता हूँ तो  मै ये सोचता रहता हूँ कि आज उस विषय पर लिखूंगा-आज उस विषय पर लिखूंगा !परन्तु जैसे ही मै लिखने बैठता हूँ मस्तिष्क एकदम सुन्न जैसे,विचारो के नाम पर केवल रिक्तस्थान!कुछ भी तो सूझता नहीं जिसपर मै कुछ भी लिख पाऊं ! और कभी इतने विषय के चयन करना मुश्किल के किस से शुरुआत करू!फिर जिस किसी भी विषय पर लिखना आरम्भ किया तो उसके बारे में विस्तृत जानकारी का आभाव,अंततः एक विषय जो मुझे लगा कि जिसके बारे में मै बिना किसी भ्रम और संशय के लिख सकता हूँ वो अभी तो केवल और केवल मै स्वयं ही हूँ!


यह तो सत्य है कि मेरे बारे भला कौन पढ़ेगा,किसी के पास कहा इतना समय है कि वे मेरे लिए अपने अनमोल पल नष्ट करे !

लेकिन मै थोडा स्वार्थी टाइप का मानता हूँ अपने आप को !यहाँ भी अपना स्वार्थ ढूंढ ही लिया मैंने.........................!

स्वार्थ ये कि एक तो मेरे बारे में कोई मेरे सिवा जनता ही नहीं,जो भी कुछ मै बताऊंगा वही सर्वमान्य व् सत्य होगा,क्योंकि मेरे सिवा कोई जनता ही नहीं मुझे!दूसरा ये कि कम से कम मुझे लिखने का अभ्यास तो हो ही रहा है!कोई पढ़े या न पढ़े,मै खुद ही पढ़ कर अपने अन्दर सुधार के अवसर खोजा करूँगा!कभी तो कुछ तो सुधार कि गुंजाईश दिखाई देगी,जब भी दिखाई देगी धर-दबोचूंगा!

वैसे मै इतनी शीघ्रता से 'अवसर' को पिंजरे का पंछी नहीं बनाता,सोचता हूँ कि जब तक इसकी किस्मत में यूँ ही उड़ना है,उड़ लेने दूं!बाद में तो इसे मेरे कठोर और परिश्रमी विचारो में क़ैद हो ही जाना है!असल में मुझ से अधिक तो मेरे विचार ही परिश्रमी है!यदि केवल विचारो पर ही पारिश्रमिक मिला करता तो हम भी अमीर हो सकते थे!
मै सोचता हूँ........
वैसे मै बस सोचता ही ही हूँ,'करना' मुझे थोडा कम पसंद है!'सोचने' से किसी का कैसा भी नुक्सान मै नहीं कर सकता लेकिन यदि 'करता हूँ' तो न चाहते हुए भी किसी का नुक्सान हो ही जाता है!ये एक बड़ा कारण मै मानता हूँ अपने केवल 'सोचने' का!और एक ये भी है....मैंने किसी महापुरुष का एक विचार पढ़ा था कभी कि 'मनुष्य सत्ता नहीं करता,सत्ता विचारो कि होती है'!तो मै उस से पूर्ण सहमत हूँ!अधिकतर जो भी विचार मै कही से पढता या सुनता हूँ तो उस से अधिकतर मै सहमत या असहमत ही होता हूँ,मुझे ऐसा कभी लगता ही नहीं कि ये विचार मेरी विचार-दानी में कभी आये ही नहीं या 'पहली बार सुन रहा हूँ'!.............
ज्यादा तो नहीं हो रहा हा....?
अरे मेरे लिए नहीं , सम्भवतः आपके लिए हो रहा हो!
पर ये अटल सत्य है मेरे लिए तो!

आज के लिए इतना ही,शीर्षक का रहस्य अगली बार.........
अभी राम-राम जी,,,,,,
कुंवर जी!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

लिखिए अपनी भाषा में