मंगलवार, 15 जुलाई 2014

मौन..... (कुँवर जी)

मौन.....
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जिह्वा तालु को सटी है,
और अंतर में फिर भी शोर है,
क्या वहा मुझ से अलग कोई और है…
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ये कैसा मौन है, ये कौन मौन है…?


जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी

6 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. डॉ. साहब अनचाहा तो नहीं था अनजाना सा ही रहा।
      आभार।

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  2. बहुत भाव पूर्ण रचना
    कम शब्दों में अर्थ भाव जगती
    कुंवर जी आभार व् अभिनन्दन ||

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    उत्तर
    1. श्री जी आपका भी बहुत बहुत अभिनन्दन। उस एक पल की आसमंजस भरे शब्दों में अर्थ खोजने के लिए आभार।
      आपकी वजह से बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर आना हो गया।

      हटाएं

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