हम कहते है हमें शान्ति चाहिए,
वो बोले
हमने इतना बेआबरू तुमको किया,
कभी छाती की छलनी
अभी सर धर लिया,
तुम अब भी शान्त हो
अब इस से ज्यादा शान्ति का भी क्या करोगे...
शान्ति नहीं तुम्हे शर्म चाहिए,
हमने कहा
शर्म तो चली गयी बेशर्म हो...
चाहे कुछ भी हो अब शान्ति ही अपना धर्म हो...
तो हमें शान्ति चाहिए...
जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,
सच लिखा है शर्म चाहिए ... पर वो भी अब नहीं आती हमको ...
जवाब देंहटाएंआदरणीय दिगम्बर जी, बस अब क्या कहे.,.
हटाएंकुँवर जी,
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 15/1/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार है मुझ तुच्छ की पंक्तियों को चर्चा में शामिल करने के लिए.
हटाएंकुँवर जी,
एकदम सही बात कही,तुम्हे शर्म चाहिए !
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया..
जवाब देंहटाएंhttp://www.parikalpnaa.com/2013/01/1.html
जवाब देंहटाएंआप सभी का स्वागत है...
जवाब देंहटाएं@ आदरणीय रश्मि जी- बहुत बहुत आभार, मेरे और देश के दर्द को परिकल्पना पर साँझा करने के लिए...
कुँवर जी,
सोचने को मजबूर करती है आपकी यह रचना ! सादर !
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