हालातो के हाथो
में खुद को सौंप
दुआ,बददुआ और
किस्मत को भूल,
एक दुसरे को मारने को मजबूर इन्सान !
दया,धर्म और धैर्य
सब गए रसातल में
पथरीली आँखों के
वहशीपन में ये दो पाया
इन्सानियत से होता कोसो दूर इन्सान !
अहम्,स्वार्थ,
और राजनीति के षड्यंत्र,
इनसे आँखे मूंदे,
खुद से ही लड़ता हुआ
भला चल पायेगा कितनी दूर इन्सान !
में खुद को सौंप
दुआ,बददुआ और
किस्मत को भूल,
एक दुसरे को मारने को मजबूर इन्सान !
दया,धर्म और धैर्य
सब गए रसातल में
पथरीली आँखों के
वहशीपन में ये दो पाया
इन्सानियत से होता कोसो दूर इन्सान !
अहम्,स्वार्थ,
और राजनीति के षड्यंत्र,
इनसे आँखे मूंदे,
खुद से ही लड़ता हुआ
भला चल पायेगा कितनी दूर इन्सान !
जय हिन्द, जय श्रीराम,
कुँवर जी,
कुँवर जी,
bahut achhe
जवाब देंहटाएंswagat hai rana ji
हटाएंKunwar ju,
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंBahut badiya rana saab
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.... सम्भवतः पहली बार आप पधारे है...
हटाएंआभार!
कुँवर जी,
बहुत मुश्किल है इन्सान को ऐसे चलना ...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना ...
बहुत ही सामयिक रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
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