कौन कहता है कि हंसी में रोना नहीं होता,
जरा उनसे तो पूछो जिनके पास सूना सा कोई कोना नहीं होता!
ईंट,पत्थर,कंकड़ और तिनको से भी बच्चा खेलता है,
जिस के पास खेलने को कोई खिलौना नहीं होता!
घास मिली तो सही नहीं तो जमीन पर ही सो गया,
जिसके पास बिछाने को कोई बिछौना नहीं होता!
जिन्दगी को जी कर तो हम भी देखते कभी ना कभी,
जो जिन्दगी भर दुखो को यूँ ही ढोना ना होता!
मन की प्यास बुझाते आँख के पानी से ही हम,
जो किस्मत पे अपनी हमें कभी रोना ना होता!
जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुंवर जी,
कौन कहता है कि हंसी में रोना नहीं होता,
जवाब देंहटाएंजरा उनसे तो पूछो जिनके पास सूना सा कोई कोना नहीं होता!
वाह...क्या बात कह दी !!!
मन में उतर गयी रचना...
गहरी बात कह दी आपने। नज़र आती हुये पर भी यकीं नहीं आता।
जवाब देंहटाएं... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।