गुरुवार, 3 जनवरी 2013

इतनी मजबूर तो नहीं जिंदगी....(कुँवर जी)

क्यूँ घुट रहे हो पल-पल,
कोई क़सूर तो नही जिंदगी!

खोलो पलके हाथ बढाओ,
इतनी भी दूर तो नहीं ज़िन्दगी!

माना ज़ख्म है कई तो क्या,
कोई नासूर तो नहीं ज़िन्दगी!

रोते हुए को हँसी ना दे पाए जो,
इतनी मजबूर तो नहीं जिंदगी!

जय हिन्द, जय श्रीराम,
कुँवर जी,

10 टिप्‍पणियां:


  1. माना ज़ख्म है कई तो क्या,
    कोई नासूर तो नहीं ज़िन्दगी!

    रोते हुए को हँसी ना दे पाए जो,
    इतनी मजबूर तो नहीं जिंदगी!

    बहुत उम्दा !

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    1. स्वागत है गोदियाल जी...
      धन्यवाद!

      कुँवर जी,

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  2. रोते हुए को हँसी ना दे पाए जो,
    इतनी मजबूर तो नहीं जिंदगी
    ..........एक सच जिसे बिल्‍कुल सटीक शब्‍द दिये हैं आपने ... बहुत ही बढिया प्रस्‍तुति... आपको २०१३ की मंगल कामनाएं .....आभार !

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    1. संजय भाई आपको भी बहुत बहुत शुभकामनाये...

      कुँवर जी,

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  3. "ज़िंदगी ज़िंदा दिली का नाम है
    मुर्दा दिल क्या ख़ाक जिया करते है"

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    1. क्या बात है पल्लवी जी,
      स्वागत है आपका...

      कुँवर ji,

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  4. बहुत बहुत आभार आपका

    कुँवर जी,

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