मिश्रा जी ने चाय को ऐसे पिया जैसे किसी काढ़े का घूँट भर रहे हो!उनकी बहन घर पर आई हुयी थी,उन्होंने पूछा क्या हुआ चाय में चीनी की जगह नमक डाल दिया है क्या?
मिश्रा जी मुखमंडल पर दार्शनिक सी आभा को दिखाते हुए से बोले,"आज का अखबार तो देखो... फिर आतंकियों ने सेना पर हमला बोल दिया, कितने जवान शहीद हो गए!बोलते-बोलते वो सच में ही भावुक हो गए!फिर किसी की माँग सूनी हो गयी होगी,कितनी राखी कलाइयों को तरस जायेगी!कितनी माँ बस राह ताकती रह जायेगी!"
अखबार को अपने मन की तरह मसोस कर एक तरफ फेंक कर ऐसे ही बडबडाते हुए वो अपने कमरे की और चल पड़े,घडी की और नजर पड़ी तो ...." ओहो, आज फिर लेट हो जाऊँगा,अपनी पत्नी को लगभग धमकाते हुए वो बाथरूम की और दौड़े,"तुम्हे भी समय का पता नहीं चलता क्या?बताना तो चाहिए!आज तो वैसे भी एटीएम होकर जाना था,पांच-दस मिनट वहाँ भी लग जायेंगे!"
पत्नी बेचारी अपनी ननन्द की वजह से अपने सारे गुबार अपने ही अन्दर रखते हुए बोली,"नहाना बाद में, पहले अपने जीजा जी से बात तो कर लो.... क्या पता आज भी आये न आये!" पलट कर होंठ पीटती सी रसोई की और चली गयी!
मिश्रा जी की बहन को लगा की शायद वो ये कहती गयी है कि" रोज इसे लेने के लिए आने कि कह देते है....और आ रहे है नहीं!
उधर मिश्रा जी फोन काट कर बोले,"आज फिर बिना नहाये ही जाना पड़ेगा,खाना जैसा भी,जितना भी बना हो पैक कर दो!मैंने बोल दिया है जीजा जी को आज तो वो आ ही जायेंगे सो एटीएम तो जाना ही पड़ेगा!"
मिश्रा जी की बहन सोफे के एक कोने में फडफड़ाते हुए अखबार को एक तक देखे जा रही थी,जैसे उसमे वो खुद को तलाश रही हो!
जय हिन्द,जय श्री राम,
कुँवर जी,
मिश्रा जी मुखमंडल पर दार्शनिक सी आभा को दिखाते हुए से बोले,"आज का अखबार तो देखो... फिर आतंकियों ने सेना पर हमला बोल दिया, कितने जवान शहीद हो गए!बोलते-बोलते वो सच में ही भावुक हो गए!फिर किसी की माँग सूनी हो गयी होगी,कितनी राखी कलाइयों को तरस जायेगी!कितनी माँ बस राह ताकती रह जायेगी!"
अखबार को अपने मन की तरह मसोस कर एक तरफ फेंक कर ऐसे ही बडबडाते हुए वो अपने कमरे की और चल पड़े,घडी की और नजर पड़ी तो ...." ओहो, आज फिर लेट हो जाऊँगा,अपनी पत्नी को लगभग धमकाते हुए वो बाथरूम की और दौड़े,"तुम्हे भी समय का पता नहीं चलता क्या?बताना तो चाहिए!आज तो वैसे भी एटीएम होकर जाना था,पांच-दस मिनट वहाँ भी लग जायेंगे!"
पत्नी बेचारी अपनी ननन्द की वजह से अपने सारे गुबार अपने ही अन्दर रखते हुए बोली,"नहाना बाद में, पहले अपने जीजा जी से बात तो कर लो.... क्या पता आज भी आये न आये!" पलट कर होंठ पीटती सी रसोई की और चली गयी!
मिश्रा जी की बहन को लगा की शायद वो ये कहती गयी है कि" रोज इसे लेने के लिए आने कि कह देते है....और आ रहे है नहीं!
उधर मिश्रा जी फोन काट कर बोले,"आज फिर बिना नहाये ही जाना पड़ेगा,खाना जैसा भी,जितना भी बना हो पैक कर दो!मैंने बोल दिया है जीजा जी को आज तो वो आ ही जायेंगे सो एटीएम तो जाना ही पड़ेगा!"
मिश्रा जी की बहन सोफे के एक कोने में फडफड़ाते हुए अखबार को एक तक देखे जा रही थी,जैसे उसमे वो खुद को तलाश रही हो!
जय हिन्द,जय श्री राम,
कुँवर जी,
सुन्दर ,सरल और प्रभाबशाली रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें।
सादर मदन
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
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