देश की जो रीढ़ है लोकतंत्र.,(?) वही सबसे बड़ी कमजोरी मुझे दिखाई पड़ती है!कम से कम पिछले कुछ दिनों से तो ऐसा ही दिखाई दे रहा है! कोई घर से बहार का मारे तो दर्द होता है वो तो होगा ही, पर जब कोई घर का ही मारता है तो दुःख भी होता है साथ में!
कल जैसे लोकतंत्र का मज़ाक बना उस से बहुत दुःख हुआ, ना कुछ कहते बन रहा है, ना चुप रहते ही बन रहा!पता नहीं रोटी ही खाते है या क्या खाते है...?
जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,
:( :(
जवाब देंहटाएंये विडम्बना है अपने लोकतंत्र की ...
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