स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई देने के लिए ही आया था मै आज...पर हालात ऐसे है कि चाह कर भी न दे पाया!जो भी घटनाक्रम देश में दोहराया जा रहा है वो कतई बधाई के लिए उपयुक्त नहीं है ऐसा भी नहीं है!
आज बधाई इस बात की कि कुछ लोग तो खुद को इस अंग्रेजो से भी बद्तर राज में गुलाम कहलाना पसंद नहीं कर रहे है और अपनी बात रखने के लिए सरकारी अत्याचार सहने के लिए भी तैयार हो चुके है!उन सभी को शुभकामनाये......
आज भूखे है वो जिनके पेट भरे है.....
ठूंठो को समझा हमने के पेड़ हरे है.....
डोली को लूटने को उसके ही कहार फिरे है...
भौर के सूरज के ऊपर निशा के ही डेरे है...
जियो जिंदगी मर-मर के क्योकि आज़ाद हो तुम...
जो बोलोगे तो इस राज में महज मवाद हो तुम...
मजबूरी और लाचारी का अनकहा संवाद हो तुम...
सहमत हो तो सही, नहीं तो विवाद हो तुम...
आज अपराधी है आदर्शो की राह पर चलने वाला...
आदमी है वो जो है हालातो के संग ढलने वाला...
भ्रष्टाचार के इस दौर में घपलों पर ही पलने वाला...
जिसने भी विश्वाश किया उसको ही छलने वाला...
जय हिंद,जय श्रीराम,
कुँवर जी,
सटीक और सार्थक लेखन ...
जवाब देंहटाएंसोचने को मजबूर करती है आपकी यह रचना ! सादर !
जवाब देंहटाएंजो बोलोगे इस राज में महज मवाद हो तुम . बस यही सच हैं कि जो सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ बोले वही ठग , खुद भ्रष्ट , या आर एस एस का एजेंट. वैसे काफी दिनों बाद लिखी तुकबंदी जैसी कविता नहीं तो भाव प्रवाह वाली ही लिखते थे. बहुत अच्छी हैं . कम्पनी के व्यस्ततम और असुरक्षित माहौल में एक कलाकार को ऐसी रचनाये लिखते रहना चाहिए .
जवाब देंहटाएंआपका आक्रोश समझ आता है कुंवर जी ...
जवाब देंहटाएंये सरकार ढीठ है आसानी से नहीं समझने वाली ...
सचमुच देश का एक बडा वर्ग यूँ ही घुट-घुट कर जी रहा है।
जवाब देंहटाएं