कल जब
अमित जी की ओजपूर्ण कविता को पढ़ा तो काफी दिनों के बाद कुछ पंक्तियाँ एक दम दिल से निकल कर आई....
अपनों के बीच में आज अर्जुन नहीं दुर्योधन है,
गीता गायी जाए तो किसके आगे ये भी उलझन है!
जो दिख रहा है उसे देख देख कर
छोटे से मन में बड़ी-बड़ी उधेड़बुन है!
बेशर्मी और बदनामी गौरव का कारण बन रही,
सच्चाई,ईमानदारी,देशभक्ति इनसे कहाँ अब जीवन है!
ठीक गलत के मायने सब बदल गए आज,
खिज़ा को ही बहार मान रहा खुद चमन है!
साधन और सुविधाओं को जुटाने को ही संघर्ष है,
साख और सोच में जैसे हो गयी कोई अनबन है!
जय हिंद,जय श्रीराम,
कुंवर जी,
कुंवर जी,
@ साधन और सुविधाओं को जुटाने को ही संघर्ष है,
जवाब देंहटाएंइन्ही चीजों ने सुन्दर से जीवन को महाभारत बना के रख दिया है ................. बहुर बढ़िया भावाभिव्यक्ति !
अमित जीका शुक्रिया जिनके कारण आप ये कविता लिख पाए ....
जवाब देंहटाएंयूँ ही लिखते रहे .......
sach kaha aapne , lekin aaj ke parivesh main arjun ko bhi apna lakshya nahin dikh raha hai,
जवाब देंहटाएंsundar rachna
tuk to samagh me aaya par matlab nahi aaya samagh me
जवाब देंहटाएंअपनों के बीच में आज अर्जुन नहीं दुर्योधन है,
जवाब देंहटाएंगीता गायी जाए तो किसके आगे ये भी उलझन है ...
बहुत लाजवाब लिखा है ... सच लिख है ...
bhav bahut achchha laga......yatharth lekhan.
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