गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

सौ संस्कारों के ऊपर भारी मजबूरी एक .... (कुँवर जी)

सौ संस्कारों के ऊपर भारी मजबूरी एक
आचरण बुरा ही सही पर है इरादे नेक!

खुद बोले खुद झुठलाये जो करे कह न पाए
अजब चलन चला जग में चक्कर में विवेक

भ्रष्टाचार से लड़ाई में हाल ये सामने आये
विजयी मुस्कान लिए सब रहे घुटने टेक!

मेहनत से डर कर खुद को मजबूर कहलवाए 
जब तक मौका न मिले तब तक है सब नेक!

जय हिन्द, जय श्रीराम, 
कुँवर जी

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.....यदि आप चाहें तो मैं आपके ब्लॉग को डिजाईन कर सकता हूँ, क्यों की वर्तमान में ब्लॉग का ले आउट सही नहीं है....आभार

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    1. arvind ji aapka haardik swagat hai ji..
      ye mera saubhagya hi to hai jo aapne mere tuchchh se blog ke liye apna amulya samay dene ki baat kahi hai.... mujhe bahut hi khushi hogi yadi aap mere blog suvyavasthit karenge to...

      btaiye iske liye mujhe kya karna hoga...
      kunwar ji

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  2. वाह ... बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  3. बेहद सुंदर रचना है जो की सत्य भी है, कुछ शब्दों में कितना कुछ कह दिया आपने बधाई !!

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