मंगलवार, 7 सितंबर 2010

भावनाए जब बहती है मन में.....(कुंवर जी)

भावनाए जब बहती है
मन में....
ना जाने क्या-क्या कह जाना चाहती है....
खुद मचलती है,
हमें मचलाती है,
बादलो सी उमड़-घुमड़ आती है......
बारिश सी बरसना चाहती है.....
किसी सींप में समां मोती होने का मन करता है....
कभी किसी चकवे की प्यास को बुझाना चाहती है....
भावनाए जब बहती है मन में....


पर खो जाती है मन सागर में किसी लहर की ज्यूँ...
कोई अनजान भंवर रेगिस्तान में जैसे,
मन में उठती है और मन ही में मर जाती है...
या कभी-कभी बन आंसू खुद अपनी मौत सहती है...
कभी कोई अधूरा चित्र बन अपनी लाचारी कहती है...
या कभी-कभी पाकर कलम का सहारा कविता बन इतराती है...
भावनाए जब बहती है मन में...


और अब ये क्या नयी चाल इनकी...
जग सारा जिसे पढता है....
कोई वाह करता-कोई आह भरता....
और मन की पहचान इन्हें सब कहते है....
कविता सा जिसे सब समझते है....
वो तो असल कविता थी ही नहीं...


जो मन की भावनाओं को समेटे,सहेजे
लज्जा और प्रसन्नता के जैसे....
कविता बन दुल्हन सी सजती संवरती है...
वो तो मन ही में रह जाती है....
वहीँ इठलाती है,वहीँ शरमाती है....
भावनाए जब बहती है मन में.....

जय हिन्द,जय श्री राम,
कुंवर जी,

9 टिप्‍पणियां:

  1. और अब ये क्या नयी चाल इनकी...
    जग सारा जिसे पढता है....
    कोई वाह करता-कोई आह भरता....
    और मन की पहचान इन्हें सब कहते है....
    कविता सा जिसे सब समझते है....
    वो तो असल कविता थी ही नहीं...

    ऐसी ही तो छलती हैं ये भावनाएँ ।

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  2. कविता बन दुल्हन सी सजती संवरती है...
    वो तो मन ही में रह जाती है....
    वहीँ इठलाती है,वहीँ शरमाती है....
    भावनाए जब बहती है मन में.....
    सुंदर भावाव्यक्ति बधाई

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  3. कविता सा जिसे सब समझते है....
    वो तो असल कविता थी ही नहीं...

    सुन्दर भावाभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  4. और अब ये क्या नयी चाल इनकी...
    जग सारा जिसे पढता है....
    कोई वाह करता-कोई आह भरता....
    और मन की पहचान इन्हें सब कहते है....
    कविता सा जिसे सब समझते है....
    वो तो असल कविता थी ही नहीं...
    बहुत सुन्दर सटीक और दिल को छू जाने वाली रचना। बधाई।

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  5. कभी-कभी पाकर कलम का सहारा कविता बन इतराती है...
    भावनाएँ जब बहती है मन में...

    @ सहजता कमाल की है. अपने भावों को ना कोई अलंकार पहनाने की कोशिश और ना कोई चमत्कार लाने का प्रयास. यह सहजता आपके सरल मन को दर्शाती है.
    भावनाएँ कविता का रूप लेकर जब इतराया करती हैं तब ही सहजता समाप्त समझो. लाजवाब भाव रूप. यदि मैं इन भावों को कविता कहूँ तो... आप स्वीकारेंगे?

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  6. राम राम जी...

    @आदरणीय आशा जी,सुनील जी,संगीता जी व् कपिला जी-आप सभी का स्वागत है जी,आप सभी के पधारने पर और मुझे ये स्नेहाशीष देने के लिए आपका आभार!

    @आदरणीय प्रतुल जी-आप ने मेरी इस भावाभिवयक्ति को "कविता" कहा इस से बड़ा अलंकार और क्या हो सकता है इन पंक्तियों के लिए...धन्यवाद है जी...



    कुंवर जी,

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  7. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ ही एक सशक्त सन्देश भी है इस रचना में।

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